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108 अर्थशास्त्रियों ने किया ‘अवार्ड वापसी जैसा ड्रामा’

देश 131 चार्टर्ड अकाउंटेंट ने आर्थिक आंकड़ों में दखल को लेकर 108 प्रमुख अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों के समूह द्वारा जताई गई चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि देश उच्च आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है. कुछ दिनों पहले 108 अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक आंकड़ों में राजनीतिक दखल को लेकर चिंता जताई थी. इन अर्थशास्त्रि‍यों ने ‘संस्थाओं की आजादी’ को बहाल करने और सांख्यिकीय संगठनों की ईमानदारी को बनाए रखने का आह्वान किया था. चार्टर्ड अकांउटेंट्स ने इसे ‘अवॉर्ड वापसी जैसा ड्रामा’ बताया.

राजनीति से प्रेरित

चार्टर्ड अकांउटेंट के समूह ने ‘आर्थिक आंकड़ों में राजनीतिक हस्तक्षेप’ के आरोपों को खारिज किया है. असल में अर्थशा‍स्त्रि‍यों ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) आंकड़ों में संशोधन और एनएसएसओ के रोजगार संबंधी आंकड़ों को रोके जाने को लेकर उठे विवाद के बीच यह चिंता जाहिर की थी. इसके जवाब में 131 चार्टर्ड अकाउंटेंट के समूह ने उनकी चिंता को खारिज कर दिया और उनके आरोपों को ‘ बेबुनियाद और राजनीति से प्रेरित’ बताया.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, चार्टर्ड अकांउटेंट्स ने कहा कि ये आरोप मनगढ़ंत प्रतीत होते हैं और इससे पहले हुए ‘सम्मान की वापसी’ जैसे ड्रामे की तरह लगते हैं जो एक महत्वपूर्ण राज्य चुनाव से ठीक पहले शुरू किया गया था.

उन्होंने कहा, ‘यह अपील उस समय ज्यादा कपटपूर्ण प्रतीत होती है जब विश्व बैंक, आईएमएफ समेत कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी जीडीपी, गरीबी उन्मूलन, कारोबारी सुगमता के आंकड़ों को लगातार प्रकाशित कर रही हैं. अंतरराष्ट्रीय डेटा और स्वतंत्र एजेंसियों ने भी सरकारी एजेंसियों द्वारा जारी आंकड़ों की पुष्टि की है. चार्टर्ड अकांउटेंट्स ने यह भी कहा कि 1960 से लेकर 2014 के बीच भारत अपने समकक्ष देशों जापान, चीन, ताइवान, कोरिया, ब्राजील, थाइलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, रूस, दक्षिण अफ्रीका सहित कई देशों से आर्थिक वृद्धि के मामले में पीछे छूट गया.

उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि भारत उच्च आर्थिक वृद्धि की राह पर जाने के लिये तैयार है और ऐसे में भारत की साख एवं प्रगति को नुकसान पहुंचाने वाले राजनीति से प्रेरित प्रयासों का प्रतिवाद किया जाना जरूरी हो जाता है.’

इसके पहले 108 प्रमुख अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों ने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों में संशोधन करने तथा एनएसएसओ द्वारा रोजगार के आंकड़ों को रोक कर रखे जाने के मामले में पैदा हुए विवाद के मद्देनजर यह बयान दिया था. बयान के अनुसार उन्होंने कहा था कि दशकों से भारत की सांख्यिकीय मशीनरी की आर्थिक से सामाजिक मानदंडों पर आंकड़ों को लेकर बेहतर साख रही है.

अर्थशास्त्रियों तथा समाजशास्त्रियों के अनुसार यह जरूरी है कि आंकड़े एकत्रित करने तथा उसके प्रसार से जुड़े केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) तथा राष्ट्रीय नमूना सर्वे संगठन (एनएसएसओ) जैसी एजेंसियों को राजनीतिक हस्तक्षेप से परे रखा जाये और वह पूरी तरह विश्वसनीय मानी जाएं. बयान में इस संबंध में सीएसओ के 2016-17 के संशोधित जीडीपी वृद्धि अनुमान के आंकड़ों का हवाला दिया गया था. इसमें संशोधित वृद्धि का आंकड़ा पहले के मुकाबले 1.1 प्रतिशत अंक बढ़ाकर 8.2 प्रतिशत हो गया जो एक दशक में सर्वाधिक है. इसको लेकर संशय जताया गया है. वक्तव्य में एनएसएसओ के समय-समय पर जारी होने वाले श्रम बल सर्वेक्षण के आंकड़ों को रोकने और 2017- 18 के इन आंकड़ों को सरकार द्वारा निरस्त किये जाने संबंधी समाचार रिपोर्ट पर भी चिंता जताई गई है.

विरोध में मोहनन ने दिया था इस्तीफा

राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के प्रमुख पद से हाल में इस्तीफा देने वाले सांख्यिकी विद पी.सी. मोहनन ने भी कहा था कि देश में सांख्यिकी आंकड़ों में कथित राजनीतिक हस्तक्षेप पर 108 अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों की चिंता को राजनीतिक दलों को गंभीरता से लेना चाहिए. मोहनन ने जनवरी में आयोग के कार्यवाहक चेयरमैन पद से एक और सदस्य के साथ इस्तीफा दे दिया था. इसकी अहम वजह नौकरियों को लेकर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के आंकड़ों को रोका माना गया.

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