फैसला
सोफे पर अधलेटा सा सन्नी मेज पर अपनी टांगे पसारे टेलिविजन पर समाचार देख रहा था। जेड गूडि की आकस्मिक मृत्यु की खबर सुन कर वह मन ही मन कलपने लगा कि वह कहां रेचल मूर से ब्याह रचा के फंस गया। जेड का इक्कीस साल का ब्वाय-फ्रैंड उसके बच्चों को पाले न पाले, करोड़पति तो बन ही गया था। मां की बात मान लेता तो आज वह भी एक ‘सोनी इंडियन कुड़ी’ से ब्याह रचाकर घर बसाता जो पैसा लाती न लाती, उसके आगे पीछे घूमती और मां के भी पांव दबाती, कुछ भी हो, मीता भाभी की डाक्टर भतीजी इस गोरी भूतनी से तो अच्छी ही रहती। घर में सबकी सेहत का ध्यान रखती और बंधा हुआ वेतन घर में लाती। उसके भाईया-भाभी हमेशा-हमेशा के लिए ख़ुश हो जाते और जैसा कि चन्नी कहता था कि ‘सोसाइटी’ में उसकी इज्जत भी बढ़ जाती। कम से कम, जैसा कि उसकी मां अमृत कहती थी, रेचल मूर के ‘फकिंग ये’ और ‘फकिंग वो’ से उसके घर आंगन तो दूषित नहीं होते। ‘इफ यू वर ए लिट्टल बिट स्मार्ट रेच, सन्नी वुड डांस अरायुंड यौर लिट्टल फिंगर’ रेचल की बदमिजाज चील जैसी मां नोरीन, रेचल को अलग भड़काती रहती थी। ‘मम, ही विल लीव मी फौर शयोर’ रेचेल को डर था कि अमृत के बहकावे में आकर सन्नी उसे कहीं छोड़ ही न दे। ऐसा हैंडसम और कमाउ पति उस जैसी दसवीं फेल को कहां मिलेता? ‘यू फूल, ईवन इफ ही वांट्ड टु, ही कांट’ नोरीन सच ही कह रही थी। सन्नी चाहता भी तो रेचल को छोड़ नहीं सकता था। तलाक की स्थिति में उसकी पिचहत्तर प्रतिशत आमदनी सीधे-सीधे रेचल को मिलने लगेगी।
उसके पास क्या बचेगा? उसके दो बच्चों, कारा और शौन, के रख-रखाव के मुद्दे को लेकर रोज की किटकिट से कौन निबटेगा? उसके हम-प्याला और हम-निवाला दोस्तों के अनुसार उसे रेचल को छोड़ने का विचार भी मन से निकाल देना चाहिए था। ‘मस्ती करने से तुझे कौन रोकता है, सन्नी? ज्यादा झिक-झिक करे तो तू उसे फूल या एक सस्ता सा तोहफा देकर उसका मुंह बंद कर देना।’ राजन ने सलाह दी। ‘होर कुज नई ते तेरी सैलेरी तो तेरे कोल रउगी, तू शान नाल गुलछर्रे उड़ा सकदा ए।’ कुलविन्दर ने कहा। ‘मेट, विद टू लिट्टल वाज, वेयर विल शी फाइंड टाइम टु फौलो यू ऐनिवे?’ डैन्नी ने कहा। ‘यार, सुबह-शाम कोई क्या-क्या बहाने मारे?’ सन्नी खीझते हुए बोला। ‘सन्नी, बहानों की क्या कमी है। रोज कितनी ट्रेनें कैंसल हो जाती हैं, ट्रैफिक की हालत तो सभी को मालूम ही है। बिना नोटिस के ओवरटाइम करना पड़ता है…’ राजन ने बहाने गिनवाने शुरु किए। ‘ओए सन्नी, तैनूं रात वी बार गुजारनी पवे तो सानु दस, अस्सी तेरी एलीबाई बनन नू तैय्यार हन, वरी नौट’ आंख मारते हुए कुलविन्दर ने कहा। ‘यू आर ए मेट, कुलविन्दर’ डैनी ने कुलविन्दर के गले में हाथ डालते हुए कुछ इस तरह कहा कि जैसे उसे एलीबाई की जरूरत थी। ‘ओए, यारां दे यार हां अस्सां’ कुलविन्दर को अच्छा लगा कि डैनी ने उसके सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, जो उससे कभी सीधे मुंह बात करने को राजी न था।
सन्नी ये सब तरीके पहले से ही आजमा चुका था और धीरे-धीरे वह निडर भी होता जा रहा था किंतु नोरीन उसके झूठ एक नजर में ताड़ जाती थी। उसके सिखाए में आकर रेचल कभी-कभी बच्चों समेत उसी के घर जा बैठती तो नोरीन को लगता कि जैसे उसने अपने पांव पर ख़ुद ही कुल्हाड़ी मार ली क्योंकि सन्नी और अमृत रेचल को वापिस आने के लिए फोन तक नहीं करते थे। अमृत रोज बेटे के लिए ताजा और स्वादिष्ट भोजन पकाती, वह मजे से खाता और फिर बैठकर दोनों गप्पें मारते। ‘यू डोन्ट वांट अस टु बी हैप्पी’ मुंह फुलाए वापिस लौटकर रेचल अमृत को दोषी ठहराती और एक बार फिर घर में क्लेश मच जाता। सन्नी सोचता कि न जाने वो कौन सा दिन था जब वह रेचल की सफेद चमड़ी और हरी आंखों पर फिदा हो गया था। दोस्तों ने उसे चुनौती दी थी कि वह रेचल के साथ एक रात बिताए तो वे उसका लोहा मान जाएंगे। सन्नी से शर्त लगाने में उसके दोस्तों को मजा आता था क्योंकि वह बड़े से बड़ा जोखिम उठाने को झट तैय्यार हो जाता था। इस बार सन्नी को कोई मुश्किल नहीं हुई थी क्योंकि किशोरी रेचल तो मानो इसके लिए तैय्यार ही बैठी थी। वह तो उसके चुम्बनों से ही आतंकित हो गया था पर रेचल रोके नहीं रुकी थी। ईश्क का भूत जब दोनों के सिर से उतरा तब तक वे कारा नाम की एक बच्ची के मां-बाप बन चुके थे। उस समय रेचल केवल सतरह बरस की थी और सन्नी उन्नीस का। सन्नी की शादी धूमधाम से रचाने के सारे अरमान खाक हो गए थे। अमृत की तो बात ही छोड़ो, रेचल के घरवालों ने सन्नी को भी एक कमीज तक नहीं दी थी। और तो और, वे बरातियों को भोजन कराने के लिए भी तैय्यार नहीं थे। यह खर्चा भी अमृत के सिर पर आ पड़ा था क्योंकि सन्नी की कमाई तो उसके एशो आराम के लिए ही काफी नहीं थी। रेचल के सगे भाई और बहन, दो सौतेले भाई, सौतेला पिता और उसकी पत्नी, नोरीन और उसके पीहर वाले सब सज-धज के चले आए थे। कोक की बड़ी बोतलें वे सीधे मुंह लगाकर पी रहे थे। बियर के क्रेट के क्रेट ख़ाली हुए जा रहे थे और अभी सन्नी के दोस्त और अमृत के रिश्तेदार पहुंचे भी नहीं थे। अमृत के लिए यह सब बहुत अजीब था कि बेटे की मां भागदौड़ कर रही थी और बहु के घरवाले मजे कर रहे थे। अमृत के हाथ-पांव जोड़ने पर बड़ा बेटा चन्नी शादी के लिए लन्दन तो आ गया पर जैसे ही वह रेचल और उसके परिवार से मिला, उसने अपनी नाराजगी साफ जाहिर कर दी। ‘तो तूने अपने स्टैंडर्ड की कुड़ी ढूंढ ही ली? तूने तो कसम खाई हुई है हमारे खानदान का नाम डुबोने की’ चन्नी और सन्नी के बीच फंसी अमृत बड़ी मुश्किल में थी। किसी की भी तरफदारी लेना उसे बहुत भारी पड़ सकता था। जाहिर था कि मीता ने विवाह में आने से साफ इन्कार कर दिया था और बच्चों को भी नहीं भेजा था। यदि सन्नी लता से विवाह कर लेता तो भाइयों के बीच की खाई किसी तरह पट जाती।
‘तू अपना स्टैंडर्ड कायम रख, जैसे भी हैं हम ख़ुश हैं, तुझसे मांगने तो नहीं आते’ सन्नी कहां पीछे रहने वाला था। अमृत के बीच-बचाव के बावजूद भाइयों में जम कर युद्ध हुआ और अंत में दोनों ने भविष्य में न मिलने की कसम खाई। सन्नी का मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं था और इसीलिए उसके पिता और भाई उसे हमेशा दुत्कारते रहते थे। अमृत को याद आई अपने बड़े बेटे चन्नी की शादी, जिसमें मीता के घरवालों ने उन्हें जमीन पर पांव तक नहीं रखने दिया था। कैसी खातिर की थी और क्या नहीं दिया था दहेज में उन्होंने? आसमान पर चढ़ाकर जैसे किसी को जमीन पर धकेल दिया गया हो, ऐसा ही महसूस हुआ था अमृत को जब मीता और चन्नी अमेरिका जा बसे थे। अमृत उनके बच्चों को देखने को तरस गई थी। आर्यन पांच का हो चला था और छोटा अर्णव इस अक्तूबर में तीन बरस का हो जाएगा। बहुत जिद करने पर दो साल पहले चन्नी ने दो तस्वीरें भेजी थीं, न जाने वे अब कैसे लगते होंगे? पिता की मौत के वक्त जब चन्नी आया था तो सिर्फ तेरहवीं तक ही रुका था। सब कुछ बेचारे सन्नी ने ही सम्भाला। अमेरिका लौटने के बाद चन्नी ने उसे फोन तक नहीं किया कि मां जिन्दा भी थी कि मर खप गई। फिर भी अमृत को चन्नी की बहुत याद आती थी। न जाने वह उसके परिवार को कभी देख भी पाएगी कि नहीं! अमृत यही सोच के तसल्ली कर लेती थी कि चलो सन्नी और उसका परिवार तो उसके पास है। शुरू-शुरू में तो रेचल भी एक ‘आइडियल इंडियन’ बहु बनी रही, भारतीय गहने और कपड़े पहन कर वह सन्नी और सास को ख़ूब रिझाती। अमृत ने भी अपने कीमती जेवर और भारी साड़ी आदि पहना कर रेचल ने ख़ूब लाड़ किए। गोरी बहु को अपने सम्बन्धियों और सहेलियों के बीच प्रदर्शित करते हुए उसका सिर गर्व से ऊंचा हो जाता था कि देखो गोरी होते हुए भी उनकी बहु कैसी विनम्र और सुघड़ थी।
पोती के जन्म पर अमृत की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था क्योंकि उसके अपने दो बेटे ही थे। चन्नी और सन्नी यानि कि चन्दर और सुनील, चन्नी के भी कोई बेटी नहीं थी। बच्ची के नामकरण पर अमृत, नोरीन और रेचल की ख़ूब लड़ाई हुई। ‘भला ‘कारा’ भी कोई नाम हुआ, कारा का मतलब हिन्दी में काला होता है।’ अमृत कहती रह गई पर नोरीन और रेचल के सामने उसकी एक नहीं चली। ‘मैं और सन्नी तो उसे राका ही कहकर बुलाएंगे, क्यों सन्नी?’ नोरीन और रेचल की सख़्त हिदायत के बावजूद कारा, राका के नाम से दादी और पिता की बात सुन लेती थी, विशेषत: जब बात उसके अपने फायदे की होती। फिर जब पोता हुआ तो एक बार फिर वही जद्दोजहद पर इस बार सन्नी पहले से ही तैय्यार था। उसने बेटे का नाम ‘शान’ रखा था, रेचल और उसके घर वाले उसे ‘शौन’ पुकार कर ख़ुश थे।
शान के जन्म के बाद कारा बहुत चिड़चिड़ी हो गई और दो बच्चों को सम्भालना रेचल के लिए कठिन हो गया। कारा चौबीसों घंटे रोती चिल्लाती, शान को पीटती या काटती। अमृत शान को सीने में छिपाए रखती कि कहीं कारा उसे मार ही न डाले। इससे राका और चिढ़ जाती। अमृत और रेचल के बीच भी तनाव बढ़ने लगा। एक दिन रेचल ग़ुस्से में अमृत के दिए हुए पंजाबी सूट्स औक्सफैम को दे आई तो अमृत जल भुन के राख़ हो गई हालांकि सन्नी ख़ुश था क्योंकि रेचल का गोरा बेडौल शरीर सूट की सीवनों से बाहर निकलने को हाय-हाय करता हुआ प्रतीत होता था। अमृत का बनाया हुआ भोजन छोड़ कर रेचल मैकडोनैल्ड चल पड़ती अथवा फिश एण्ड चिप्स मंगवा लेती तो अमृत को बहुत ग़ुस्सा आता। जब सन्नी घर में नहीं होता तो वह रेचल को ख़ूब खरी-खोटी सुना दिया करती। सन्नी हमेशा अमृत की तरफदारी लेता था। रेचल के हिसाब से अमृत को अपना घर अलग बसा लेना चाहिए था अथवा चन्नी और मीता के यहां चले जाना चाहिए था, जिनकी तारीफों के पुल वह दिन-रात बांधा करती थी किंतु चन्नी ने उसे एक बार भी अमेरिका आने को नहीं कहा था। वह जाती तो कहां जाती? उसने अपनी सारी जमा-पूंजी सन्नी को पढ़ाने-लिखाने और उसकी शादी में लगा दी थी। इस फलैट के अलावा, अब उसके पास कुछ नहीं था। अपनी स्टेट-पैंशन भी वह पोता-पोती पर ही खर्च कर देती थी। ‘दिस इज माइ फलैट, यू लीव’ जब भी रेचल उसे बहुत दुखी करती, ग़ुस्से में अमृत कह उठती। वह चाहती तो उन्हें धक्का देकर बाहर निकाल सकती थी पर कोई अपने ही बच्चों और पोता-पोती को कैसे बेघर कर सकता है?
रोज-रोज की कलह से बचने के लिए अमृत ने काउंसिल के फलैट के लिए आवेदन दे दिया। रेचल ने जब सन्नी से ‘रीजन फौर डिस्लौजिंग’ के खाने में यह भरने को कहा कि दो बच्चों के लिए जगह पूरी नहीं पड़ रही थी इसलिए अमृत को अपने लिए दूसरी जगह ढूंढनी होगी। सन्नी ने रेचल के गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया। सन्नी अपनी फ्रस्ट्रेशन इसी तरह उतारा करता था। जगह सचमुच तंग हो गई थी। सन्नी के बच्चे अमृत के कमरे में ही सोते थे। उनके कौट्स ने पूरे कमरे को घेर रखा था। अलमारी में कपड़े रखने और निकालने के लिए अमृत को कौट्स को सरकाना पड़ता था पर फिर भी उसने कभी तक चूं नहीं की थी। काउंसिल ने अमृत को जल्दी ही एक कमरे का फलैट दे दिया क्योंकि दो बच्चों के लिए अमृत का फलैट काफी नहीं था। अपराध भावना से ग्रस्त सन्नी दफतर से सीधा मां के पास चला आता और दिन में टौफियां और खिलौने लिए अमृत राका और शान से मिलने चली आती। रेचल जलती भुनती रहती पर क्या करती। सन्नी से कुछ भी कहना बेकार था।
फलैट्स के पीछे ही चेनीज-पार्क था, जिसे कुछ बूढ़े बूढ़ियों ने मिलकर गोद ले लिया था। काउंसिल की मदद से उन्होंने इस पार्क की शक्ल बदल डाली थी। दूर दूर से लोग अपने बच्चों को लेकर यहां आते और पार्क में लगाए गए झूलों, स्लाइड्स और बच्चों के तमाम उपकरणों का उपयोग करते। आसपास के मृत निवासियों की याद में उनके परिवार वालों ने पार्क के चारों तरफ बैंचस लगवा रखे थे जिनपर बैठकर वृद्ध लोग अपने-अपने परिवार का रोना रोते या गाना गाते, दूसरों के बच्चों को देखकर आहें भरते और शाम ढलते ही अपने-अपने फलैट्स में जाकर बन्द हो जाते। सन्नी को तो मां का एक कमरे का काउंसिल फलैट भी स्वर्ग लगता था, जहां सफाई, शांति और सुकून था। क्या हुआ जो वैलकम-होम के ज्यादातर बाशिन्दे साठ-पैंसठ बरस के थे। सदा मुस्कुराते हुए वे शालीनता से पेश आते। उनके पास हर एक के लिए समय था, चाहे कोई रास्ता पूछ रहा हो या अपने बिगड़े सम्बन्धों को रो रहा हो। अमृत के कहने पर सन्नी उन लोगों के छोटे मोटे काम कर दिया करता था। घर से ज्यादा वह वैलकम-होम के आसपास ही नजर आता था। रात को उधड़े हुए सोफे पर लेटे, रोते धोते बच्चों के बीच, सन्नी हाथ में बीयर का एक कैन सम्भाले टी वी देखता रहता। भिनकते बिस्तर में बिफरती रेचल को छोड़ सन्नी अकसर सोफे पर ही पसर जाता और टेलिविजन पर कोई पोर्न फिल्म लगाकर मास्टर्बेट करते हुए सो जाता। उसके घर होने या न होने से रेचल को कोई फर्क नहीं पड़ता चाहिए था किंतु यदा कदा रेचल के रौद्र रूप से आस-पड़ौस के लोग भी नहीं बचते थे। नोरीन दौड़ी-दौड़ी आती तो बात और भी बिगड़ जाती। चार साल की कारा, जो बिल्कुल अपनी मां और नानी पर गई थी, दिन भर ‘शट अप, शट अप’ चिल्लाती रहती थी। कारा को गालियां देते सुनकर रेचल और नोरीन को ख़ूब मजा आता था पर अपने कान बन्द किए अमृत राम राम जपने लगती। रेचल सन्नी की हर क्रिया कलाप पर नजर रखती। वह कब उठा, उसने कितनी देर में बाथरूम में लगाई, फोन पर किससे और कितनी देर बात की नोरीन ने ही अपनी बेटी को ये सब बातें डाएरी में लिखने की हिदायत दी थी ताकि तलाक लेने की स्थिति में जज सन्नी को पूरी तरह से दोषी ठहरा सके।
‘वेयर यू थिंक यू आर गोइंग, यू स्टुपिड वूमेन?’ कारा ने अपनी नानी की नकल उतारते हुए रेचल से पूछा जो कहीं बाहर जा रही थी। जवाब में रेचल ने उसके गाल पर एक थप्पड़ जड़ दिया। ‘यू सिल्ली काउ’ कारा ने मां को गाली दी और धम-धम करती सीढ़ियों पर जा बैठी। ‘बी ए डियर, राका, से सौरी टु यौर मम’ अमृत ने बीच बचाव कराना चाहा ‘यू स्टुपिड ईडियट’ कारा ने अमृत को भी नहीं बख्शा। ‘स्टुपिड होगी तेरी मां ते इडियट होगी तेरी नानी, बन्दरिया की औलाद’ अमृत ग़ुस्से में बोली। ‘हाउ डेयर यू काल मी बन्दरिया?’ रेचल चीख़ने लगी। अमृत भूल जाती थी कि उसी ने रेचल को हिन्दी सिखाने की कोशिश की थी और रेचल को उन लोगों की काफी बातें समझ आ जाती थी।
‘बिलड़ी बीच, मेरा सोने वर्गा मुंडा तेरे चक्करां विच किवें आ गया? घर से निकलते हुए अमृत ने एक और तीर छोड़ा। शान को गोदी में लेकर वह अपने सीने को दबाती हुई बाहर निकल गई। लगा कि जैसे उसे दिल का दौरा पड़ने वाला हो। अमृत की अंग्रेजी गाली सुनकर सन्नी जोर-जोर से हंसने लगा। ‘यौर मदर हैज गौन कम्प्लीटली बौंकर्स, गो ऐण्ड गेट शौन फ्रौम हर, डू यू हियर मी?’ पांव पटकती हुई रेचल ने सन्नी से कहा। ‘वह उसकी दादी है। क्या वह उसे मार डालेगी? रेचल की बात को काटता सन्नी ग़ुस्से में बोला। ‘ईवन इफ शी वाज, वाट डू यू केयर?’ रेचल उसके पास सोफे में धंस गई। ‘तुझे तो उसकी बड़ी फ़िक्र है।’ ‘व्हाट डू यू मीन?’ ‘नथिंग, आई मीन फकिंग नथिंग’ सन्नी सरक कर थोड़ा दूर जा बैठा। ‘ड्रौप डैड!’ रेचेल मुंह फेरते हुए चिल्लाई। सन्नी एक झटके से उठा और खूंटी से अपनी जैकेट खींचता हुआ बाहर निकल गया। रेचेल चीखती हुई घर के बाहर तक चली आई किंतु कारा को अकेले घर में छोड़ कर वह सन्नी के पीछे न जा सकी। अमृत चेनीज-पार्क में बैठी एक दक्षिण भारतीय महिला से बात कर रही थी, जिसने नाक में सोने की चमकती हुई लौंग पहन रखी थी। ‘दिस इज माइ सन, सुनील’ अमृत ने अपनी नई सहेली शालिनी को बेटे से मिलवाया। सन्नी ने झुक कर शालिनी के पांव छुए। ‘हैलो … ब्लैस यू’ शालिनी ने झिझिकते हुए कहा। अमृत को अपने बेटे पर गर्व हो आया। ‘ते शान दे नाल जे खेड़दी पई है, ओ एनादी दोती है शिखा।’ पास में ही शान और एक बच्ची प्लास्टिक की रंग-बिरंगी कुदालों से मिट्टी खोद रहे थे। ‘घर चलो मां, ठंड बढ़ गई है, तुम्हारे सीने में फिर दर्द होने लगेगा।’ सन्नी ने कहा। शान को कन्धे पर बैठाकर सन्नी मां के साथ उनके फलैट की ओर चल दिया।
‘रेचेल तेरी रा तकदी होवेगी’ अमृत ने सिर्फ दिखावे के लिए सन्नी को याद दिलाया। मन ही मन तो वह ख़ुश थी कि सन्नी रेचल को छोड़ कर उसके पीछे चला आया था। ‘ते करे’ सन्नी ने भी अमृत को ख़ुश करने के लिए एक छोटा सा उत्तर दे दिया। शान और शिखा के साथ शालिनी और अमृत की दोस्ती भी बढ़ने लगी थी। अमृत शालिनी से अपनी घरेलु परेशानियों का जिक्र करती रहती थी और शालिनी हमेशा बड़े ध्यान से उसकी बातें सुनती थी पर एक महीने में एक बार भी उसने कभी अपने परिवार के बारे में कोई बात नहीं की थी। उसके सौम्य चेहरे पर हमेशा सुकून छाया रहता। उसकी बेटी अदिति भी तो मां का कितना ख्याल रखती थी। जब भी दफतर से आती, सीधे पार्क में आकर मां के गाल पर एक प्यार भरा चुम्बन देती और उसे गले लगाकर शालिनी दुलार में भरकर उसका माथा चूम लेती। दामाद आनन्द भी वही सब करता था पर एक झिझक के साथ, एक दिन अमृत से रहा नहीं गया और उसने शालिनी से उनके इस सुकून का राज जानना चाहा। ‘काय को टैंशन लेने का अमृत?’ शालिनी ने एक वाक्य कहकर उसे टालना चाहा।
‘क्या करूं, मेरे कार विच ते सबी अनहैप्पी ने’ ‘तुम बगवान में बिलीव करता है न? सब उसपर काए नईं छोड़ देता? जो बी वो दे, तुमें उइच एक्सैप्ट करने का, क्या? तुमारे हात में कुच नई तो सारी टैंशन बी उसी को होने का, नई?’ शालिनी ठीक ही कह रही थी पर कहना एक बात है और उस पर अमल करना दूसरी। ‘सुपोज, यौर डाटर तुमसे आके बोलता कि अम्मा मेरा हजबंड गर आने को नई मांगता, हर वकत मां मां मां करता, हमारे सात काना नई काने का, बैटने का नई, गूमने का नए, अइ अइ ओ, क्या करने का अम्मा?’ शालिनी की हिन्दी पर अमृत को हंसी आ गई। शालिनी ने शायद उसके घर की कलह का कारण जान लिया था। अमृत को याद आया कि शादी के प्रारम्भिक दिनों में जब सन्नी रेचल के आगे पीछे नाचता था तो अमृत को कितना बुरा लगता था। अपने बेटी होती तो शायद अमृत को रेचल की परेशानी समझ आ जाती।
‘रेचल को तुमारा डाटर समजो तो प्रौबलम्स इल्ले, अमृत’ ‘मैं तो ओनु बेटी वर्गा प्यार दित्ता, शालिनी, पर वोहो नई बदली यू नो, सन्नी ते शान नु इंडियन खाना एन्ना पसन्द ए कि मैं त्वानु की दस्सां, बट साड्डी रेचल एवरी सिंगल डे, सौसेज्स, बर्गर ते फिश एण्ड चिप्स बनाउन्दी ए. यू नो शालिनी, अस्सां हिन्दु पंजाबी बीफ नई खान्दे ने बट ओन्नु एसदी कोई परवा नई…’ अमृर का रिकार्ड फिर शुरु हो गया था।’अइ अइ ओ, तुम कितना दिन जिन्दा रैने का अमृत, तब्बी तो ओइच बनाएगा ओइच खाएगा। सादी के बाद तुम और सन्नी चेंज हुआ क्या जो तुम उसको चेंज करने को मांगता?’ शालिनी ने उसे टोका। ‘त्वाडे वर्गी मेरी वी एक डाटर हुन्दी जिन्नु मैं समज सकदी कि ओहो कि चाहुन्दी ए’ अमृत सोच में डूब गई। ‘अदिति मेरा बेटी नई, डौटर-इन-ला होता, अमृत’ अविश्वास से आंखे फाड़े अमृत शालिनी को देख रही थी। ‘इफ यू रियली वांट टु मेक इट वर्क, अमृत, तुमें उनके पौइंट औफ वियु से सीरियसलि सोचने का’ ‘मैं कुज वी करन नु रैडी हां, शालिनी’ अमृत अब भी विस्मित थी कि कोई बहु अपनी सास को ऐसे चूम सकती थी। ‘ओ के देन, अम तुमारा हैल्प करने का, थोड़ा बच्चा लोग का ध्यान रखने का अमृत, अम अबी आता’ शालिनी उठ कर अपने फलैट से कुछ ब्रोशर्स उठा लाई और अमृत को देते हुए कहा कि वह चाहे तो उसके साथ यूस्टन चल सकती थी जहां हर बुधवार को लैंडमार्क फोरम का गैस्ट-डे होत्ता था। अमृत को लगा कि वह शायद न जा पाए क्योंकि उसकी अंग्रेजी बस कामचलाऊ थी। वैसे भी उसे अंग्रेजों के बीच झिझक होती थी।
घर आते ही अमृत ने कच्चा दूध पिया। शालिनी ने उसे बताया था कि कच्चे दूध से सीने की जलन मिट जाती है। रात को देर तक बैठकर उसने सारे ब्रोशर्स चाट डाले। उसे लगा कि उसमें लिखी हिदायतों से शायद वह परिवार में ख़ुशी ला सके हालांकि उनमें ऐसा कुछ नहीं था जो अमृत नहीं जानती थी किंतु कभी कभी जिन्दगी से जूझते हुए लोग भूल जाते हैं वे छोटी छोटी बातें जो उन्हें ख़ुशी देती हैं। क्लेश से भरे दिमाग में जगह ही नहीं रहती ताजा हवा के लिए। शालिनी के हिम्मत बंधाने अमृत उसके साथ लैंडमार्क भवन जाने को तैय्यार हो गई। आनन्द और अदिति अब लैंडमार्क-वौलिंटियर्स थे। लोगों ने अपने अपने अनुभव बताने शुरु किए कि उन्हें इस कोर्स से क्या फायदा हुआ, उनका जीवन रातों रात कैसे बदल गया आदि। अमृत को ये प्रचार और प्रसार जैसा लगा जैसे कि चर्च के लोग घर-घर जाकर क्रिसटिएंटी के गुण गाते हैं। ख़ैर, लैंडमार्क-वौलिंटियर्स के दबाव में आकर और शालिनि की शर्माशर्मी में अमृत ने लैंडमार्क-फोरम के लिए फार्म भर दिये और क्रैडिट कार्ड से पैसे भी दे दिए। शालिनी अब एडवांस्ड कोर्स करने जा रही थी। इस कोर्स में कुछ तो ऐसा होगा ही कि शालिनी के बेटा-बहु पांच सौ पाउंड्स देने को भी तैय्यार थे। अमृत को बस यही दुख था कि शालिनी उसके साथ नहीं होगी। ‘मां, तुम्हें तो कोई भी बेवकूफ बना सकता है’ सन्नी को पता चलेगा तो वह ज़रूर कहेगा कि इतना पैसा बर्बाद करने की क्या जरूरत थी। अमृत ने सोचा कि अब जीवन में बचा ही क्या था, ये तीन सौ पाउंड उसके साथ तो जाएंगे नहीं, वह तो यह सोच के ख़ुश थी कि सन्नी और रेचल हैरान रह जाएंगे ये जानकर कि अमृत तीन दिन के लिए कहां गायब हो गई!
सुबह आठ बजे से लेकर रात के दस बजे तक लगातार तीन दिन अमृत को लैंडमार्क भवन में रहना था। ग्यारह और तीन बजे चाय पानी के लिए आधा-आधा घंटा और एक और सात बजे खाने के लिए एक घंटे का समय निर्धारित था। अमृत बोरियत की वजह से ऊंघ रही थी कि लीडर ने कहा कि वे सदस्य जो सोचते हैं कि वे समय और पैसे बर्बाद कर रहे हैं, अपने पैसे वापिस ले लें और चले जाएं। एक व्यक्ति सचमुच ही उठकर चल दिया। अमृत को भी लगा कि यह अच्छा मौका था अपने पैसे वापिस लेकर निकल भागने का पर अपनी कुर्सी पर जड़ हुई वह सोचती ही रह गई। न जाने उसके लिए शान हुड़क रहा हो! असली घी के परांठे पर बूरा बुरक कर रोज खिलाती थी अमृत उसे, रेचल तो उसे सौसेज और चिप्स खिला रही होगी। सन्नी को भी तीन दिनों तक सुपरमार्केट का रोस्ट्ड चिकन और सूप ही खाने को मिलेगा। सन्नी फलैट पर नहीं आया तो पड़ौसियों के काम रुक जाएंगे आदि-आदि। राम-राम करते किसी तरह दोपहर के खाने का समय हुआ तो अमृत का समूह पास ही एक कैफे में जा बैठा ताकि उनका समय न व्यर्थ हो, अमृत ने चाय और एक जैकेट पोटेटो और्डर किया और बाकी के लोगों ने सैंड्विच और कॉफी।
पहले ही दिन दोपहर के खाने के बाद एक लड़की और उसका ब्वाय-फ्रैंड पांच मिनट देर से पहुंचे तो पूरे 98 सदस्यों को इसकी सजा मिली, दो घंटे सिर्फ ‘कमिटमैंट’ यानि कि प्रतिबद्धता पर चर्चा हुई। फिर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि देर से आते। शालिनी ने अमृत के लिए यूस्टन रोड पर ही एक कमरे का इंतजाम कर दिया था कि रात बेरात को उसे अकेले घर न आना पड़े। अमृत को यह आजादी और खुलापन अजीबोगरीब लग रहा था। वह यूं ही घबरा रही थी कि उसे कुछ समझ नहीं आएगा। वहां कई लोग विदेशों से थे जिनकी अंग्रेजी अमृत से भी गई-बीती थी। लोगों के दुखड़े सुनकर अमृत को लगा कि उनके मुकाबले में उसकी अपनी परेशानियां तो कुछ भी नहीं थीं। एक मां अपने अकेलेपन को रो रही थी कि उसके बच्चे स्वार्थी हो गए थे, पत्नी कह रही थी कि पति उसकी मदद नहीं करता और पति कह रहा था कि पत्नी के पास उसके लिए समय नहीं था, एक मुसलमान युवक का पिता बचपन में रोज उसके साथ बलात्कार किया करता था। उसकी बीवी भी, जो इस कोर्स में उसके साथ ही थी, बलात्कार की शिकार थी। एक पोलिश लड़की थी जो आंधी-पानी के लिए भी ख़ुद को जिम्मेदार समझती थी। अमृत ने तो जीवन में अपनी गलती कभी मानी ही नहीं, सदा यही सोचा कि वह गलत हो ही नहीं सकती। पहले पहल तो अमृत को लगा कि ये लोग कैसे अपनी इतनी निजी बातें सबके सामने बता रहे थे पर फिर लगा कि यहां कौन किसी को जानता था, अपने मन की भड़ास निकालने का इससे अच्छा मौका फिर कब मिलेगा! धीरे-धीरे सभी खुलने लगे। खाड़ी के एक बहुत बड़े जनरल की बेटी थी, सादिया, जिसकी मां उसे पढ़ाई में हमेशा अव्वल आने पर ही प्यार देती थी। इस बात को लेकर इतनी बहस हुई कि टीम लीडर को बीच बचाव करना पड़ा, उसके बहुत से प्रश्न पूछने के बाद ये सामने आया कि पत्नी और बेटियों की आंखों के सामने जनरल की नृशंस हत्या कर दी गई थी। लीडर ने जानना चाहा कि कभी सादिया ने यह जानने की कोशिश की कि देश में चल रहे दंगे फसाद के बीच दो जवान बेटियों की विधवा मां पर क्या बीती थी। राजघराने में पली बढ़ी उसकी मां एकाएक बाजार में खड़ी कर दी गई। अपने दिल पर पत्थर रखकर उसने बेटियों को पढ़ने लिखने के लिए ललकारा। टीम लीडर ने कहा कि ऐसी स्थिति में सादिया की मां ने जो बहादुरी दिखाई, वह अपने आप में एक मिसाल थी।
98 लोगों को सात सदस्यों के स्मूहों में बांट दिया गया था, जिन्हें अभ्यास और होमवर्क इकट्ठे बैठकर करना होता था। किसी एक सदस्य ने भी यदि अपनी ‘कमिटमैंट’ पूरी न की हो तो पूरे समूह को असफल माना जाता था। रात को नौ बजे घर पहुंचने के बाद भी सदस्य एक दूसरे को फोन करते थे कि होमवर्क पूरा हो गया या नहीं, खाने या चाय के लिए बाहर जाते तो एक दूसरे को याद दिलाते कि चलो भागो समय हो गया था। ‘कमिट्मैंट, कमिट्मैंट ऐंड कमिट्मैंट दिस कोर्स इज़ आल एबाउट कमिट्मैंट ऐन्ड टेकिंग रिसपौंसिबिलिटि फौर यौर ऐक्शंस’ उठते बैठते फोरम लीडर सभी को याद दिलाता रहता। अमृत को लगा कि यदि परिवार, पड़ौस और पूरे देश के लोग एक दूसरे की ख़ुशी का वादा करें तो संसार कैसे अच्छे से चले, दूसरे दिन फोरम लीडर ने ‘रैकेटस’ के विषय में तफसील से बात की तो अमृत को लगा कि अपनी एक गलती स्वीकार कर लेने की बजाय वह एक हज़ार बहाने बनाना पसन्द करती थी। अपनी हर मूर्खता का उसके पासे एक जवाब होता था। तीसरे दिन लगा कि सबने अपने मन की गांठे खोल डाली थीं, मां-बाप, भाई-बहन, पति-पत्नी खुल कर सामने आए तो समाधान ख़ुद ही सामने आ गए। सभी ने महसूस किया कि छोटी छोटी बातों को मन से लगाए वे कितने दुखी थे। उनकी परेशानियां दुनिया की आम परेशानियां थीं। यदि सब लोग अपने दिमागों को बेकार की बातों से खाली कर डालें तो ढेर सी जगह खाली हो जाएगी, जिसे सकारात्मक विचारों और इरादों से भरा जा सकता था।
अमृत की कहानी कोई नई नहीं थी। उसने महसूस किया कि रेचल और सन्नी के बिगड़े हुए सम्बन्धों के लिए वह ख़ुद भी उतनी ही जिम्मेदार थी, जितने कि वे दोनों, सन्नी मां के बहुत करीब था। जब रेचल उन दोनों के बीच आई तो दोनों सकपका कर रेचल को दोष देने लगे। एक छोटी उम्र की लड़की से, जो भारतीय संस्कृति के विषय में कुछ नहीं जानती, वे ऊंची अपेक्षा रख रहे थे। भाषा रहन सहन, पहनावा, खानपान, सभी कुछ उसके लिए नया था। रेचल ने पूरी कोशिश की अपने को सन्नी के परिवार और देश के रीति रिवाज अपनाने की किंतु फिर भी सन्नी और अमृत उसे पराया ही समझते रहे। अनपढ़ नोरीन ने उसे और उलझा दिया। छोटी उम्र में ही वह दो बच्चों की मां बन गई। सन्नी ने कभी मां की ही मदद नहीं की तो रेचल की क्या करता। घर और बच्चे को सम्भालने के अलावा, सन्नी को धुले और इस्त्री किए हुए कपड़े चाहिए थे, बढ़िया नाश्ता और भोजन चाहिए था और शाम को जब रेचल चाहती कि कम से कम अब तो वह बच्चों को सम्भाले, तो वह उठकर पब चल देता था। रात को थका मांदा घर लौटता तो अमृत की शिकायतें सुनकर रेचल को एक दो थप्पड़ भी जड़ देता था। अमृत को आज बहुत बुरा लग रहा था कि उसने रेचल के साथ बहुत ज्यादती की थी। नोरीन के बहकावे में आकर यदि उसने तलाक के लिए अर्जी दे दी तो बच्चों का क्या होगा? नोरीन के बच्चों की तरह बैठकर वे सिगरेट और शराब पिएंगे और ड्रग्स बेचेंगे। अमृत का दिल बैठ गया।
‘यू कैन नौट बी हैप्पी इफ वन पर्सन इन यौर लाइफ इज सफरिंग’ अमृत ने 98 लोगों के सामने खड़े होकर वादा किया कि वह अपने बहु और बेटे से माफी मांग लेगी और घर की ख़ुशी के लिए अपने अभिमान को भी त्याग देगी। परिवार या पड़ौस के दुख से कोई भी अप्रभावित नहीं रह सकता। ख़ुश रहना हो तो माफ कर दो या माफी मांग लो और आगे की सोचो। वादा तो कर लिया किंतु अमृत को लगा कि बेटे बहु से माफी मांगना ऐसा आसान नहीं था। लौटरी की मशीन में घूमते नम्बरों की तरह विचार उसके मन में चक्कर लगा रहे थे। ‘सौरी’ कहने का उसे कोई आसान तरीका नहीं मिल रहा था। रात के साढ़े नौ बजे उसके मित्रों ने उसे अपना वादा निभाने की याद दिलाई, ‘यू कैन डु इट अमृत, यू जस्ट हैव टु पिक अप दि फोन’ उसकी ग्रुप लीडर आइलीन ने उसे प्रोत्साहित किया। रात के दस बजे उसने सन्नी और रेचल को फोन किया और उन्हें लैंडमार्क फोरम के बारे में तफसील से बताया। अदिति से कहकर उसने ब्रोशर्स आदि सन्नी के घर पोस्ट करवा ही दिए थे। रेचल को लगा कि अमृत की यह कोई नई चाल थी। ‘मैं त्वानु दोनां नूं सौरी कैना चाहून्दी हां, तुस्सी दोनों वी आपणी सारी मिसअंडरस्टैंडिंग्स क्लियर करके नवी ज़िन्दगी शुरु करो’ मैं थ्वानु बस ऐसे लई फोन कीता सी’ अमृत को लगा कि जैसे फोन करने के बाद वह हल्की हो गई हो।
तीन लम्बे दिनों की लम्बी-लम्बी उबाऊ बहसों का यदि निचोड़ निकाला जाए तो शायद आधे घंटे का भी मसाला न निकले पर इस सबसे गुजरने के बाद ही शायद उसे निष्कर्ष समझ में आया था। हालांकि अमृत ने अपनी कठिनाई सबके सामने नहीं रखी थी पर अन्य लोगों के खट्टे-मीठे अनुभवों से उसने बहुत कुछ सीखा था। अमृत घर लौटी, जादु की एक छड़ी लिए जिसे घुमा के वह अपने परिवार को राह पर ला सकती थी। सोमवार की सुबह-सुबह अमृत बेटे के घर पहुंच गई, सारे काम रुकवा के उसने रेचल और सन्नी को अपने पास बैठाया। वे दोनों सकपकाए हुए तो तब से ही थे जब अमृत ने फोन पर उन दोनों से माफी मांगी थी। ‘शाम नू बच्चयां नु मेरे वल छोड़ के तुसी दोनों कहीं बार जाओ, ते ठंड़े दिमाग नाल गल्ल बात करो, यू नो, इफ वन औफ अस इज अनहैप्पी, नन औफ अस कुड बी हैप्पि’ अमृत ने कहा तो सन्नी बौखला गया। ‘आइ हैव आल्सो लरन्ट ए लौट फ्रौम दि ब्रोशर्स, आइ ऐम सो सौरी मम, वी विल बी दे बैस्ट औफ फ्रैंड्स फ्रौम नाउ औन’ रेचल की आवाज में परिपक्वता थी और आंखों में आंसु।‘थैंक्स रेचल बेटे, साड्डी ते आप्णी कोई कुड़ी नई सी, फेर बी मैं तैनुं नई अपना सकी, पर जो होया, ओते राख सुट्टो, हुन मैं त्वाडी दोन्यां दी लाइफ लई ते त्वाडे बच्चयां दे फ्यूचर लई वी सोचदी हां’ सन्नी उन दोनों को हैरानी से देख रहा था। रेचल ने सन्नी की ओर बड़ी आशा से देखा। ‘आइ एम सीरियस, पुत्तर, मेरे मरन तों पैल्ले तुसी दोनां फेर से हैप्पी रैन लगो जिस तरां मैरिज दे वेले रउन्दे सी’ ‘ओके मौम’ आदत के अनुसार सन्नी ने कहा। ‘ओके मौम से नहीं चलूगा हुन पुत्रा, तुस्सी दोना नूं बदलना पउगा, सन्नी, तैन्न्यु होर वी जियादा, तू रेचेल दी कदर करेगा तो ओहो वी तेरी कदर करेगी। तुस्सी दोनां प्यार से रओगे ते बच्चे ख़ुद ई समज जानगे’ ‘मैं बदलूं?’ सन्नी अब भी अड़ा था बदलने वाली बात सिर्फ रेचल पर लागू होनी चाहिए थी।
‘तैन्नु ते पुत्रा एडवांस कोर्स वी कराना पवुगा’ अमृत ने हंसते हुए कहा तो रेचल खिलखिला के हंस पड़ी, वह सीधी और दिल की साफ थी। सन्नी अभी पच्चीस का हुआ था और शक्ल सूरत से चालीस का लगता था। बियर पी-पीकर उसकी तोंद निकल आई थी। स्प्ताहंत पर वह दाढ़ी तक नहीं बनाता था। बाईस साल की रेचल अभी ख़ुद ही बच्ची थी, जिसके ऊपर घर बार की सारी जिम्मेदारियाँ छोड़ दी गई थीं। ऊपर से सन्नी की रुखाई के लिए भी अमृत बेचारी रेचल को ही दोष देती रही थी, ये कह कहकर कि ‘आपणे मर्द नुं रिझान लई कुड़ियां की पई नई कर दीं? शम नुं सन्नी जद घार आन्दा ए ते तूं लीरे पाके पई फिरदी ए,’ जब कि घर पहुंचकर सन्नी कभी रेचल की ओर देखता भी नहीं था। अमृत को आज अपनी और सन्नी की सभी ज्यादतियां साल रही थीं। बस अब और नहीं, ‘तुस्सी दोनों मेरे सिर पे हाथ रख के प्रौमिस करो’ सन्नी की देखा-देखी रेचल ने भी अमृत के सिर पर हाथ रख दिया। अमृत ने हिन्दी और अंग्रेजी में लिखी शपथ का एक-एक पन्ना दोनों को पकड़ा दिया। ‘हम वादा करते हैं कि हम पूरी कोशिश करेंगे कि अपने बच्चों को एक साफ सुथरा और प्यार भरा वातावरण दें ताकि आगे चलकर वे भी अच्छे इंसान और आदर्श नागरिक बन सकें। भविष्य में कोई अनबन हुई तो हम उसे आपस में बैठकर सुलझा लेंगे’ रेचल और सन्नी ने अमृत के वाक्यों को दोहराया। अमृत ने दोनों के गाल चूमकर उन्हें दुआ दी। रेचल ने मां की पसन्द की सौंफ और इलाइची वाली चाय बनाई और फिर घंटों बैठकर उन तीनों ने अपने गिले शिकवे दोहराए, दिल हल्के हुए तो उन्हें लगा कि कैसी-कैसी बेकार की बातें मन में बिठाए वे मुंह सुजाए बैठे रहे। इतवार की सुबह सन्नी और रेचेल बच्चों को छोड़ने अमृत के फलैट पर पहुंचे तो देखा कि बाहर का दरवाजा खुला पड़ा था, मां की आंखों की तरह।
नाम:- दिव्या माथुर
विधाएँ:- कविता, कहानी
पता:- सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर, 8 साउथ ऑडली स्ट्रीट, लंदन, यूके