नई दिल्ली: दिल्ली में पली-बढ़ीं निष्ठा डुडेजा ने 24 देशों के प्रतियोगियों को पीछे छोड़ते हुए मिस डेफ एशिया का खिताब अपने नाम कर लिया है। उसने न केवल परिवार बल्कि देश का भी नाम रोशन किया है। वह बिना मशीन के सुन नहीं सकतीं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने लगन के बल पर इसमें सफलता हासिल की। निष्ठा के पिता वेदप्रकाश डुडेजा उत्तर रेलवे में चीफ इंजीनियर के पद पर हैं। वह निष्ठा की सफलता का श्रेय पत्नी पूनम डुडेजा को देते हैं। वह कहते हैं कि मां की मेहनत और समर्पण ने निष्ठा को विश्व पटल पर पहचान दिलाई है। चेक गणराज्य में हुई ‘मिस डेफ वर्ल्ड 2018’ प्रतियोगिता में 45 देशों के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था। फाइनल राउंड में 24 बचे थे। स्पर्धा में मिस एवं मिस्टर वर्ल्ड, यूरोप एशिया चुना गया। इनमें चीन, ताइवान, थाईलैंड आदि देशों के प्रतिभागी शामिल थे। इन देशों में बच्चों को शुरुआत से तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है, फिर भी निष्ठा ने अपनी प्रतिभा के बल पर यह खिताब जीत लिया।
जन्म से नहीं सुन पाती थी
पिता वेदप्रकाश बताते हैं कि निष्ठा जन्म से सुन नहीं पाती। जब वह तीन साल की हुई तब हमें इसका पता चला। गुवाहाटी से आकर एम्स में दिखाया। डॉक्टर के बताते ही हमारे पैरों तले से जमीन खिसक गई। डॉक्टरों ने हमें समझाया फिर उसे कान में सुनने वाली मशीन लगाई, जिससे वह बहुत खुश हुई। हमने भी हमेशा उसे खुश रखने की ठान ली। यहीं से उसकी ट्रेनिंग का लंबा सफर शुरू हुआ, जिसे शब्दों में बता पाना मुश्किल है।
प्रशिक्षण लेकर सिखाया
मां-बाप के तौर पर हमने हर जगह से पढ़कर, प्रशिक्षण लेकर उसे सिखाया। मां पूनम कहती हैं- निष्ठा की लगन का कोई जवाब नहीं। उसने कई बार लोगों से ताने और अपमान के बोल सुने, हर बार नकारात्मकता को उसने ताकत बनाया। पिता वेदप्रकाश कहते हैं कि सरकार को ऐसे बच्चों के लिए जरूरी इंतजाम करने चाहिए। मैंने इस प्रतियोगिता के लिए दो साल तैयारी की। मेरे माता-पिता बचपन से ही मुझे प्रशिक्षण दे रहे थे। ऐसी प्रतियोगिताओं के लिए जिस तरह का ज्ञान और व्यक्तित्व चाहिए, वह मुझे परिवार से मिला। इसके अलावा मिस डेफ एशिया बनने के लिए मैंने डांस, मेकअप और रैंप पर चलना भी सीखा। इस साल फरवरी में मिस डेफ इंडिया का खिताफ जीता था। मैं जब भी देश के बाहर गई हूं, तो देखा कि वहां हमारे जैसे बच्चों को सम्मान और बराबरी से देखा जाता है। वहां सहानुभूति के बजाय हमारे जैसे बच्चों को ज्यादा मौके दिए जाते हैं। अपने देश में भी सोच के स्तर पर बदलाव होना चाहिए।
सात साल में स्पीच थेरेपी सीखी
निष्ठा के पिता वेदप्रकाश बताते हैं, निष्ठा ने सात साल तक स्पीच थेरेपी के जरिये बोलना सीखा। अब वह अपनी बात सही तरीके से रख लेती है। अंग्रेजी और हिंदी भाषा में अच्छी पकड़ है। कई साल पहले गुवाहाटी से दिल्ली ट्रांसफर कराने के बाद हमने यहां उसे सिखाना शुरू किया। कभी इंटरनेट तो कभी स्पेशल ट्रेनर के जरिये हमने उसे सिखाया। इसके लिए खुद भी बहुत सीखा। अब मैं कह सकता हूं कि ऐसे बच्चों को अगर बेहतर ढंग से पाला जाए तो वे बहुत प्रतिभावान साबित होते हैं।
प्रोफाइल
– केंद्रीय विद्यालय गोल मार्केट में दसवीं तक पढ़ीं
– 11वीं-12वीं एंबिंएंस पब्लिक स्कूल में पढ़ीं
– 12वीं में हिंदी और अंग्रेजी में 93 फीसदी नंबर
– वेंकटेश्वरा कॉलेज से बीकॉम में पढ़ाई
– टेनिस की अंतराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी रहीं
– सात साल की उम्र में जूडो का प्रशिक्षण लिया
– अभी मीठी बाई कॉलेज मुंबई से एमए इकोनॉमिक्स की छात्रा