ज्योतिष डेस्क : यम द्वितीया कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाए जाने वाला हिन्दू धर्म का एक त्योहार है जिसे भइया दूज भी कहते हैं। भैया दूज में हर बहन रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं। कार्तिक सुदी दौज को मथुरा के विश्राम घाट पर भाई–बहन हाथ पकड़कर एक साथ स्नान करते हैं। यह ब्रज का बहुत बड़ा पर्व है। यम की बहन यमुना है और विश्वास है कि आज के दिन जो भाई–बहन यमुना में स्नान करते हैं, यम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता। यहाँ यमुना स्नान के लिए लाखों में दूर–दूर से श्रद्धालु आते हैं और विश्राम घाट पर स्नान कर पूजा आर्चना करते हैं। बहनें भाई को रोली का टीका भी करती हैं। यम द्वितीया का त्योहार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष में द्वितीया तिथि को मानाया जाता है। इस त्योहार के प्रति भाई बहनों में काफ़ी उत्सुकता रहती है और वे इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। इस दिन भाई-बहन सुबह सवेरे स्नान करके नये वस्त्र धारण करते हैं। बहनें आसन पर चावल के घोल से चौक बनाती हैं। इस चौक पर भाई को बैठा कर बहनें उनके हाथों की पूजा करती हैं।
यम द्वितिया या भैजा दूज का पौराणिक महत्व है। वर्षों से ये मान्यता चली आ रही है कि इस दिन यमुना में भाई-बहन के एक साथ डुबकी लगाने से यम की फांस से मुक्ति मिलती है। इस दिन भाई-बहन एक दूसरे का हाथ पकड़कर यमुना में स्नान करते हैं। ऐसा करने से जन्म मरण के बंधन से मुक्ति मिलती है। दीपावली के पांच महोत्सवों का अन्तिम पड़ाव यम द्वितीया है। कथा इस प्रकार है की ऋषि कश्यप एवं अदिति के संयोग से सूर्य अवतरित हुए थे जिनके संज्ञा, राका और प्रभा नामक तीन रानियां थीं। रानी संज्ञा के गर्भ से पुत्र के रुप में यम तथा पुत्री के रुप में यमी(यमुना) का जन्म हुआ था. संज्ञा देवी पति सूर्य की उद्दीप्त किरणों को न सह सकने के कारण उत्तरी ध्रुव प्रदेश में छाया बन कर रहने लगीं। उसी छाया से ताप्ती नदी तथा शनीचर का जन्म हुआ। भगवान सूर्य ने यम को नर्कलोक तथा यमी को देवलोक का शासन सौंपा था।पिता की आज्ञा से यम देव ने यम लोक बसाया तथा दण्ड देने का कार्यभार संभाला जबकि यमुना ने श्री कृष्ण के अवतार के पहले भू लोक पर आकर मथुरा में विश्राम घाट पर जल महल बनवाया और वहीं तपस्या में लीन हो गयीं। यमराज राजकाज में इतना अधिक व्यस्त हो गये कि उन्हें बहन यमुना की याद ही नहीं रही। हिंदू धार्मिक किंवदंतियों के मुताबिक यमुना भगवान कृष्ण की पत्नी पटरानी भी थी।
श्रीकृष्ण के जन्म के समय सूर्य पुत्री यमुना और पुत्र यमराज भगवान कृष्ण के दर्शन को आए। दोनों भाई-बहन यमुना किनारे विश्राम घाट पर यमद्वितीया के दिन ही एक दूसरे से मिले थे।यमुना ने अपने भाई का इतना अधिक सत्कार किया कि वह भावविभोर हो गये और उन्होंने यमुना से वरदान मांगने को कहा। यमुना ने कहा कि दीपावली के बाद यम द्वितीया के दिन जो बहनें अपने भाइयों का टीका करें उनकी रक्षा हो। यह वरदान देकर यमराज ने यमुना से एक और वरदान मांगने को कहा। यमुना ने कहा कि जो लोग इस दिन यमुना में स्नान करें वे उनके लोक न जायें। इस मांग पर यमराज धर्मसंकट में पड गये और यमुना से इसमें संशोधन करने को कहा क्योंकि ऐसा होने पर तो उनका लोक ही खाली हो जाता। इस पर यमुना ने उनसे यह वरदान लिया कि यम द्वितीया पर जो भाई बहन साथ-साथ विश्राम घाट पर यमुना में स्नान करेंगे वे यम लोक नहीं जायेंगे। इसके बाद से ही यम द्वितीया पर भाई बहन साथ साथ यमुना में डुबकी लगाते हैं तथा निकट बने धर्मराज मन्दिर में दर्शन करते हैं। इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कुछ मन्त्र बोलती हैं जैसे “गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े” इसी प्रकार कहे इस मन्त्र के साथ हथेली की पूजा की जाती है “सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे” इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे।
कहीं-कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिश्री खिलाती हैं। सन्ध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस संदर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बहनों का संदेश सुनाएगा।