दस्तक-विशेषसाहित्यस्तम्भहृदयनारायण दीक्षित
पाकिस्तान प्राकृतिक राष्ट्र नहीं है, मजहब के आधार पर भारत विभाजन से यह एक मुल्क बना
हृदयनारायण दीक्षित : भारत पाक के मध्य युद्ध की स्थिति है। पाकिस्तान की तरफ से मुसलसल युद्ध है। आमने सामने के युद्धों में वह हारता रहा है। भारतीय सेना ने उसे हर दफा पीटा है। पाकिस्तानी फौज व खुफिया एजेंसी आईएसआई के संयोजन में यहां आतंकवादी भेजे जाते हैं। पाकिस्तान आतंकवादी ट्रेनिंग की खुली यूनीवर्सिटी है। पुलवामा के ताजे हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तानी आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद ने स्वीकार की। भारत ने जैश द्वारा संचालित आतंकी ट्रेनिंग कैम्प को नष्ट कर दिया। अब सीमा पर तनाव है। युद्ध की परिस्थिति है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सबकी राय तनाव घटाने की है। भारत के पास इस कार्रवाई का कोई विकल्प नहीं था। केवल युद्ध था। लेकिन भारत ने पाकिस्तानी जनता या फौज पर हमला नहीं किया। भारत ने संयम बरता और आत्मरक्षार्थ आतंकी ट्रेनिंग कैम्प को ही निशाना बनाया। पूरा भारत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस निर्णय के साथ है। युद्ध निस्संदेह बुरा होता है। तमाम क्षति होती है। देश के कुछेक टिप्पणीकारों ने भारतीय सभ्यता का हवाला देकर युद्ध को बुरा बताया है। लेकिन मूलभूत प्रश्न है कि क्या भारत ने अपनी ओर से लगातार संयम ही नहीं बरता? क्या पाकिस्तान को आतंकवादी हमलों के साक्ष्य नहीं दिए गये?
पाकिस्तान प्राकृतिक राष्ट्र नहीं है। इसका जन्म स्वाभाविक देश की तरह नहीं हुआ। मजहब के आधार पर भारत विभाजन से यह एक मुल्क बना। भारत ने प्रकृति से ही जनतंत्र अपनाया और पाकिस्तान ने स्वभाव के अनुरूप स्वयं को इस्लामी मुल्क घोषित किया। यह अस्वाभाविक देश है। इसलिए 1971 में इसका एक भाग टूट कर बांग्लादेश बन गया। पाकिस्तान फिर से टूट कर बिखरने को अभिशप्त है। अखिरकार वह आतंक का पोषण क्यों करता है? वह आतंकी ट्रेनिंग कैम्प क्यों चलाता है? वह भारत का रक्त बहाने वाले आतंकवादी गुनहगारों को भारत के हवाले क्यों नहीं करता? भारत युद्धप्रिय रक्त चरित्र वाला राष्ट्र नहीं है? भारत अजेय रहना चाहता है। इसलिए आत्म रक्षार्थ कार्रवाई भारत का अधिकार हैं। प्रत्येक व्यक्ति में अजेय बने रहने की प्यास होती है। सबके मन में रहता है कि हम अपराजेय बने रहें। इसीलिए अपनी राष्ट्र शक्ति की गहन अभीप्सा, प्रत्येक व्यक्ति में होती है। हमारे इतिहास के 10-15 हजार साल पहले वैदिक काल के ऋषि पराक्रमी राष्ट्र की आराधना कर रहे थे। पूर्वजों के काव्य में राष्ट्र शक्ति समृद्धि की बातें थीं।
आत्मरक्षा जरूरी है। प्रत्येक राष्ट्र शक्तिशाली होने की कामना करता है। राष्ट्र शक्तिशाली होकर ही अजेय अजर और अमर हो सकते हैं। इसीलिए प्राचीन काल में शक्ति की आराधना है। इन्द्र ऐसे ही पराक्रमी देव और शत्रुहंता हैं। हमारी आस्था के देवता पराक्रमी हैं। पुराणों में भी शक्ति समृद्धि के देवता हैं। रामायण में श्रीराम देवता हैं। राम, कृष्ण और शिव की चर्चा डाॅ0 लोहिया ने भी की थी। डाॅ. लोहिया ने कहा कि ये भारत के तीन सपने हैं राम, कृष्ण और शिव। वे कहते हैं कि राम, कृष्ण और शिव ये भारत की त्रिमूर्ति हैं। तुलसीदास कहते हैं कि हमको वही राम अच्छे लगते हैं जो धनुष-बाण लिये हुए हों। सो क्यों? शास्त्र के साथ शस्त्र भी आवश्यक होते हैं। प्रतिकार का विकल्प नहीं होता। भारत क्या करे? क्या आतंकवाद के सामने घुटने टेके? कब तक संयम बरते? युद्ध कभी कभी विकल्प नहीं छोड़ता। राष्ट्रधर्म बन जाता है लड़ना। अर्जुन कहां लड़ना चाहता था? कृष्ण ने भी सुलह के प्रयास किए थे। लेकिन बात नहीं बनी। यही बात गीता में कृष्ण बताते हैं कि – हे! अर्जुन पीपल का वृक्ष मैं हूं। हे अर्जुन जल में रस मैं हूं। फिर कहते हैं कि शस्त्रधारियों में राम मैं हूं। शस्त्र शक्ति अनिवार्य है। राष्ट्र की शक्ति अपरिहार्य है। अजेय राष्ट्र हो जाने की शक्ति चाहिए। हम चाहते हैं कि राम शस्त्रधारी दिखाई पड़े और कृष्ण सुदर्शन चक्र शस्त्रधारी हों।
भारत का देवतंत्र मजेदार है। शिव बम भोले हैं। वे थोड़ी आराधना से प्रसन्न हो जाते हैं। मस्त-मस्त हैं। वाल्मीकि जी बताते हैं कि शिव अपने गणों के साथ बहुत नाचते हैं। शिव कोप में हैं तो रूद्र कहलाते हैं। ऋग्वेद में शिव और रूद्र एक हैं। ऐसा कहा गया है। शिव जब रूद्र हो जाते हैं तो संहारक। वही जब कल्याणदाता हैं तो शिव। भारत शिव उपासक है। रूद्र उपासना भी जरूरी है। हनुमान आराध्य देव हैं। हनुमान वज्र और गदा लिये हैं। हमारी तरह किताब-विताब लिए हों तो क्या अच्छे लगेंगे? हम लोग गाते हैं कि हाथ वज्र और ध्वजा विराजे। क्या मतलब? शस्त्र के साथ ध्वज भी लिए हैं। बात अर्थपूर्ण हैं। ध्वज सिद्धांत का प्रतीक है। ध्वज झण्डा लेकर हम भी निकलते हैं। हमारे सिद्धांत के विरूद्ध शक्ति प्रयोग करते हो, लड़ाई करना चाहते हो, राष्ट्र ध्वज तिरंगे का अपमान करते हो तब वज्र है। गदा है। विचार सभ्यता के साथ शक्ति भी है हमारे पास। कमजोर का सिद्धांत बेकार होता है। व्यक्ति बहुत कमजोर हो, चल फिर न पाता हो और कहे आपको जाओ हमने आपको माफ किया तो आपको हंसी आयेगी। कोई व्यक्ति बहुत शक्तिशाली हो, बहुत सम्पन हो और वह आपसे एक बार हाथ जोड़ दे। अच्छा लगेगा। शक्तिशाली हमसे हाथ जोड़ रहा है। हम सभ्य राष्ट्र हैं। प्राचीन सभ्यता है। लेकिन मार खाने को तैयार नहीं हैं। यह मोदी जी के नेतृत्व वाला नया भारत है। भारत का पक्ष सही है। सारी दुनिया आतंकवाद से पीड़ित है। भारत के हजारों लोग मारे गए हैं। सभी मंचो पर साक्ष्य गवाही दी गई। लेकिन कोई सुनवाई नहीं। संसद, संकट मोचन, मुम्बई यहां, वहां। यत्र तत्र सर्वत्र आतंकी हमले। पुरानी बात है। श्रीराम रावण से युद्ध कर रहे थे। अंतिम दिनों में उनको लगा कि पराजय हो सकती है। उन्होंने पता किया कि कुछ दिव्य शक्तियां रावण के पक्ष में हैं। कवि महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी उन्नाव के गढ़ाकोला गांव के रहने वाले थे। मैं वहीं से विधायक हूं। निराला जी ने एक सुन्दर कविता लिखी – ‘राम की शक्ति पूजा।’ इसे पढ़ना चाहिए। राम की पूजा हम करते हैं, आप करते हैं। राम ने भी शक्ति की उपासना की। निराला जी की यह कविता बड़ी भावुक है। मैं कहूंगा कि दुनिया में ऐसी कविता कम ही मिलती है। निराला जी की इस कविता में राम भी शक्ति की आराधना कर रहे थे। वे शक्ति की आराधना में सफल होते हैं। लंका पर विजय प्राप्त करते हैं। जो शक्ति रावण के पास थी, वही दिव्य शक्ति श्रीराम की तरफ आ गई। अंतर्राष्ट्रीय शक्तियां भारत के साथ आ गई हैं। यह मोदी जी की उपासना का फल है। भारत पाक की तुलना व्यर्थ है। हमारे सैनिक शक्तिशाली हैं। आत्म बलिदान को तत्पर हैं। पराजय का प्रश्न नहीं। देश को उन पर गर्व है। नरेन्द्र मोदी का कुशल नेतृत्व है। देश का उन पर विश्वास है। देश राष्ट्र आराधन की लय में है। दुनिया पाकिस्तान की करतूत जानती है। भारत की प्रकृति और शक्ति से सुपरिचित है।
(रविवार पर विशेष)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष है)