मेंथॉल की खेती के लिए उद्योग की वैज्ञानिकों के साथ भागीदारी की दरकार : प्रो अनिल के. त्रिपाठी.
लखनऊ: दुनिया के 80 प्रतिशत मेंथॉल मिन्ट की आपूर्ति भारत करता है, जो एक लाख से अधिक छोटे किसानों की आजीविका की आजीविका का साधन है . हालांकि हाल ही में कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने रासायनिक मार्ग के माध्यम से मेंथॉल का उत्पादन शुरू किया है जो कि प्राकृतिक मेंथॉल के लिए एक गंभीर खतरा है. यह बात सीमैप में मेंथॉल मिन्ट में संभावनाओं, चुनौतियों और खतरों पर चर्चा के लिए आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के दौरान सीमैप के कार्यवाहक निदेशक डॉ.आलोक कालरा ने कही. इस सम्मेलन का उद्घाटन प्रोफेसर अनिल के. त्रिपाठी (निदेशक इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंसेज, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय) ने किया.
मेंथॉल मिन्ट में संभावनाओं, चुनौतियों और खतरों पर चर्चा के लिए राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू
प्रो अनिल कुमार त्रिपाठी ने मिंट क्रांति और देश को मेंथॉल की खेती में आत्मनिर्भर बनाने के लिए सीमैप के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने कहा कि सीमैप देश के कुछ गिने चुने संस्थानों में से एक है, जो अपने अनुसंधान और विस्तार के प्रयासों को दिशा प्रदान करने के लिए किसानों और उद्योग के साथ लगातार बातचीत करता है. उन्होंने उद्योग से अपने संसाधनों और साझेदार को उन्नत किस्मों, प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों और मूल्य संवर्धन उत्पादों के विकास में वैज्ञानिक समुदाय के साथ साझा करने का आग्रह किया. उन्होंने यह भी बताया कि मेंथॉल की सफलता ने सीमैप को सीएसआईआर एरोमा मिशन के नेतृत्व करने के लिए प्रेरित किया है जो देश को विभिन्न आवश्यक तेलों में आत्मनिर्भर बना देगा.
मेंथॉल का रासायनिक उत्पादन प्राकृतिक मेंथॉल के लिए एक गंभीर खतरा : डॉ.आलोक कालरा
वही डॉ.आलोक कालरा ने यह भी बताया कि जलवायु परिवर्तन भी इसकी खेती को प्रभावित कर रहा है जिससे मौजूदा मेन्थॉल के काश्तकारों की उपज क्षमता प्रभावित हो रही है. उन्होंने कहा कि सीमैप विगत कई वर्षों से न केवल उन्नत और उच्च उपज देने वाली प्रजातियों के विकास के लिए अनुसंधान कर रहा है और साथ ही साथ खेती के लिए कृषि-प्रौद्योगिकी में भी सुधार किया जा सकता है, जिससे खेती की लागत में कमी आ सकती है. एसेंशियल ऑयल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव श्री प्रदीप जैन ने जोर देकर कहा कि मेंथॉल पर मंडी कर लगाने से मिन्ट उद्योग पर संकट के बादल छा गए हैं और यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में मिंट के व्यापार के लिए एक ज्वलंत मुद्दा बन गया है. सुनील कुमार (एमसीएक्स, मुंबई) ने कहा कि मेंथॉल की कीमत और रुझान से देश में मिन्ट की सतत खेती संभव है और एमसीएक्स संयुक्त रूप से सीमैप के साथ मिलकर इन मुद्दों पर किसानों और उद्योगों को जागरूक बनाने में लगा हुआ है. इस दौरान डॉ बीआर त्यागी और स्वर्गीय डॉ एनके पात्रा को देश में मेंथॉल क्रांति की सफलता के लिए उनके महत्वपूर्ण वैज्ञानिक योगदान के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया और स्मारिका का भी विमोचन किया गया. डॉ बीआर त्यागी (पूर्व मुख्य वैज्ञानिक, सीमैप) ने सीमैप के प्रयासों के के बारे में बताया जिससे भारत एक मेंथॉल मिंट को आयातित करने वाले देश से विश्व का अग्रणी निर्यातक देश बन पाया है. उन्होंने संक्षेप में मेंथा क्रांति की कहानी को दर्शकों के सामने पेश किया. इवान ज़हरियेव (एग्रोइको इन्वेस्टमेंट लिमिटेड, बुल्गारिया) ने बुल्गारिया और यूक्रेन में गैर-मेंथॉल टकसाल की खेती के लिए नई किस्मों पर व्याख्यान दिया जिसमें उन्होंने पोल्सल्स्का डायना तथा ओक्सामिट जैसे उच्च-उपज वाले गैर-मेंथॉल किस्मों के बारे में बात की जिसकी सफलतापूर्वक बुल्गारिया और यूक्रेन में खेती की जाती है.