मंत्र वह ध्वनि हैं जो अक्षरों एवं शब्दों के समूह से बनती है। मंत्र मात्र वे ध्वनियां नहीं हैं जिन्हें हम कानों से सुनते हैं ये ध्वनियां तो मंत्रों का लौकिक स्वरूप भर हैं। ध्यान की उच्चतम अवस्था में साधक का आध्यात्मिक व्यक्तित्व पूरी तरह से प्रभु के साथ एकाकार हो जाता है जो अंतर्यामी हैं। भगवान शंकर ने मस्तक में ही चंद्रमा को दृढ़ कर रखा है लिहाजा साधक की साधना निर्विघ्न सम्पन्न होती चली जाती है। इस निर्विघ्न साधना में मंत्रों का साथ बेहद महत्वपूर्ण है।श्रावण मास के अलावा वर्ष भर महामृत्युंजय मंत्र जपने से अकाल मृत्यु टलती है। आरोग्यता की प्राप्ति होती है। मंत्र इस प्रकार है ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवद्र्धनम्।उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।स्व: भुव: भू: ॐ स: जूं हौं ॐ