साईं समाधि के 100 साल पुरे, कुछ ऐसा है 7 एकड़ में फैले शिरडी का इतिहास

साईं बाबा की समाधि के 100 साल पूरे हो चुके हैं. इस अवसर पर साईं बाबा के मंदिर में 17 से 19 अक्टूबर तक खास समारोह आयोजित किए जा रहे हैं. बता दें, इस साल खास मौके पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शिरडी में होने वाले भव्य आयोजन में कल शामिल हो सकते हैं. आइए जानते हैं शिरडी के इतिहास के बारे में…
माना जाता है कि वह पहले बाबा शिरडी आए थे और 1918 तक वो यहीं रहे थे. 15 अक्टूबर 1918 को बाबा ने शिरडी में समाधि ली थी, उस दिन दशहरा था. तब से ही हर साल दशहरे के दिन शिरडी में ये दिन खास रूप से मनाया जाता है. शिरडी के साईं की प्रसिद्धि दूर दूर तक है और यह पवित्र धार्मिक स्थल महाराष्ट्र के अहमदनगर के शिरडी गांव में स्थित है. यह साईं की धरती है जहां साईं ने अपने चमत्कारों से लोगों को विस्मृत किया. साईं का जीवन शिरडी में बीता जहां उन्होंने लोक कल्याणकारी कार्य किए.
शिरडी में साईं का एक विशाल मंदिर है. मान्यता है कि, चाहे गरीब हो या अमीर साईं के दर्शन करने इनके दरबार पहुंचा कोई भी शख्स खाली हाथ नहीं लौटता है. सभी की मुरादें और मन्नतें पूरी होती हैं.
शिरडी के साईं बाबा- शिरडी के साईं बाबा का वास्तविक नाम, जन्मस्थान और जन्म की तारीख किसी को पता नहीं है. हालांकि साईं का जीवनकाल 1838-1918 तक माना जाता है.
कब हुआ शिरडी का निर्माण: शिरडी का साईं मंदिर शिरडी गांव में साईं की समाधि के ऊपर बनाया गया है. साईं के कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए इस मंदिर का निर्माण 1922 में किया गया था. साईं 16 साल की उम्र में शिरडी आए और चिरसमाधि में लीन होने तक यहीं रहे. साईं को लोग आध्यात्मिक गुरु और फकीर के रूप में भी जानते हैं.
साईं मंदिर में दर्शन: साईं का मंदिर सुबह 4 बजे खुल जाता है. सुबह की आरती 5 बजे होती है. इसके बाद सुबह 5.40 से श्रद्धालु दर्शन करना शुरू कर देते हैं जो दिनभर चलता रहता है.
इस दौरान दोपहर के वक्त 12 बजे और शाम को सूर्यास्त के तुरंत बाद भी आरती की जाती है. रात 10.30 बजे दिन की अंतिम आरती के बाद एक शॉल साईं की विशाल मूर्ति के चारों ओर लपेट दी जाती है और साईं को रुद्राक्ष की माला पहनाई जाती है. इसके पश्चात मूर्ति के समीप एक गिलास पानी रख दिया जाता है और फिर मच्छरदानी लगा दिया जाता है. रात 11.15 बजे मंदिर का पट बंद कर दिया जाता है.
साईं समाधि के 100 साल: ऐसा है 7 एकड़ में फैले शिरडी का इतिहास बाबा ने अपना ज्यादातर वक्त शिरडी के द्वारका माई में बिताया, जहां उनकी इस्तेमाल की गई चीजें आज भी सहज के रखी गई हैं.