अमित शाह ने कहा- UP में मायावती और अखिलेश यादव मिलकर 2019 में बनाये सरकार
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आएरएसएस) और बीजेपी संगठन नेताओं के साथ लखनऊ की समन्वय बैठक में अमित शाह ने कहा कि वह खुद चाहते हैं कि मायावती और अखिलेश यादव मिलकर करके 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ें ताकि गठबंधन की भ्रांति भी दूर हो सके.
हालांकि सूबे की सियासत पर नजर रखने वाले लोग इस बात को मानते हैं कि सपा-बसपा का गठबंधन बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. बावजूद इसके क्या बीजेपी अध्यक्ष वाकई चाहते हैं कि गठबंधन हो या फिर पार्टी कार्यकर्ताओं का महज मनोबल को बढ़ाने के लिए ये बात कह रहे हैं, यह साफ नहीं है.
बता दें कि देश की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. लोकसभा 2019 में विपक्ष खासकर मायावती और अखिलेश यादव जैसे यूपी के दो बड़े क्षत्रप गठबंधन कर बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी के लिए इसी रास्ते को रोकने की कोशिश में हैं.
उत्तर प्रदेश के बदलते राजनीतिक समीकरण के मद्देनजर समन्वय बैठक में चर्चा हुई. सपा और बसपा के गठबंधन से उभरने वाले राजनीतिक चुनौतियां पर भी बीजेपी की तरफ से कई नेताओं ने चिंता जाहिर करते हुए अपनी बातें रखीं. इस बात पर अमित शाह ने पार्टी नेताओं से साफ कहा कि वह खुद चाहते हैं कि सूबे में सपा-बसपा जरूर गठबंधन करके बीजेपी से चुनाव लड़े ताकि गठबंधन की भ्रांति भी दूर हो सके.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भले ही सपा-बसपा के गठबंधन को लेकर चिंतित नजर न आ रहे हों. लेकिन वाकई अगर दोनों दल साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरते हैं तो बीजेपी के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 जैसे नतीजे दोहराना मुश्किल हो सकता है.
2014 में सपा-बसपा एक होते तब
गौरतलब है कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था और तब बीजेपी गठबंधन को 80 में से 73 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि वोटों के आंकड़े देंखे और अगर 2014 में सपा-बसपा मिलकर उतरते तो तस्वीर अलग होती. मोदी लहर में बीजेपी को 37 सीटों पर जीत मिलती, जबकि 41 सीटें सपा-बसपा के खाते में होती.
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 42.30 फीसदी वोट मिले थे. जबकि सपा-बसपा को कुल मिलाकर 41.80 फीसदी वोट मिले थे. कांग्रेस को तब 7.5 फीसदी वोट मिले थे. ऐसे में अगर सपा, बसपा और कांग्रेस मिलते है ये वोट 50 फीसदी के करीब होता.
2017 के लिहाज से बीजेपी को नुकसान
2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में मिले वोटों के आंकड़ों के लिहाज से देंखे तो यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से सपा-बसपा के खाते में 57 सीटें मिलती और उन्हें औसतन 1.45 लाख वोटों से जीत होती. जबकि बीजेपी के खाते में 23 सीट आती और उन्हें औसतन 58 हजार वोटों के लीड से जीत मिलती. वाराणसी, मथुरा, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध सीटों को 1 लाख से जीत मिलती.
बीजेपी इस उम्मीद में है कि अगर सपा-बसपा एक साथ आते हैं. चुनाव में दोनों पार्टियों के वोट एक दूसरे के लिए ट्रांसफर नहीं होंगे, क्योंकि दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच छत्तीस के आंकड़े रहें हैं. ऐसे में बीजेपी को फायदा मिल सकता है.
हालांकि बीजेपी की इस उम्मीद पर उपचुनाव के नतीजे पानी फेर रहे हैं. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में सपा-बसपा के एक साथ आने का बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को अपनी सीटें गवांनी पड़ी है.
दरअसल, उपचुनाव में बीजेपी को मिली हार के बाद भी अमित शाह अगर सपा-बसपा के गठबंधन की चाहत रखते हैं. इसके पीछे माना जा रहा है कि पिछले दिनों यूपी में बीजेपी के द्वारा हुए ओबीसी के जातिगत सम्मेलन और दलित सम्मेलन का पार्टी को फायदा मिलेगा. सपा-बसपा के ये मूल वोटबैंक माने जाते हैं. ऐसे में अब देखना होगा कि 2019 में सपा-बसपा के साथ आने का बीजेपी को फायदा मिलता है या फिर नुकसान?