शिवकुमार स्वामी है लिंगायतों के गुरु, मोदी-राहुल तक लेते थे आशीर्वाद
लिंगायत संत डॉ. शिवकुमार स्वामी का तुमकुरु स्थित सिद्धगंगा मठ में सोमवार को 111 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके निधन पर कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा ने इसे राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति बताया. उन्होंने कहा कि स्वामी जी 111 साल में से 90 साल काम ही करते रहे. डॉ. शिवकुमार स्वामी जी की राजनीतिक हलको में गहरी पैठ थी. उनसे आर्शीवाद लेने के लिए राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर तमाम बड़े नेता मठ में आते थे.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इनके मठ पहुंचे थे. साथ में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और कई कांग्रेस नेता भी उनके साथ थे. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और कर्नाटक के सीएम एचडी कुमारस्वामी भी शिवकुमार स्वामी से आर्शीवाद लेने के लिए उनके मठ में हाजिरी लगा चुके हैं.
अन्य लिंगायत साधुओं से अलग स्वामी ने खुद को सियासत से दूर ही रखा है. बीएस येदियुरप्पा जब मुख्यमंत्री थे, तब वे हर हफ्ते मठ का दौरा करते थे. वे महंत से निर्देश भी लेते थे लेकिन डॉ. शिवकुमार स्वामी ने उनका पक्ष कभी नहीं लिया.
स्वामी लिंगायत धर्म से ताल्लुक रखते हैं फिर भी उनके पास हिंदू बहुतायत में आते हैं क्योंकि लोग उन्हें जाति, धर्म और कर्म से परे मानते हैं. कर्नाटक सरकार ने उन्हें सबसे बड़े राजकीय सम्मान ‘कर्नाटक रत्न’ से नवाजा है. सिद्धारमैया सरकार ने केंद्र से आग्रह किया था कि शिवकुमार स्वामी को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ मिले, अब बाकी नेताओं ने भी इस मांग को दोहराया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी महंत शिवकुमार स्वामी का आशीर्वाद ले चुके हैं. वहीं, सोनिया गांधी भी यहां आ चुकी हैं. सिद्धगंगा मठ का राजनीतिक प्रभाव ऐसा है कि शायद ही कोई नेता यहां आने से बचा हो.
शिवकुमार स्वामी को कर्नाटक में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले महंत माने जाते हैं. उनके शिष्य उन्हें ‘जीता-जागता भगवान’ मानते हैं.
600 साल पुराने इस मठ का प्रभाव मैसूर इलाके में काफी ज्यादा है. एक अप्रैल 1907 को पैदा हुए शिवकुमार स्वामी 1930 में लिंगायत साधु बने.
मठ के स्वामीजी काफी शिक्षित हैं. करीब 50 साल पहले इन्होंने गरीब बच्चों के लिए मठ में बोर्डिंग स्कूल की शुरुआत की. मठ के गुरुकुल में 5 से 15 साल के फिलहाल 8500 बच्चे शिक्षा ले रहे हैं. श्रद्धालु मठ में अपना योगदान या तो चंदे के रूप में या फिर सामान देकर करते हैं. ये मठ मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज भी चलाता है.
अन्य लिंगायत साधुओं से अलग स्वामी ने खुद को सियासत से दूर ही रखा है. बीएस येदियुरप्पा जब मुख्यमंत्री थे, तब वे हर हफ्ते मठ का दौरा करते थे. वे महंत से निर्देश भी लेते थे लेकिन डॉ. शिवकुमार स्वामी ने उनका पक्ष कभी नहीं लिया.
जब लिंगायतों को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की बात हुई तो महंत ने अपने को इससे अलग ही रखा. उन्होंने इस मुद्दे पर अपना स्टैंड रखने से इनकार कर दिया था.