इस बार होंगे अक्षय वट और सरस्वती कूप के दर्शन
प्रयागराज में स्थित अकबर के किले में एक ऐसा वट है जो कभी यमुना नदी के किनारे हुआ करता था और जिस पर चढ़कर लोग मोक्ष की कामना से नदी में छलांग लगा देते थे। इस अंधविश्वास ने अनगिनत लोगों की जान ली है। शायद यही कारण है कि अतीत में इसे नष्ट किए जाने के अनेक प्रयास हुए हालांकि यह आज भी हरा-भरा है। यह ऐतिहासिक वृक्ष किले के जिस हिस्से में आज भी स्थित है वहां आमजन नहीं जा सकते। यूं तो अक्षयवट का जिक्र पुराणों में भी हुआ है पर वह वृक्ष अकबर के किले में स्थित यही वृक्ष है कि नहीं, यह कहना आसान नहीं। हिन्दुओं के अलावा जैन और बौद्ध भी इसे पवित्र मानते हैं। कहा जाता है बुद्ध ने कैलाश पर्वत के निकट प्रयाग के अक्षय वट का एक बीज बोया था। जैनों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। प्रयाग में इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली (या तपोवन) के नाम से जाना जाता है। संगम तट पर स्थित इस अक्षय वट वृक्ष के बारे में सबसे पहले चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 644 ई में वर्णन किया है। यात्रियों को पातालपुरी मंदिर, अक्षय वट और अशोका वृक्ष देखने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। हिंदू धर्म के प्रमुख चार बरगद के वृक्षों में से एक अक्षय वट है। प्रयाग (इलाहाबाद) में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट जिसे बौद्धवट भी कहा जाता है और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है।
पातालपुरी मंदिर के भीतर स्थित इस अक्षय वट को अमर वृक्ष भी कहते हैं। पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बाल रूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय वट के संदर्भ में कालिदास के रघुवंश तथा चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों में मिलते हैं। भारतवर्ष में क्रमश: चार पौराणिक पवित्र वटवृक्ष हैं-गृद्धवट-सोरों ‘शूकरक्षेत्र’, अक्षयवट- प्रयाग, सिद्धवट-उज्जैन और वंशीवट-वृन्दावन। श्रद्धालुओं की अक्षय वट और सरस्वती कूप के दर्शन की मांग को आखिरकार मानते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे कुंभ में आने वाले तीर्थयात्रियों को अमूल्य उपहार दिया है। अकबर के किले में सरस्वती कूप के साथ ही अक्षयवट भी है। इसे खोले जाने की मांग 1932 में पहली बार महामना मदन मोहन मालवीय ने उठाई थी। उसके बाद से लगातार कई बार यह मांग उठती रही। कहा जाता है कि इस किले को मुगल सम्राट अकबर ने 1583 ईसवी में बनवाया था। किले का कुछ ही भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बाकी हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। यहां अक्षय वट के नाम से मशहूर बरगद का एक पुराना पेड़ और पातालपुर मंदिर भी है। विशेषज्ञों की मानें तो सरस्वती कूप को त्रिवेणी की गुप्तधारा मानी जाती है। यह अकबर किले के पश्चिमी हिस्से में स्थित है। ’