पश्चिमी यूपी, हरियाणा व पंजाब के किसान आड़ू की खेती से कमा रहे लाभ
लखनऊ: केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान में एक दिवसीय आड़ू फील्ड दिवस में मलिहाबाद, माल, काकोरी, लखनऊ, मोहनलाल गंज, बक्शी का तालाब, बंथरा, चिलौली के लगभग 55 कृषकों ने भाग लिया. संस्थान ने आड़ू की विशेष किस्म को विभिन्न स्थानों से एकत्रित करके रहमानखेड़ा, में अध्ययन किया और पाया कि ये किस्म अवशिदन चाहने वाली किस्में सफलतापूर्वक उत्तर प्रदेश के मैदानी भागों के अन्य मैदानों में उगायी जा सकती है जहाँ ठण्ड काफी पड़ती है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं पंजाब के किसान आड़ू उगाकर दिल्ली और अन्य बाजार में बेच कर लाभ कमा रहे हैं. लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र में आड़ू की खेती की संभावना को देखते हुये इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिससे किसानों में आड़ू की खेती के लिये रूचि उत्पन्न हो.
केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान में आड़ू फील्ड दिवस का आयोजन
इस अवसर पर निदेशक डॉ. शैलेन्द्र राजन ने किसानों को आड़ू की काश्तकारी की वैज्ञानिक खेती की गुण बताये. किसानों फल बिक्री संबंधी समस्याओं को सुना तथा किसानों के प्रश्नों का उत्तर दिया किसानों को आड़ू के कलमी पौध को उपलब्ध कराने पर विशेष जोर दिया गया. कार्यक्रम समन्वय डॉ. कंचन कुमार श्रीवास्तव, ने किसानों को बताया कि उत्तर भारत में ‘प्रताप’, ‘फ्लोरिडा प्रिंस’, शाने पंजाब किस्में से सफलतापूर्वक लाभ प्राप्त किया जा सकता है. इसके पौध को 3 × 3 मीटर (1111 पौधे) की दूरी पर जनवरी, फरवरी में लगाये जाते हैं. एक वर्ष बाद ही फल बाग में आ जाते हैं और पेड़ बौने आकार में होने के कारण नये आम के बाग के मध्य में लगाया जा सकता है. किसानों को बगीचे में जाकर आड़ू की विभिन्न किस्मों के पेड़ पर फलते हुए देखने का मौका मिला. एक ही बाग में 8 तरह की किस्में देखकर किसानों का कौतूहल देखने लायक था. स्थान ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हरियाणा से लगे हुए स्थानों से आड़ू के बीजू पौधे मगाए परंतु उनमें निमेटोड की अधिक संख्या होने के कारण नष्ट भी करना पड़ा ताकि यह समस्या मलीहाबाद के क्षेत्र में ना पनपे. संस्थान अब निमेटोड रहित बीजू पौधे बनाने के लिए तकनीकी पैर शोध कर रहा है जिससे क्षेत्र की मांग के अनुसार कलमी पौधों का उत्पादन करना सरल हो जाएगा.