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संसदीय समिति के सामने आज किसानों पर नोटबंदी के असर को लेकर उर्जित पटेल से किये जायेंगे सवाल

केन्द्रीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल मंगलवार को संसदीय स्थायी समिति के सामने पेश होंगे. इस दौरान संसदीय समिति पटेल से अर्थव्यवस्था पर नोटबंदी के असर पर सवाल पूछेगा. सूत्रों के मुताबिक नोटबंदी के सवालों के साथ-साथ संसदीय समिति पटेल से हाल में केन्द्र सरकार और रिजर्व बैंक के बीच उपजे विवाद पर भी सवाल दाग सकते हैं. इसके साथ ही समिति केन्द्रीय बैंक में प्रशासनिक सुधार की जरूरत पर भी सवाल कर सकती हैं.

इससे पहले भी संसदीय स्थायी समिति ने रिजर्व बैंक गवर्नर को तलब किया है और नोटबंदी, बैंकों के एनपीए की समस्या समेत कई सवालों पर अपना पक्ष रखने के लिए कहा था. एक बार फिर समिति रिजर्व बैंक प्रमुख से नोटबंदी के फैसले का देश के किसानों पर हुए असर पर सवाल पूछ सकती है.

गौरतलब है कि बीते हफ्ते सोमवार को केन्द्रीय बैंक के बोर्ड की अहम बैठक हुई थी जिसमें बैंक बोर्ड ने देश में तरलता की समस्या पर चर्चा की थी. इस समस्या के चलते बीते एक महीने से केन्द्र सरकार और केन्द्रीय बैंक के बीच खींचतान की स्थिति बनी हुई है.

इस मुलाकात में केन्द्रीय बैंक बोर्ड ने रिजर्व बैंक के इकोनॉमिक कैपिटल फ्रेमवर्क में संशोधन के लिए एक्सपर्ट समिति गठित करने का फैसला लिया था. इस समिति को यह फैसला करना है कि केन्द्रीय बैंक कितनी मुद्रा अपने रिजर्व में रख सकती है और रिजर्व मुद्रा का कितना हिस्सा केन्द्र सरकार के हवाले कर सकती है.

वैश्विक स्तर पर काम करने वाली एक वित्तीय कंपनी की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक के पास इस समय ‘आवश्यकता से अधिक आरक्षित धन’ है और ऐसे धन की पहचान के लिए गठित की जाने वाली विशेष समिति ने सिफारिश की तो केंद्रीय बैंक सरकार को एक लाख करोड़ रुपये तक की राशि सरकार को हस्तांतरित करने की स्थिति में है.

बैंक आफ अमेरिका मैरिल लिंच के विश्लेषकों ने जारी एक नोट में कहा, ‘हमारा अनुमान है कि रिजर्व बैंक के आर्थिक पूंजी ढांचे की रूपरेखा (ईसीएफ) के उचित स्तर की पहचान करने को लेकर गठित होने वाली समिति एक से तीन लाख करोड़ रुपये की राशि को अतिरिक्त कोष बता सकती है. यह राशि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.5 से लेकर 1.6 फीसदी तक है.’

रिपोर्ट में इसका ब्यौरा देते हुए कहा गया है कि यदि रिजर्व बैंक के आकस्मिक कोष को आरबीआई की बैलेंस-शीट के 3.5 प्रतिशत तक पर सीमित रखा जाता है, तो इसमें बचने वाली 1,05,000 करोड़ रुपये सरकार को हस्तांरित किए जा सकते हैं. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यह स्तर ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाओं के औसत स्तर से 75 प्रतिशत ऊंचा होगा.

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