पांच सालों में नवोदय विद्यालय के 49 छात्रों ने की आत्महत्या
इन सब में सात आत्महत्या को छोड़कर बाकी सभी गले में फंदा लगाने से हुई हैं। शव को या तो सहपाठी ने या फिर स्कूल कर्मचारी के किसी सदस्य ने देखा था। बोर्ड परीक्षा में बेहतरीन परिणाम लाने के लिए जाना जाने वाला जेएनवी हजारों गरीब और वंचित बच्चों के लिए गरीबी से बाहर निकलने का एक सुनहरा मौका होता है। इस स्कूल की स्थापना 1985-86 के बीच हुई थी। 2012 से लगातार स्कूल का 10वीं का परिणाम 99 और 12वीं का 95 प्रतिशत रहा है। यह परिणाम निजी स्कूलों और सीबीएसई के राष्ट्रीय औसत से कहीं ज्यादा बेहतर है।
नवोदय विद्यालय समिति मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक स्वायत्त संगठन है जो देशभर में 635 स्कूल संचालित करता है। विद्यालय की वेबसाइट के अनुसार, नवोदय विद्यालय प्रणाली जोकि एक अद्वीतीय प्रयोग के तौर पर शुरू हुई थी वह आज भारत में स्कूली शिक्षा के मामले में बेजोड़ बन गई है। नियमों के अनुसार स्कूल की 75 प्रतिशत सीट ग्रामीण छात्रों के लिए आरक्षित होती हैं। इसी वजह से 100 प्रतिशत आबादी वाले जिलों में कभी जेएनवी को मंजूरी नहीं दी जाती है।
वर्तमान में 635 जेएनवी में 2.8 लाख बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। 31 मार्च 2017 तक 9 से 19 साल की उम्र के कुल 2.53 लाख बच्चों ने लगभग 600 जेएनवी में दाखिला लिया। 2013 में 8 बच्चों ने, 2014 में 7, 2015 में 8, 2016 में 12 और 2017 में 14 बच्चों ने आत्महत्या की। जेएनवी में आत्महत्या करने वाले 16 बच्चे अनुसूचित जाति के थे। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों की संख्या को मिलाकर यह आंकड़ा 25 हो जाता है। वहीं सामान्य और पिछड़ी जाति के 12-12 बच्चों ने मौत को गले लगाया है।