कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी अपनी परंपरागत रायबेरली लोकसभा सीट पर आज नामांकन पत्र दाखिल करेंगी. सोनिया का रायबरेली में ये पांचवा लोकसभा चुनाव है, इसीलिए कांग्रेस ‘इस बार पांच लाख पार’ नारे के साथ चुनावी मैदान में उतरी है. सोनिया गांधी के खिलाफ बीजेपी ने दिनेश प्रताप सिंह को उतारा है. जबकि सपा-बसपा ने कांग्रेस के समर्थन में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं.
रायबेरली कांग्रेस का मजबूत दुर्ग माना जाता है, यहां से पहली बार 1952 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने जीत हासिल कर कांग्रेस का खाता खोला था जो सोनिया गांधी तक यथावत जारी है. महज तीन बार यहां कांग्रेस को मात मिली है, वो भी तब जब यहां से ‘गांधी परिवार’ का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं उतरा था.
सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा तो पहली बार उन्होंने अपने पति राजीव गांधी की संसदीय सीट अमेठी को अपनी कर्मभूमि बनाया. 1999 में पहली बार अमेठी सीट से सांसद चुनी गई. इसके बाद 2004 में राहुल गांधी ने राजनीति में कदम रखा तो सोनिया ने बेटे के लिए अमेठी छोड़कर अपनी सास और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की संसदीय सीट को कर्मभूमि बनाया.
इसके बाद से सोनिया लगातार चुनावी जंग फतह करती आ रही हैं. मोदी लहर में भी सोनिया गांधी को बीजेपी चुनौती नहीं दे सकी थी. इसका नतीजा था कि सोनिया ने 5,26,434 वोट हासिल किया था और बीजेपी के अजय अग्रवाल को करीब साढ़े तीन लाख मतों से मात दिया था.
रायबरेली लोकसभा सीट पर अभी तक कुल 16 बार लोकसभा आम चुनाव और दो बार लोकसभा उपचुनाव हुए हैं. इनमें से 15 बार कांग्रेस को जीत मिली है, जबकि एक बार भारतीय लोकदल और दो बार बीजेपी यहां से जीत चुकी है. 1957 में पहली बार हुए चुनाव में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर उतरे और जीतकर सांसद बने.
1962 की लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट दलित वर्ग के लिए आरक्षित कर दी गई तब यहां पर कांग्रेस के बैजनाथ कुरील सांसद चुने गए थे. इसके बाद 1967 के आम चुनाव में रायबरेली लोकसभा सीट फिर से सामान्य कर दी गई. हालांकि रायबरेली सुर्खियों में तब आई जब पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पुत्री और देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी यहां से चुनावी मैदान में उतरीं. 1967 में इंदिरा गांधी यहां से सांसद बनीं. इसके बाद वो लगातार 2 बार जीतीं, लेकिन 1977 में भारतीय लोक दल के उम्मीदवार राज नारायण के हाथों हार का मुंह देखना पड़ा.
1980 में इंदिरा गांधी एक बार फिर उतरीं और रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की. इसके बाद 1984 और 1989 में जवाहर लाल नेहरू के भतीजे अरुण कुमार नेहरू यहां से सांसद चुने गए. 1989 और 1991 में कांग्रेस से शीला कौल ने जीत दर्ज की. 1996 और 1998 में बीजेपी से अशोक सिंह यहां कमल खिलाने में कामयाब रहे.
लेकिन, इसके बाद से बीजेपी अभी तक जीत नहीं सकी है. 1999 में कैप्टन सतीश शर्मा यहां से सांसद बने और 2004 में सोनिया गांधी ने इसे अपनी कर्मभूमि बनाया. इसके बाद लगातार वो जीत दर्ज करती आ रही हैं. मोदी लहर में भी इस सीट पर बीजेपी का कमल नहीं खिल सका है. दिलचस्प बात ये है कि सपा और बसपा इस सीट पर खाता नहीं खोल सकी है.