माँ गोमा के जयकारों से गूंजा मनकामेश्वर उपवन घाट, हुई माँ गोमती महाआरती
लखनऊ: माघी शुक्ल पूर्णिमा, संत रविदास एवं छत्रपति शिवजी महाराज जयंती की अति शुभ एवं पुनीत अवसर पर नमोस्तुते माँ गोमती के तत्वाधान में आयोजित आदि माँ गोमती महाआरती से रविवार को मनकामेश्वर उपवन घाट का दृश्य अपनी सम्पूर्णता एवं अलौकिकता को स्पर्श करते हुए चरम पर था । 19 फरवरी की पावन संध्या पर मनकामेश्वर मठ-मंदिर की प्रमुख महंत देव्या गिरि ने आदि माँ गोमती महाआरती की साथ ही साथ संत रविदास एवं छत्रपति शिवजी महाराज का जन्मोत्सव बड़े ही दिव्य एवं श्रद्धा के साथ मनाया गया।
वीर शिरोमणि शिवाजी महाराजा का मना 389 वा जन्मोत्सव, संत रविदास की 642 वी जयंती पर हुआ चित्र पुष्पार्पण
पवित्र माघी पूर्णिमा पर आयोजित इस गोमती आरती के मौके पर घाटों को शीत ऋतुओं के पुष्पों व दीयों से सुशोभित किया गया था। पूर्णिमा की संध्या होने के कारण आदि माँ गोमती महाआरती को देखने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। कार्यक्रम के शुरआत सायं चार बजे मनकामेश्वर उपवन घाट पर महन्त देव्यागिरि ने संत रविदास एवं छत्रपति शिवाजी महाराज के चित्र पर माल्यार्पण कर व समस्त मनकामेश्वर सेवादारों एवं उपस्थित श्रद्धालुओं के साथ पूजन व महाआरती कर के की।
11 वेदियों पर की गई आदि माँ गोमती विश्व कल्याणार्थ व शांति हेतु महाआरती एवं माघी शुक्ल पूर्णिमा चंद्र महाआरती
नमोस्तुते माँ गोमती एवं मनकामेश्वर मठ मंदिर की श्रीमहंत देव्यागिरी जी महाराज ने मुख्य मंच से माँ गोमती की महा आरती की साथ ही साथ माघी पूर्णिमा के अवसर पर महंत देव्यागिरि ने चंद्र आरती कर भगवान चंद्रदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया। पंडित शिवानंद व पंडित शिव राम अवस्थी के आचार्यत्व में सभी वेदियों पर एक ही वेश भूषा में सभी पंडितों ने मंत्रों उच्चार के साथ माँ गोमती की आरती और पूजा अर्चना की।
पुष्पार्पण एवं महाआरती के साथ मनाया गया संत रविदास एवं छत्रपति शिवाजी महाराज जन्मोत्सव
कार्यक्रम के दूसरे भाग में उपवन घाट पर मंदिर की श्रीमहन्त देव्यागिरि के नेतृत्व में संत रविदास एवं छत्रपति शिवाजी महाराज जन्मोत्सव मनाया गया। पुष्पार्पण एवं महाआरती कर इस कार्यक्रम का आरम्भ सायं 4 बजे हुआ।
महंत देव्यागिरि ने मंच से सुनाई माता संत रविदास एवं छत्रपति शिवाजी महाराज की माता जीजा बाई की कथा
संत रविदासजी की जीवन कथा महंत देव्या गिरि ने अपने श्री मुख से माहआरती मे उपस्थित श्रद्धालुओं को सुनाई, देव्या गिरि ने कहा की “लोक कथाओं के अनुसार के अनुसार रविदास जी अपने साथी के साथ खेल रहे थे। एक दिन खेलने के बाद अगले दिन वो साथी नहीं आता है तो रविदास जी उसे ढूंढ़ने चले जाते हैं, लेकिन उन्हे पता चलता है कि उसकी मृत्यु हो गई। ये देखकर रविदास जी बहुत दुखी होते हैं और अपने मित्र को बोलते हैं कि उठो ये समय सोने का नहीं है, मेरे साथ खेलो। इतना सुनकर उनका मृत साथी खड़ा हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संत रविदास जी को बचपन से ही आलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। लेकिन जैसे-जैसे समय निकलता गया उन्होंने अपनी शक्ति भगवान राम और कृष्ण की भक्ति में लगाई। इस तरह धीरे-धीरे लोगों का भला करते हुए वो संत बन गए।” वही शिवा जी महाराज के जीवन पर प्रकाश डालते हुए मेहनत ने कहा की, “शिवाजी भोंसले ,जिन्हें छत्रपति शिवाजी के नाम से जाना जाता है ,एक वीर भारतीय योधा और मराठा वंश के सदस्य थे | शिवाजी ने आदिलशाही सल्तनत की अधीनता स्वीकार ना करते हुए उनसे कई लड़ाईयां की थी | शिवाजी ने गुर्रील्ला पद्दति से कई युद्ध जीते | इन्हें आद्य-राष्ट्रवाद का नायक भी माना जाता है |1674 में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ और उन्हें छत्रपति का ख़िताब मिला”
संत रविदास द्वारा रचित भजनों से भाव विभोर हुए श्रद्धालु
इस अवसर पर संत रविदास जी रचित भजनों को सुन श्रद्धालु झूम उठे, स्थानीय कलाकारों ने छत्रपति शिवाजी महाराज जीवन लीला की अलौकिक छवि प्रस्तुत की. अमित त्रिसूली, आकाश, बंटी, पिंकी एवं नीरज ने संत रविदास द्वारा रचित भजनों को प्रस्तुत कर समस्त उपस्थित श्रद्धालुओं को भावविभोर का दिया, वही संचिता बेरा व रिदम गुप्ता द्वारा रचित शिवाजी महाराज जीवन लीला को दर्शकों ने बहुत पसंद किया.