सपा-बसपा साथ मिलकर भी UP में ला पाएंगे सिर्फ 40 सीटें
देश में चुनावी सरगर्मी बेहद तेज है. हर पार्टी जोड़तोड़ में लगी है कि कैसे संसद में अपनी ताकत बढ़ाएं. हम सभी जानते हैं कि देश में सत्ता का रास्ता हमेशा उत्तर प्रदेश से होकर से जाता है. जहां सत्ता बचाने के लिए बीजेपी अपने साथियों से मान मनव्वल में जुटी है, वहीं भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए राज्य के दो विपरित ध्रुव सपा और बसपा एक साथ आ गए. बुआ-बबुआ के इस गठजोड़ ने बीजेपी समर्थकों की नीदें उड़ा दी क्योंकि तमाम सर्वे बताते हैं कि अगर बीजेपी को सत्ता में आने से कोई रोक सकता है तो वो है समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन. बीजेपी से सीधा मुकाबला भी इसी गठबंधन का है.
लेकिन 2014 चुनाव के नतीजों में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े हैं. अगर इसी वोटिंग पैटर्न को सही मान लिया जाए तो सिर्फ 35 ऐसी सीटें हैं जहां दोनों पार्टियां मिलकर बीजेपी को रोकने की हालत में हैं. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यूपी की कुल 80 सीटों में से 62 सीटों पर सपा और बसपा दूसरे और तीसरे पायदान पर आये थे और इनका कुल मत प्रतिशत जोड़ने पर ये आंकड़ा सामने आता है.
ये आंकड़े बताते हैं कि दोनों दलों का मत प्रतिशत जोड़ने के बाद भी समाजवादी पार्टी और बीएसपी करीब 35 सीटों पर ही बीजेपी को टक्कर देने की स्थिति में हैं, यानी इन 62 सीटों में से 27 सीटें ऐसी हैं जहां सपा और बसपा के वोट एक साथ भी हो जाएं तो वो बीजेपी को हराने की हालत में नहीं हैं. अगर 2014 के आंकड़ों को आधार माने तो अखिलेश यादव और मायावती का गठबंधन बीजेपी से आज की तारीख में 35 सीटें छीन सकता है. इसमें सपा की जीती हुई 5 सीटों को जोड़ दिया जाए तो ये आंकड़ा 40 तक पहुंचता है यानी सपा बसपा गठबंधन आज की तारीख में 80 में से 40 सीटें जीत सकती हैं.
इस गठबंधन की हालत बुलंदशहर, मुजफ्फरपुर, आगरा, हाथरस और फैजाबाद जैसी सीटों पर बेहद खराब है. यहां बीजेपी की जीत का अंतर दोनों के संयुक्त वोटों के अंतर से ज्यादा है.
वही सपा बसपा गठबंधन को फायदा बस्ती, संभल, हरदोई, नगीना, लालगंज और गाजीपुर जैसी सीटों पर हो सकता है जहां दोनों पार्टियों के संयुक्त वोटों और बीजेपी के वोट प्रतिशत में करीब 20 फीसदी का अंतर है यानी इन सीटों पर बीजेपी के लिए बढ़ा खतरा मंडरा रहा है.
कांग्रेस को गठबंधन में शामिल न करके सपा और बसपा ने आपस में 75 सीटें बांट ली हैं. साथ ही गठबंधन ने फिलहाल ये फैसला किया है कि वो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की सीट अमेठी और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी की रायबरेली सीट पर उम्मीदवार खड़ा नहीं करेंगे.
हम आपको बता दें कि 2014 में बसपा एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई थी जबकि 34 सीटों पर वो नंबर 2 पर थी. वहीं समाजवादी पार्टी 31 सीटों पर और कांग्रेस 7 सीटों पर दूसरे पायदान पर पहुंची थी.
2014 लोकसभा चुनाव के यूपी के ये आंकड़े दिलचस्प हैं, सपा बसपा गठबंधन ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाई जरूर हैं लेकिन बीजेपी को फिर भी हराना आसान नहीं होगा बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती इन दोनों पार्टियों को रोकना होगा तो समाजवादी पार्टी और बीएसपी दोनों के लिए सबसे बड़ा चैलेंज अपने वोटों को एक दूसरे को ट्रांसफर कराना होगा. आखिरी बात राजनीति में कभी 2 और 2 चार नहीं होते. राजनीति संभावनाओं का खेल है और उत्तर प्रदेश में फिलहाल संभावनाएं अपार हैं.