अजब-गजब

यह कैसा रिवाज़, मृत्यु के बाद शवों को आधा जला कर रख देते है पहाड़ो पर

नई दिल्ली। हिन्दू धर्म में जन्म से लेकर मृत्यु तक बहुत सारे रिवाज़ है जो आखरी में मृत्यु पर आकर ख़तम होते है। इंसान की मृत्यु होने के पशचात उसके शव का रीती रिवाजो क़े साथ अँतिम संस्कार कीया जाता हैं। ऐसा केवल हिन्दू धर्म में नहीं और कई समुदायों में भी ये रिवाज़ निभाए जाते है और कई में तो ये बहुत दिलचस्प होते है। ऐसी ही एक अनोखी अंतिम संस्कार की किर्या पापुआ न्यू गिनी के अंगा जनजाति के लोग अपनाते है जो कि पहले लाश क़ो हल्क़ा सा जलाते है और फिर उस अध जलीं लाश को ममी बनाकार पहाडों पऱ हमेंशा के लिए सुरक्षित रख़ देते है। पापुआ न्यू गिनी के मोरोबे में अंगा जनजाति अपनी अनोखी ममीकरण तकनीक के लिए चर्चित है। यहां शवों को सुरक्षित रखने के लिए पहले उन्हें सुलगाया जाता है, फिर उन्हें मकबरों या कब्रों में दफनाने की जगह पहाड़ियों पर रख दिया जाता है, ताकि वे पहाड़ियों पर से गांव को देखते रहें। शव लाल रंग में रंगे होते हैं। पहाड़ियों पर बांस के सहारे रखी ये लाशें देखने में बड़ी ही विचित्र लगती हैं, लेकिन अंगा जनजाति के लोगों के लिए ये मृतकों को सम्मान देने के सबसे बेहतरीन तरीकों में से एक है। शवों के संलेपन का काम बड़ी ही सावधानी से किसी अनुभवी व्यक्ति द्वारा करवाया जाता है। सबसे पहले घुटने, कंधे और पैरों को सही आकार देने के लिए पूरी चर्बी हटाई जाती है। फिर बांस के ढांचे में उन्हें रखा जाता है। इस दौरान शरीर से निकले पदार्थों को मृतक के परिजनों और रिश्तेदारों के बालों और त्वचा पर लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे मृतक की ताकत जीवित व्यक्ति में आ जाती है। इसके बाद अगले चरण में मांस की सड़न को रोकने के लिए शव से आंखें, मुंह और गुदा का हिस्सा निकाला लिया जाता है। इसके बाद माना जाता है कि ममी (लाश के संरक्षण) को सदियों तक संरक्षित रखा जा सकता है। जीभ, हथेली से लेकर तमाम ऐसे हिस्सों को निकाल लिया जाता है, जिनसे सड़न पैदा होने का डर हो। इसके बाद शव के बाकी बचे ढांचे को आग में सुलगाया जाता है। आग में सुलगाने के बाद ममी पर लाल रंग का लेप लगाया जाता है, जिसमें डाला गया प्राकृतिक कोकुन शव का सदियों तक संरक्षण करता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद जाकर ममी तैयार होती है। किसी खास मौके या जश्न के वक्त अंगा आदिवासी अपने परिजनों की ममी को पहाड़ियों पर से उतारते भी हैं, ताकि उन्हें जश्न का हिस्सा बनाया जा सके। मोरोबे में आज दो सौ साल पुरानी ममी भी देखने को मिल जाएंगी।

Related Articles

Back to top button