पाकिस्तान के ‘तालिबान’ एजेंडे पर अफगानिस्तान ने UNSC में घसीटा
अफगानिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से पाकिस्तान और अमेरिका के साथ तालिबान प्रतिनिधियों की वार्ता को लेकर चिंता जाहिर की है. अफगानिस्तान का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित तालिबान आतंकी गु़ट के सदस्यों के साथ इस्लामाबाद को वार्ता से पहले काबुल से चर्चा करनी चाहिए थी. अफगानिस्तान ने तालिबान-पाकिस्तान बातचीत को अपनी संप्रभुता के साथ खिलवाड़ बताया है. काबुल की इस शिकायत पर पाकिस्तान और अमेरिका की प्रतिक्रिया नहीं आई है.
दरअसल, तालिबान ने 14 फरवरी को ऐलान किया था कि वे 18 फरवरी को अमेरिकी प्रतिनिधियों से पाकिस्तान में मिलेगा. इसी के साथ वे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से भी अफगान शांती वार्ता की तरह पाकिस्तान-अफगानिस्तान के रिश्तों पर विस्तृत चर्चा करेगा. पाकिस्तानी अखबार दि न्यूज के मुताबिक तालिबान प्रतिनिधियों का यह दल इस दौरान इस्लामाबाद पहुंचे सउदी प्रिंस मुहम्मद बिन सलमान से भी बातचीत करेगा.
गौरतलब है कि अफगानिस्तान शांतिवार्ता में अमेरिका ने पिछले कुछ महीनों में पाकिस्तान को बड़ी भूमिका दे रखी है. माना जा रहा है कि अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाना चाहता है. इस वार्ता में अन्य खाड़ी देशों के अलावा सउदी अरब की भी भूमिका है. इस्लामाबाद में होने वाली यह मुलाकात तब हो रही है जब 25 फरवरी को कतर में अमेरिकी अधिकारियों और तालिबान वार्ताकारों के बीच बातचीत होनी है.
पाकिस्तान पर आतंक फैलाने के आरोप
आपको बता दें कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच दशकों से तनाव चल रहा है. काबुल और वाशिंगटन की तरफ से पाकिस्तान पर अक्सर यह इल्जाम लगते रहे हैं कि वो आतंकियों को अपनी जमीन पर सुरक्षित ठिकाने मुहैया कराता रहा है. इसके साथ ही तालिबानियों को अपनी सीमा में दाखिल कर अफगानी और पश्चिम देशों की सेना पर हमले करवाता रहा है. लेकिन पाकिस्तान ने हमेशा इस तरह से आरोपों का खंडन किया.
गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अफगानिस्तान से सेना हटाने की मंशा जाहिर की थी. जिसके बाद पिछले कुछ महीनो में अफगान शांति वार्ता में तेजी आई. इस वार्ता में अमेरिका की कोशिश है कि अफगान सरकार और तालिबान को एक टेबल पर लाया जाय. ताकि अफगानिस्तान में पिछले 17 साल से चला आ रहा युद्ध खत्म किया जा सके.
लेकिन अफगानिस्तान सरकार के प्रतिनिधि अमेरिका-तालिबान वार्ता से अब तक दूर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ तालिबान काबुल को पश्चिमी देशों की कठपुतली बताते हुए सरकार से सीधी बातचीत से इनकार करता रहा है. तालिबान का कहना है कि उसकी तरफ से संघर्ष विराम तब तक नहीं होगा जब तक अफगानिस्तान की जमीन से सभी विदेशी फौजें हट नहीं जाती.
बता दें कि अमेरिका में साल 2001 में 9/11 हमले के बाद वहां की सेना अफगानिस्तान में दाखिल हुई थी. हमले का जिम्मेदार और अल-कायदा मुखिया ओसामा बिन लादेन समेत अन्य आतंकियों को सौंपने से इनकार करने के बाद तालिबान सरकार गिरा दी गई थी.