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अमेरिका और उत्तर कोरिया की बढ़ती करीबी के पीछे छिपा है चीन का ये कनेक्शन

अमेरिका और उत्तर कोरिया, दो ऐसे देश जिनके बीच सालों तक दुश्मनी जैसा रिश्ता रहा। लेकिन अब अचानक ये दो देश एक दूसरे के करीब आते जा रहे हैं। जहां कभी अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उत्तर कोरिया को धमकी देते नहीं थकते थे, आज वहां के तानाशाह किम जोंग उन के साथ दूसरी बार शिखर सम्मेलन करने जा रहे हैं। यानी दूसरी मुलाकात।

अमेरिका और उत्तर कोरिया की बढ़ती करीबी के पीछे छिपा है चीन का ये कनेक्शन

ट्रंप इस मुलाकात से बेहद खुश हैं। उन्होंने ट्वीट कर ये जानकारी भी दी और कहा कि पहले अमेरिका का उत्तर कोरिया के साथ रिश्ता अच्छा नहीं था लेकिन अब बेहद अच्छा है। हाल ही में उत्तर कोरिया के वरिष्ठ वार्ताकार किम योंग चोल परमाणु वार्ता के लिए अमेरिका पहुंचे। अपने शिष्ठ मंडल के साथ चोल ने संयुक्त राज्य अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि स्टेफन बेगन और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से भी मुलाकत की। बता दें किम योंग चोल किम जोंग के करीबी माने जाते हैं और उत्तर कोरिया के वरिष्ठ वार्ताकार हैं।

अमेरिका बनाता रहेगा दबाव

अमेरिका का कहना है कि वह उत्तर कोरिया पर तब तक दबाव बनाता रहेगा जब तक वह पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण नहीं कर लेता।

व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव सारा सैंडर्स ने बताया कि उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन का दाहिना हाथ माने जाने वाले किम योंग चोल के साथ ट्रंप ने ओवल कार्यालय में बातचीत की। सैंडर्स ने कहा, “राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किम योंग चोल के साथ परमाणु निरस्त्रीकरण और दूसरी शिखर वार्ता पर करीब डेढ़ घंटे बातचीत की। दूसरी शिखर वार्ता फरवरी अंत में होने वाली है।”

उन्होंने एक बयान में कहा, “राष्ट्रपति, किम के साथ बातचीत को लेकर उत्सुक हैं। इसके जगह और तारीख की बाद में घोषणा की जाएगी।” प्रेस सचिव ने पत्रकारों से कहा, “हम आगे बढ़ते रहेंगे, हम बातचीत जारी रखेंगे।”

उन्होंने कहा कि अमेरिका उत्तर कोरिया के पूरी तरह परमाणु निरस्त्रीकरण करने तक उसपर दबाव और प्रतिबंध बनाए रखना जारी रखेगा। सैंडर्स ने कहा, “बंधकों की रिहाई और अन्य कदमों से उत्तर कोरिया पर हमारा विश्वास बढ़ा है और इसलिए हम इस बातचीत जारी रखेंगे।”

जब नए साल पर किम ने दी थी धमकी

किम जोंग ने नए साल पर अमेरिका को धमकी दी थी। उन्होंने कहा था कि यदि अमेरिका प्रतिबंध के जरिए दबाव बनाना जारी रखता है तो प्योंगयांग अपना रुख बदलने पर विचार कर सकता है। किम ने अपने नववर्ष संबोधन में यह बात कही थी।

किम ने कहा था,  “अमेरिका ने अगर दुनिया के सामने किए अपने वादों को पूरा नहीं किया और हमारे देश के खिलाफ प्रतिबंध और दबाव बढ़ाता रहा… तो हमारे पास अपनी संप्रभुता एवं हितों की रक्षा करने के लिए कोई नया रास्ता खोजने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाएगा।”

इसके साथ ही किम ने कहा था, “मैं अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ कभी भी बातचीत को तैयार हूं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा स्वीकार्य नतीजे निकालने के पूरे प्रयास करेंगे।” उन्होंने साथ ही कहा कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया को अब साझा सैन्य अभ्यास भी बंद कर देना चाहिए। हालांकि किम ने परमाणु हथियारों को नष्ट करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता भी जाहिर की।

क्या है अमेरिका की मजबूरी

अगर ये कहा जाए कि उत्तर कोरिया के साथ रिश्ते अच्छे करना अमेरिका की मजबूरी जैसा है तो कुछ गलत नहीं होगा। दरअसल अमेरिका यह जानता है कि एशिया में शक्ति संतुलन न बिगड़े। इसी कारण वह उससे बातचीत बनाए रखना चाहता है। इसके पीछे का दूसरा कारण है दुनिया पर चीन का बढ़ता प्रभाव। उत्तर कोरिया पर तो चीन अपना प्रभाव बनाए ही हुए है, अब वह पूरे एशिया में भी अपनी पैंठ मजबूत करना चाहता है। चीन हिंद महासागर और प्रशांत महासागर पर अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है, वह व्यापार के लहजे से भी आगे बढ़ रहा है। जिसमें चाबहार बंदरगाह, वन बेल्ट वन रोड पॉलिसी अहम हैं। अमेरिका नहीं चाहता कि चीन का प्रभाव बढ़े।

भारत से बढ़ रही है अमेरिका की करीबी

चीन और उत्तर कोरिया की करीबी से एशिया में सामरिक असंतुलन पैदा हो रहा है। चीन के अरब सागर और हिंद महासागर में बढ़ते प्रभाव के कारण अमेरिका भारत के निकट आता जा रहा है। दोनों देशों के बीच कुछ सालों में द्विपक्षीय साझेदारी बढ़ी है। अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिहाज से भारत को महत्वपूर्ण मानता है।

उत्तर कोरिया का चीनी कनेक्शन

उत्तर कोरिया का चीन के साथ सदियों पुराना कनेक्शन है। चीन उत्तर कोरिया के चुनिंदा दोस्तों में से एक है। उत्तर कोरिया चीन पर पूरी तरह से निर्भर है। उसके निर्भर होने का सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि उसकी जरूरत का करीब 90 फीसदी कारोबार सिर्फ चीन ही पूरा करता है। बीते साल सिंगापुर में ट्रंप से ऐसिहासिक मुलाकात से पहले भी किम जोंग ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से दो बार वार्ता की थी। चीन की इस मुलाकात के पीछे भी अहम भूमिका मानी जा रही है। परमाणु संपन्न उत्तर कोरिया पर व्यापारिक दृष्टि से चीन अहम भूमिका निभा रहा है।

कितना ताकतवर है उत्तर कोरिया

परमाणु संपन्न उत्तर कोरिया के पास 2016 के ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स के मुताबिक 76 पनडुब्बी, 458 फाइटर एयरक्राफ्ट और 5025 लड़ाकू विमान हैं। केवल इतना ही नहीं, उत्तर कोरिया के पास रासायनिक हथियार होने के भी कयास लगाए जाते रहे हैं। रूस और चीन के बढ़ते मिसाइल कार्यक्रम के चलते अमेरिका भारत से भी सहयोग बढ़ा रहा है।

अमेरिका और उत्तर कोरिया में अंतर

  • प्रति व्यक्ति आय: उत्तर कोरिया में प्रति व्यक्ति आय एक हजार 700 डॉलर है। जबकि अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 60 हजार डॉलर है।
  • परमाणु हथियारों की तादात: अमेरिका के पास परमाणु हथियारों की तादाद 6550 है जबकि उत्तर कोरिया में केवल 15 परमाणु हथियार हैं।
  • जनसंख्या: डोनाल्ड ट्रंप लगभग 33 करोड़ अमेरिकियों के नेता हैं जबकि किम जोंग उन महज ढाई करोड़ लोगों के नेता हैं।
  • सैनिक: अमेरिका के पास साढ़े तेरह लाख सैनिक हैं और उसकी आबादी 33 करोड़ है। वहीं उत्तर कोरिया के पास 13 लाख सैनिक हैं जबकि उसकी आबादी ढाई करोड़ है।

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