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सर्जिकल स्ट्राइक, ऑपरेशन ऑलआउट, राष्ट्रपति शासन, फिर भी नही रुके हमले

जम्मू-कश्मीर के पुलावामा में सुरक्षा बलों के काफिले पर हुआ आतंकी हमला 18 सितंबर 2016 को उरी सेक्टर में सेना मुख्यालय पर हुए हमले से भी बड़ा हमला बताया जा रहा है. इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है. उरी में सेना के कैंप पर हुए हमले का बदला लेने के लिए भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सीमा में दाखिल होकर सर्जिकल स्ट्राइक की थी. बावजूद इसके सीमा पार से प्रायोजित आतंकी घटनाओं पर लगाम नहीं लगी.

सर्जिकल स्ट्राइक, ऑपरेशन ऑलआउट, राष्ट्रपति शासन, फिर भी नही रुके हमलेकश्मीर घाटी में सेना का ऑपरेशन ऑल आउट अभियान जारी है. जिसके तहत पिछले तीन साल में सुरक्षा बलों ने पिछले तीन साल में 586 आतंकी मार गिराए हैं. यह जानकारी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में राज्यसभा में दी थी. इसके अलावा पाकिस्तान की तरफ से नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन भी होता रहा, लेकिन सेना के जवानों ने उनका मुंह तोड़ जवाब दिया. सीमा पर लगातार मुंह की खा रहे पाकिस्तान ने एक बार फिर साजिशों को अंजाम देना शुरू कर दिया. जिसके तहत सीमा पार से घुसपैठ की कोशिशें तो तेज हुई ही साथ ही घाटी में युवाओं को भी इस साजिश का हिस्सा बनाया जाने लगा.

बता दें कि कश्मीर की सुरक्षा को खतरा बताते हुए केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने पिपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) से समर्थन वापस ले लिया था. तब से घाटी में सीधे केंद्र का नियंत्रण है. इसके चलते सुरक्षाबलों द्वारा लगातार आतंकियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है. हालांकि सुरक्षाबलों को इसमें कामयाबी भी मिली है. लेकिन इन सबके बावजूद इतनी बड़ी आतंकी घटना होने का मतलब यह है कि आतंकियों के नापाक हौसले कम नहीं हुए हैं.

बताया जा रहा है कि कश्मीर के पुलवामा में जिस सड़क पर यह हमला हुआ वह पिछले कई दिनों से बर्फबारी के कारण बंद थी और कल ही इसे खोला गया था. इस हमले को अंजाम देने के लिए आतंकियों ने सुरक्षाबलों के काफिले के एक वाहन पर आत्मघाती हमला किया. इस काफिले में 50 से ज्यादा वाहन शामिल थे जिसमें 2500 जवान सवार थे. सुरक्षाबलों की इतनी बड़ी मूवमेंट और एजेंसियों के अलर्ट के बावजूद इस हमले का होना सुरक्षा में बहुत बड़ी चूक कहा जा सकता है.

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद यह माना जा रहा था कि पाकिस्तान इससे सीख लेते हुए अपने नापाक मंसूबों पर लगाम लगाएगा. निजाम बदलने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भी अमन-ओ-अमान की बात की थी. लेकिन इमरान भी पाकिस्तान की धरती पर आतंकवाद की उपज रोकने में नाकाम रहे. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ठीक 10 दिन पहले 5 फरवरी को कराची में खुले-आम आतंक का आका मौलाना मसूद अजहर का छोटा भाई और जैश-ए-मोहम्मद का सरगना मौलाना रऊफ असगर रैली करता है और भारत को दहला देने का ऐलान करता है.

साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एएनआई को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था हम पाकिस्तान से 1965, 1971, कारगिल युद्ध लड़ चुके हैं. एक लड़ाई (सर्जिकल स्ट्राइक) से पाकिस्तान सुधर जाएगा, ये सोचना बहुत बड़ी गलती होगी. पाकिस्तान को सुधरने में अभी और समय लगेगा. बहरहाल पुलवामा में हुए इस बड़े आतंकी हमले से पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हुआ है तो वहीं देश में सुरक्षा को लेकर भी बड़ा सवाल खड़ा हुआ है.

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