अजब-गजब

गाड़ी चल पड़ी और पीछे छूट गई 14 साल की धनेश्वरी, 16 साल बाद तीन बच्चों के साथ मिली


नई दिल्ली : कहानी है छत्तीसगढ़ की बेटी धनेश्वरी की। दुर्ग जिले के गांव थान खम्हरिया की धनेश्वरी 16 साल पहले महज 14 साल की उम्र में दिल्ली में खो गई थी। दिल्ली में परिवार से बिछुड़ने के बाद उसने कुछ दिन ढाबे पर काम किया। ढाबे पर एक उम्रदराज ट्रक चालक खाना खाने रुका तो उससे आपबीती सुनाई। ट्रक चालक उसे घर ले गया, लेकिन परिवार वालों के विरोध के चलते वह उसे हरियाणा के झज्जर में एक ईंट भट्ठे के पास छोड़ गया। समय की मारी इस दुखियारी के पास वहां काम कर पेट भरने के अलावा कोई और चारा नहीं था। अकेली लड़की को बुरी नजर वालों का डर भी सताता। ईंट भट्ठे पर काम करने के दौरान वहां काम कर रहे कुछ उम्रदराज मजदूरों ने उसे अपने संरक्षण में ले लिया। नया नाम भी दे दिया- सुदेश। झज्जर के नौगांव स्थित इस ईंट भट्ठे पर काम करते हुए उसकी जिंदगी आगे बढ़ने लगी। सयानी हुई तो मजदूरों ने उसकी शादी भी करा दी। लेकिन 16 साल के लंबे अरसे के बाद भी अपनों से बिछुड़ने का गम उसे रुलाता था। हर रात मां-बाप, भाई और बहन का नाम इसलिए याद करते हुए सोती थी कि शायद कभी वो सामने आ जाएं। सौभाग्य से उसकी किस्मत का ताला खुल गया और खोया परिवार मिल गया। पति के साथ वह नौगांव स्थित एक सैन्य परिवार के फार्म हाउस पर काम कर रही थी। इसी दौरान क्षेत्र की प्रगतिशील महिला किसान सुलोचना नेहरा को उसकी कहानी पता चली। सुलोचना ने यह बात अपने पति रिटायर्ड कर्नल ओपी नेहरा को बताई। रिटायर्ड सैन्य अधिकारी ने इसे गंभीरता से लिया और पूरे जज्बे के साथ उसके परिजनों की तलाश में जुट गए। सैनिक मित्रों और सेवा के दौरान साथ काम कर रहे सैन्य अधिकारियों की मदद से छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में धनेश्वरी के गांव की तलाश शुरू हो गई। कुछ दिनों के प्रयास के बाद धनेश्वरी का परिवार मिल गया। परिजनों से उसकी फोन पर बात कराई गई। मां ने बताया कि पिता का काफी पहले देहावसान हो चुका है। मां से बात हुई तो दोनों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। धनेश्वरी का भाई नौगांव आया और बहन से मिला। अब धनेश्वरी अपने मायके जाने की तैयारी कर रही है।

मां ने गांव में बड़ी पूजा रखवाई है, जो धनेश्वरी के वहां पहुंचने पर संपन्न होगी। परिवार के सभी लोगों को उसकी बेसब्री से इंतजार है। धनेश्वरी कहती है, मैं कर्नल साहब और मैडम का अहसान कभी नहीं भुला पाऊंगी। मैंने फोन पर मां को देखा (वीडियो कॉलिंग के जरिये) तो मुझे सहज विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है। मां से मिलना चाहती हूं, लेकिन पति जाने को तैयार नहीं हैं क्योंकि आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं। अब तो साहब से ही प्रार्थना है कि जब इतना कुछ किया है तो एक दफा परिवार से मिलवाने का बंदोबस्त भी जरूर करवा दें। धनेश्वरी के भाई और मां ने बताया कि पिता मंथिर पाल सहित पूरा परिवार 2002 में रोजी-रोटी के लिए पलायन कर दिल्ली गया था। गुड़गांव (अब गुरुग्राम) में जहां वे रहते थे, वहां से दस किलोमीटर दूर उन्हें काम पर जाना पड़ता था। वे ट्रैक्टर से रोजाना आना-जाना करते थे। ट्रैक्टर पर करीब 45 लोग सवार होते थे। उस समय धनेश्वरी की उम्र 13-14 साल थी। एक बार वापसी के दौरान मंथिर पाल इस धोखे में रह गए कि धनेश्वरी ट्रैक्टर पर बैठ गई है। वे जब घर के पास पहुंच गए तब उन्हें पता चला कि धनेश्वरी वहीं छूट गई है। तुरंत वापस लौटे, लेकिन वहां धनेश्वरी नहीं मिली। काफी तलाश की, लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला। कई महीने वहां रहने और खोजबीन के बाद भी जब धनेश्वरी के बारे में कोई पता नहीं चला, तब वे निराश होकर लौट आए, लेकिन कुछ अच्छा होने की उन्होंने आस नहीं छोड़ी और आखिरकार उनकी उम्मीद रंग लाई। धनेश्वरी के भाई रमेश ने बताया कि उस समय धनेश्वरी छोटी और निरक्षर थी। ज्यादा बोलती भी नहीं थी। छत्तीसगढ़ी के अलावा उसे अन्य बोली भी नहीं आती थी। इसके चलते वह किसी को अपने घर-गांव के बारे में जानकारी नहीं दे पाई होगी। धनेश्वरी ने उन्हें बताया कि टै्रक्टर छूटने के बाद एक ऑटो वाले ने उसे किसी होटल के पास छोड़ दिया था, जहां से वह ढाबे तक पहुंची। रमेश ने कहा, हम सभी उसके आने का इंतजार कर रहे हैं, पूरे गांव को इस पल का इंतजार है।

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