दुल्हन को गोद में उठाकर डोली में बैठाने के खिलाफ देवबंद ने जारी किया फतवा
पश्चिम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के इलाकों में शादी के दौरान विदाई के समय दुल्हन को मामा गोद में लेकर कार या फिर डोली में बिठाने की पंरपरा है. दारुल उलूम देवबंद ने फतवा जारी करते हुए इस रस्म को गैर इस्लामिक बताया और खत्म करने की बात कही है.
दारुल उलूम ने तर्क दिया है कि इस रस्म को निभाते वक्त मामा या भांजी दोनों में से किसी एक मन में काम-वासना आ सकती है. फतवे में कहा गया है कि माम-भांजी का रिश्ता पवित्र होता है. ऐसे में विदाई के दौरान मामा के भांजी को गोदी में उठाने के बजाय बेहतर यह होगा कि दुल्हन खुद चलकर जाए या उसकी मां उसे लेकर जाए.
फतवा में कहा गया है कि शादी के दौरान भांजी बड़ी हो चुकी होती है ऐसे में मामा का गोद में उठाना सही नहीं है. इस्लामिक शरियत की निगाहों में तो इसे तरह की पंरपरा को स्वीकार नहीं किया जा सकता. रस्म निभाते वक्त मामा या भांजी के मन में काम-वासना जाग सकती है. ऐसे में इस तरह की पंरपरा को खत्म किया जाना चाहिए.
भांजी को गोद में उठाकर विदा करने की प्रथा के अलावा दारुल उलूम ने एक और फतवा जारी किया है. पश्चिम यूपी में मुस्लिमों की शादी की तारीख भेजने के लिए ‘लाल खत’ के इस्तेमाल को भी दारुल उलूम ने गलत बताया है.
दारुल उलूम देवबंद की नजर में यह प्रथा गैर मुस्लिमों से मुस्लिम समुदाय के बीच आई है. इस्लाम में ‘लाल खत’ भेजना या उसे ग्रहण करना दोनों इस्लाम में जायज नहीं है. लाल खत’ की जगह चिट्ठी के इस्लेमाल या फोन पर बातचीत कर तारीख तय की जाना चाहिए. इसके साथ ही ये भी कहा गया है कि ऐसे जेवर भी न पहनें जाने चाहिए जिस पर कोई छवि बनी हो.