लखनऊ : किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय ने सौ बरस के चिकित्सा क्षेत्र में कामयाबी का नया झंडा फहराया है। यहां के डॉक्टरों की टीम ने गुरुवार को पहली बार 50 वर्षीय मरीज के लिवर का सफल ट्रांसप्लांट किया। सुबह से शाम तक चले ऑपरेशन के बाद डोनर और मरीज दोनों की हालत में सुधार है। सरकारी क्षेत्र में लिवर ट्रांसप्लांट की सुविधा फिलहाल संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में ही है। रायबरेली निवासी 50 वर्षीय व्यक्ति क्रॉनिक लिवर डिजीज से पीड़ित था। उसने फरवरी में केजीएमयू के सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग की ओपीडी में दिखाया। डॉक्टर ने लिवर खराब होने पर उसे ट्रांसप्लांट की सलाह दी। ऐसे में 48 वर्षीय पत्नी ने अपना लिवर देने के लिए हामी भरी। इसके बाद क्लीनिकल-पैथोलॉजिकल जांच की प्रक्रिया शुरू हुई। रिपोर्ट आने पर सर्जिकल गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. अभिजीत चंद्रा ने ट्रांसप्लांट की प्लानिंग की। उन्होंने 10 दिन पहले मरीज को वार्ड में भर्ती किया। पांच दिन मरीज को विशेष प्रोटोकॉल में रखा गया। इसमें उसकी पल-पल की मेडिकल हिस्ट्री बनाई गई। इसके बाद गुरुवार को दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल के डॉक्टरों संग मिलकर 14 घंटे में संस्थान में पहला लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। डॉ. अभिजीत चंद्रा के मुताबिक लिवर दो प्रमुख हिस्सों में होता है। एक राइट लोब, दूसरा लेफ्ट लोब होता है। मरीज में लिवर प्रत्यारोपण के लिए डोनर पत्नी का राइट लोब निकाला गया। इसमें पत्नी का 35 से 40 फीसद लिवर का हिस्सा प्रिजर्व कर पति में ट्रांसप्लांट किया गया। डॉ. अभिजीत चंद्रा के मुताबिक डोनर पत्नी शाम को होश में आ गई। उन्हें वेंटीलेटर से हटा दिया गया। वहीं, देर रात मरीज को भी वेंटीलेटर से हटा दिया जाएगा। हालांकि, अभी दोनों का इलाज आइसीयू में ही चलेगा। कुलपति प्रो. एमएलबी भट्ट ने इस ऑपरेशन के लिए चिकित्सकों को बधाई दी है। डॉ. अभिजीत चंद्रा ने बताया कि प्रत्यारोपण में करीब सात से आठ लाख रुपये खर्च आया है। पीजीआई में इसके लिए 14 से 15 लाख रुपये खर्च होते हैं जबकि निजी अस्पतालों में 40 लाख रुपये के करीब खर्च आता है। मरीज में लिवर ट्रांसप्लांट से पहले सात विभागों से क्लियरेंस ली गई। इसमें ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन, माइक्रोबायोलॉजी, पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी, कार्डियोलॉजी व एनेस्थीसिया विभाग शामिल हैं। चिकित्सकों की टीम ने डोनर व मरीज की विभिन्न जांचें कर एचएलए मैचिंग भी कराई।
इसके बाद ट्रांसप्लांट को हरी झंडी दी। सुबह पांच बजे ऑपरेशन थिएटर (ओटी) में ले जाया गया। ऐसे में पहले एक ओटी में डॉक्टरों ने मरीज की पत्नी से लिवर का हिस्सा निकाला। वहीं, दूसरी ओटी टेबल पर शिफ्ट मरीज के चीरा लगाकर खराब लिवर रिट्रीव किया। इस दौरान लिवर में शुद्ध रक्त ले जाने वाली हिपेटिक आर्टरी, अशुद्ध रक्त को वापस ले जाने वाली हिपेटिक वेन व पित्त की बाइल डक्ट को क्लैंप से ब्लॉक किया गया। वहीं, मरीज की पत्नी से निकाला गया लिवर का हिस्सा प्रत्यारोपित किया गया। इसके बाद एक-एक कर आर्टरी, वेन व बाइल डक्ट को लिवर से कनेक्ट किया गया। इस दौरान मरीज को पांच से छह यूनिट रक्त भी चढ़ाया गया। ट्रांसप्लांट में डॉक्टरों समेत 50 लोगों का स्टाफ लगा। इसमें मैक्स दिल्ली के लिवर ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट डॉ. सुभाष गुप्ता, डॉ. शालीन अग्रवाल, डॉ. राजेश दुबे भी शामिल रहे। केजीएमयू के डॉ. अभिजीत चंद्रा, डॉ. विवेक गुप्ता, डॉ. प्रदीप जोशी, डॉ. मो. परवेज, डॉ. अनीता मलिक, डॉ. तन्मय, डॉ. रोहित, डॉ. नीरा कोहली, डॉ. अनित परिहार, डॉ. तूलिका चंद्रा, डॉ. ईशान समेत 50 कर्मियों के स्टाफ ने मरीज की प्रत्यारोपण प्रक्रिया में अपनी जिम्मेदारी निभाई। पीजीआई, लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान जहां ऑर्गन ट्रांसप्लांट की दिशा में कीर्तिमान हासिल कर रहे थे। वहीं सौ बरस का केजीएमयू किडनी ट्रांसप्लांट तक ठप कर सिर्फ ऑर्गन रिट्रीवल तक सीमित था। मगर, गुरुवार को लिवर ट्रांसप्लांट कर संस्थान के चिकित्सकों ने नई उम्मीद जगा दी।