9 लाख करोड़ रुपये की टैक्स चोरी से ठप पड़ी ये सरकारी योजनाएं
बैंकों के गंदे कर्ज की समस्या से जूझ रही केन्द्र सरकार के सामने अब टैक्स चोरी को लगाम लगाने की कड़ी चुनौती है. हाल में जारी अंतरिम बजट दस्तावेजों के मुताबिक केन्द्र सरकार लगभग 9 लाख करोड़ रुपये का टैक्स वसूलने में विफल रही है. इसमें सर्वाधिक टैक्स चोरी का मामला जहां कॉरपोरेशन टैक्स में है वहीं दूसरे नंबर पर व्यक्तिगत टैक्स है.
गौरतलब है कि यदि केन्द्र सरकार इस बकाए टैक्स की वसूली करने में सफल हो जाती तो महज इस राजस्व से वह स्वास्थ से लेकर सबके लिए घऱ की योजना समेत कुल 99 मंत्रालयों की सात सौ से अधिक योजनाओं को चलाने का पूरा पैसा एकत्र कर लेती.
बजट दस्तावेज के मुताबिक टैक्स चोरी की रकम में इनकम टैक्स से बड़ा हिस्सा कॉरपोरेट टैक्स का है. कुल 9 लाख करोड़ रुपये के टैक्स बकाए में कॉरपोरेट टैक्स का हिस्सा 52 फीसदी यानी 4.7 लाख करोड़ रुपये है. कुल बकाए में इनकम टैक्स चोरी का 29 फीसदी अथवा 2.6 लाख करोड़ रुपये है.
हालांकि इनडायरेक्ट टैक्स भुगतान में सर्वाधिक टैक्स चोरी सर्विस टैक्स में है और दूसरे नंबर पर एक्साइज टैक्स है. वहीं बजट दस्तावेजों में गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स की चोरी को शामिल नहीं किया गया है जबकि केन्द्र के राजस्व इनडायरेक्ट टैक्स का सबसे बड़ा हिस्सा जीएसटी से आता है.
सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम (सीबीईसी) के पूर्व चेयरमैन सुमित दत्त मजूमदार ने बताया कि जीएसटी का बकाया टैक्स अभी रिकवरी के लिए तैयार नहीं है क्योंकि ज्यादातर टैक्स के मामले विवाद के चलते एपीले ट्राइब्यूनल में लंबित है. जबकि अभी सिर्फ एपीलेट ट्राइब्यूनल के गठन का ऐलान हुआ है और गठन किया जाना बाकी है.
टैक्स वसूलने में केन्द्र सरकार की विफलता का सबसे बड़ा कारण न्यायिक विवाद है. लगभग 7.7 लाख करोड़ रुपये के टैक्स की रकम की अलग-अलग विवादों के चलते रिकवरी नहीं हो रही है. वहीं 1.08 लाख करोड़ रुपये की टैक्स चौरी को गैर-विवाद श्रेणी में रखा गया है.
गौरतलब है कि कुल टैक्स बकाए की रकम की लगभग 40 फीसदी बीते दो साल से अलग-अलग न्यायिक मामलों में लंबित है. इतनी ही रकम लगभग बीते 2 से 5 साल से न्यायिक मामलों के चलते बकाया है. हालांकि यह सिर्फ बीते 2 से 5 साल की चुनौती नहीं है क्योंकि केन्द्र सरकार को बीते कई वर्षों के दौरान टैक्स वसूली में अड़चनों का सामना करना पड़ा रहा है.
टैक्स बकाए की रिकवरी को तभी टाला जा सकता है जब अदालतों से टैक्स रिकवरी को फैसले तक रोकने का फैसला आ जाता है. यदि अदालतों से टैक्स रिकवरी नहीं रोकी जाती है तो जीएसटी से पूर्व और मौजूदा जीएसटी कानून में टैक्स रिकवरी के पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं. मजूमदार ने कहा कि टैक्स के जो मामले न्यायिक प्रक्रिया के चलते नहीं लंबित है वह पूरी तरह से केन्द्र सरकार की विफलता को दिखाते हैं. गौरतलब है कि टैक्स विभागों ने ऐसे मामलों में टैक्स रिकवरी के कई कदम उठा रखे हैं लेकिन अभी भी कोई कारगर नतीजा सामने नहीं आ रहा है.