बागपत को अजित सिंह के सामने सियासी वजूद बचाने की चुनौती
पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सियासी गढ़ और जाटलैंड माने जाने वाली लोकसभा सीट बागपत में इस बार भी पूरे देश की नजरें हैं. देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह यहां से ही सांसद रह चुके हैं और उसके बाद उनके बेटे अजित सिंह ने यहां पर कई बार चुनाव जीता. लेकिन 2014 में चली मोदी लहर के दम पर भारतीय जनता पार्टी ने यहां परचम लहराया और मुंबई पुलिस के कमिश्नर रह चुके सत्यपाल सिंह सांसद चुने गए. जबकि अजित सिंह इस सीट पर तीसरे नंबर पर रहे थे.
बागपत लोकसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आई, पहले चुनाव में यहां जनसंघ और दूसरे चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज की. लेकिन इमरजेंसी के बाद यहां 1977 में हुए चुनाव से ही क्षेत्र की राजनीति पूरी तरह से बदल गई. 1977, 1980 और 1984 में लगातार पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह यहां से चुनाव जीते.
उनके बाद बेटे अजित सिंह 6 बार यहां से सांसद रहे. 1989, 1991, 1996, 1999, 2004 और 2009 में अजित सिंह बागपत से सांसद रहे. सिर्फ 1998 में हुए चुनाव में यहां हार का सामना करना पड़ा. और 2014 में तो वह तीसरे नंबर पर ही पहुंच गए.
बागपत लोकसभा क्षेत्र का समीकरण
मेरठ और बागपत जैसे क्षेत्र से जुड़े बागपत में 16 लाख से भी अधिक वोटर हैं. इनमें करीब 9 हैं, यही कारण है कि रालोद यहां पर मजबूत है. जाट समुदाय के वोटरों के बाद यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे अधिक है.
बागपत लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें सिवालखास, छपरौली, बड़ौत, बागपत और मोदीनगर विधानसभा सीटें हैं. इसमें सिवालखास मेरठ जिले की और मोदीनगर गाजियाबाद जिले से आती हैं. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में इसमें सिर्फ छपरौली में राष्ट्रीय लोकदल ने जीत दर्ज की थी, जबकि बाकी 4 सीटों पर बीजेपी जीती थी.
अजित सिंह पर भारी पड़ी मोदी लहर
जाटों का गढ़ माने जाने वाले बागपत में राष्ट्रीय लोक दल (RLD) को बड़ा झटका तब लगा जब पिछले लोकसभा चुनाव में उनके प्रमुख अजित सिंह को यहां से हार झेलनी पड़ी. बीजेपी के सत्यपाल सिंह ने इस सीट से 2 लाख से अधिक वोटों से जीत दर्ज की. जबकि अजित सिंह को 20 फीसदी से भी कम वोट मिले.
2014 लोकसभा चुनाव के नतीजे
सत्यपाल सिंह, भारतीय जनता पार्टी, कुल वोट मिले 423,475, 42.2 फीसदी
गुलाम मोहम्मद, समाजवादी पार्टी, कुल वोट मिले 213,609, 21.3 फीसदी
चौधरी अजित सिंह, राष्ट्रीय लोक दल, कुल वोट मिले 199,516, 19.9 फीसदी
राष्ट्रीय लोकदल के लिए अस्तित्व की लड़ाई
2019 का लोकसभा चुनाव रालोद के लिए अस्तित्व की लड़ाई भी माना जा रहा है. कभी ये सीट रालोद का गढ़ मानी जाती थी, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ हुआ यहां तक कि अजित सिंह ही हार गए. जिसे एक बड़ा झटका माना गया, हालांकि हाल ही में कैराना उपचुनाव में रालोद उम्मीदवार ने जीत दर्ज की थी. अब लोकसभा चुनाव में अजित सिंह के सामने चुनौती होगी कि क्या वह अपना गढ़ वापस ले पाएंगे.
सांसद सत्यपाल सिंह का प्रोफाइल
मुंबई पुलिस कमिश्नर के तौर पर मजबूत पहचान बनाने वाले सत्यपाल सिंह ने 2014 के चुनाव से पहले चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें बागपत से मौका दिया. सत्यपाल सिंह 2 लाख से अधिक वोटों से जीत कर भी आए. सत्यपाल सिंह 2012 से 2014 तक मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे.
2014 में चुनाव जीतने के बाद वह केंद्र सरकार में मंत्री बने, अभी भी वह शिक्षा राज्य मंत्री और गंगा मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं. बीते चार साल में कई बार सत्यपाल सिंह अपने बयानों के कारण चर्चा में रहे हैं. फिर चाहे डॉल्फिन नीति से जुड़े उनके बयान ने काफी चर्चा बटोरी थी. ADR की रिपोर्ट के मुताबिक, सत्यपाल सिंह के पास 6 करोड़ से अधिक की संपत्ति है.
पहली बार सांसद चुने गए सत्यपाल सिंह ने मौजूदा लोकसभा में कुल 99 बहस में हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने 23 सवाल पूछे, सरकार की ओर से कुल 4 बिल पेश किए. जबकि 3 प्राइवेट मेंबर बिल भी पेश किए. सांसद निधि के तहत मिलने वाले 25 करोड़ रुपये के फंड में से उन्होंने कुल 79.24 फीसदी रकम खर्च की.