दस्तक-विशेष

एक साल का मोदीनामा : उम्मीद अभी कायम

ज्ञानेन्द्र शर्मा

prasangvashअपनी अपनी हर कोई तारीफ करता है और बात अगर अपनी सरकार की हो तो कहने ही क्या हैं क्योंकि जब देखो तब आपको सत्तासीन लोगों के मुंह से अपनी सरकार की प्रशंसा में गीतों का गायन सुनाई देगा और साथ में सुनाई देंगी वे गालियां जो मीडिया को दी जाती हैं, इस आरोप के साथ कि सरकार के अच्छे कामों को वह जनता तक नहीं पहुंचा रहा है। अब इन सत्तासीनों को कौन समझाए कि प्रोफेशनल और कर्तव्यनिष्ठ मीडिया वही होता है जो सरकार के कामों से जनता को नहीं, आम जनता की तकलीफों से सरकार को प्रभावित करे।

मोदी जी ने पिछले एक साल में और इस साल के शुरू होने के पहले के एक साल में न जाने कितनी बातें कहीं। याद करना मुश्किल है। हां कुछ बातें हैं जो मोदी जी ज्यादा ही तेजी में बोल गए और ये उनके गले पड़ गईं या पड़ती रहेंगी। सत्ता में आने से पूर्व उन्होंने अनगिनत चुनाव सभाओं में कहा: भाइयों और बहिनों, अब जल्दी ही अच्छे दिन आने वाले हैं। और अपने कार्यकाल के पहले साल के समापन पर उन्होंने बता भी दिया कि अच्छे दिन कैसे आ गए। दक्षिण कोरिया की अपनी यात्रा के समापन पर उन्होंने राजधानी सियोल में प्रवासी भारतीयों की सभा में कहा-‘हाल के दिनों में लोगों ने यह सोचना शुरू कर दिया था कि आखिर किस अपराध के चलते उन्हें भारत में जन्म मिला और अब यह सोच कैसे बदल गई’। उनका साफ मतलब यह था कि उनकी सरकार बनने से पहले भारतीयों को भारत में जन्म लेने पर गर्व नहीं था। अब जब से उनकी सरकार आई है कि उन्हें यह गर्व होने लग गया है कि उन्होंने भारत में जन्म लिया है।
मोदी जी ऐसा बयान देते समय यह भी भूल गए कि इस बीच में अटल बिारी वाजपेयी की भी सरकार इस देश में थी। क्या वे यह कहना चाहते हें कि अटल जी की सरकार में भी लोगों को अपने भारतीय होने पर गर्व नहीं था और यदि ऐसा था तो अटल जी को मोदी सरकार ने भारत रत्न से क्यों नवाजा? वैसे तो हर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री अपनी सरकार की वाहवाही करता है लेकिन मोदी जी ने जितने सर्टिफिकेट अपनी सरकार को दे डाले हैं, शायद ही किसी ने अपनी सरकार को कभी दिए हों। वे कहते हैं अब जब से वे सत्ता में आए हैं, हर भारतीय को अपने भारतीय होने पर गर्व है। उन्होंने 55 साल का कूड़ा साफ कर दिया है। वे पूरे हफ्ते काम करते हैं, इतवार की भी छुट्टी नहीं लेते। उनके खासमखास अरुण जेटली ने तो अपने प्रधानमंत्री की और खुद अपनी मक्खनबाजी की हद ही कर दी। उनका दावा है कि मोदी जी की सरकार ने भ्रष्टाचार शब्द को शब्दकोष से ही हटा दिया है। (यहां यह बताते चलें कि अरुण जेटली अमृतसर से लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद भी देश के वित्तमंत्री बन गए और बकौल अरुण शौरी उन तीन लोगों में शामिल हैं, जो केन्द्र की सरकार चला रहे हैं- उनके अलावा खुद मोदी जी और अमित शाह। अरुण जेटली बड़े भाग्यवान हैं कि जनता द्वारा रिजेक्ट कर दिए जाने के बाद भी वे देश के वित मंत्री बना दिए गए और सरकारी रथ की तीन डोरों में से एक डोर उनके हाथ में है)। पता नहीं कि अरुण जेटली अब स्मृति ईरानी से कहेंगे कि स्कूलों में वे ही शब्दकोष वितरित हों जिनमें भ्रष्टाचार शब्द का समावेश न हो। सत्ता के सारे तार अपने हाथों में रखने वाले नरेन्द्र मोदी पर यह आरोप बराबर लगता रहा है कि उनके अंदर दम्भ है, अहंकार है, तानाशाही प्रवृत्तियां हैं। एक साल के अपने कार्यकाल पर दक्षिण कोरिया की धरती से उनका यह बयान उनके शासनकाल में अब भारतवासियों को भारतीय होने पर गर्व हुआ है, इन्हीं आरोपों की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त है।
पहले खुद मोदी जी के बड़े दावों की बात करें। वे कहते हैं कि बिना साप्ताहिक अवकाश लिए वे निरंतर रूप से काम करते हैं। वास्तविकता यह है कि कोई भी प्रधानमंत्री दिन रात काम करे तो भी काम पूरा नहीं हो सकता। पहले के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री भी दिन रात काम करते हैं क्योंकि उन्हें न केवल प्रशासन बल्कि राजनीति भी संभालती होती है। मोदी जी तो विदेश यात्राओं के दौरान टूरिस्ट रिजार्ट पर घूम आते हैं, मेलों की सैर कर आते हैं, गिटार बजाने के लिए और सैल्फी के लिए समय निकाल लेते हैं, दूसरे बहुतों को यह सुख भी नसीब नहीं है। मोदी जी शुरू से कहते रहे हैं कि वे तो देश के प्रधान सेवक हैं, साधारण आदमी हैं तो फिर सातों दिन काम करने में क्या परहेज और उसकी शेखी बघारने के मतलब क्या? क्या सब नहीं जानते कि साधारण आदमी यदि रोज घंटों काम न करे तो उसे खाने को रोटी न मिले? क्या यह सब नहीं जानते कि साधारण किसान दिनरात खेती में जुटने के बाद भी फटेहाल है। ऊपर से मोदी सरकार के मंत्री कहते हैं कि हे फटेहाल किसान, सरकार के भरोसे मत रह।
फिर एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि मोदी जी ने सारी सत्ता अपने हाथों में केन्द्रित कर रखी है। मंत्रियों के अपने अधिकारियों, व्यक्तिगत स्टाफ की नियुक्ति तक के अधिकार उन्होंने उनसे छीनकर अपने हाथ में ले लिए। कई महत्वपूर्ण विभाग छुटभैए मंत्रियों को दे दिए गए हैं और सारे छोटे-बड़े फैसलों के लिए वे प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर ताकते को मजबूर रहते हैं। तो ऐसे में प्रधानमंत्री कार्यालय को ज्यादा काम तो करना ही पड़ेगा। जहां तक राजनीति का सवाल है, भाजपा में वही होता है, जो मोदी जी चाहते हैं। जब सत्ता का इतना केन्द्रीकरण हो तो मोदी जी आपको तो कई कई घंटे बिना छुट्टी काम करना ही पड़ेगा, देश की जनता पर इसका अहसान मत ही लादिए।
उन्होंने सत्ता में आने से पहले काला धन विदेश से लाने के वादे किए थे और आम लोगों को भरोसा दिलाया था कि उनके खाते में 15-15 हजार रुपए तो जरूर ही आ जाएंगे। सत्ता में आने के तुरंत बाद उन्होने कहा था कि एक साल में अपराधी तत्वों को संसद से बाहर कर देंगे। उनके कई मंत्रियों पर एक साल में कई कई आरोप लगाए गए लेकिन उन्होंने उनकी आंख-मूंद तरफदारी वैसे ही की है, जैसी कि पिछली सरकारें अपने मंत्रियों के बारे में करती थीं। गंगा सफाई, स्मार्ट सिटी परियोजना, रेलवे किराया, पेट्रोल-डीजल के दाम, भ्रष्टाचार, महंगाई, नक्सलवाद, कश्मीर के हालात जैसे कई उदाहरण हैं जिन्हें आम आदमी अपने प्रधान सेवक की डोलची में फूलों से सजाकर नहीं रख सकता।
अभी अच्छे दिन तो आए नहीं, लेकिन जब ‘दस्तक टाइम्स’ का यह अंक आपके सामने होगा तब तक आपके और हमारे खराब दिन प्रारम्भ हो जाएंगे क्योंकि सर्विस टैक्स में वृद्धि के परिणामस्वरूप कोई सेवा ऐसी बाकी नहीं बचेगी, जो महंगी नहीं हो जाएगी। रेल किराया, हवाई किराया, मेट्रो किराया, ऑटो और टैक्सी किराया, ए0टी0एम0 का इस्तेमाल, बीमा की किश्तें, किसी तरह की भी खरीदारी, बाहर कहीं खाना खाना वगैरह वगैरह सब कुछ महंगा हो जाएगा। पेट्रोल और डीजल के दाम 15 दिन में 7 रुपए तक बढ़ गए, उस भाजपा के राज में जो कांग्रेस शासनकाल में ईंधन के मूल्य में बढ़ोतरी पर आंदोलन छेड़ती थी।
मोदी सरकार के एक साल में सबसे ज्यादा यदि कोई परेशान हुआ है तो वह है किसान। गेहूं, चना, दाल, धान, आलू, गन्ना के उत्पादक-किसान लगातार परेशान रहे क्योंकि कभी सरकार की नीतियों ने तो कभी मौसम की मार ने उन्हें सुख से जीने नहीं दिया। न जाने कितने किसान आत्महत्या को मजबूर हुए हैं। सरकार की नीतियों ने इस त्रासदी में कम योगदान नहीं किया। निर्यात पर बेवजह और असमय रोक लगाई गई, उस पर नियंत्रण लागू किया गया। मौसम की मार झेल रहे किसानों तक समय पर और पर्याप्त मात्रा में सहायता नहीं पहुंचाई गई। फसल बीमा की छतचढ़ी घोषणाएं एक झटके में फुर्र हो गईं। मोदी जी भारत से ज्यादा विदेशी धरती पर अपने विरोधियों की तीव्र आलोचना करते रहे लेकिन वस्तुत: उनकी सरकार ने कई ऐसे काम कर डाले, जिनकी एक विपक्षी दल के रूप में भाजपा निंदा किया करती थी। खुद कई मामलों में उसे यू-टर्न लेना पड़ा। अपने शपथ-ग्रहण में मोदी जी के नवाज शरीफ को बुलाया और जल्दी ही अपनी गलती पता चल गई। यह वही भाजपा थी जो कांग्रेस सरकार से मांग करती थी कि जब तक 26/11 के मुल्जिमों को भारत के हवाले न कर दिया जाय, पाकिस्तान से कोई वार्ता न हो। अनुच्छेद 370 हटाए जाने और फौज की कश्मीर से वापसी की अपनी परम्परागत और सालों पुरानी मांग को भाजपा ने इसलिए पीछे धकेल दिया क्योंकि उसे कश्मीर में सत्ता चाहिए थी। जम्मू कश्मीर सरकार ने एक कुख्यात आतंकवादी को रिहा कर दिया और श्रीनगर में पाकिस्तानी झण्डों का लहराया जाना आम बात हो गई है। ऐसा जब कभी पहले हुआ तो विपक्ष में रहकर भाजपा सरकार पर देशद्रोह का आरोप मढ़ती थी।
जब मनमोहन सिंह सरकार ने 2012 में रेल बजट आने से पहले रेल माल भाड़ा बढ़ाया था तो विपक्षी नेता के रूप में नरेन्द्र मोदी के उसका विरोध किया था और संसद की उपेक्षा का आरोप सरकार पर लगाते हुए 7 मार्च 2012 को एक बयान दिया था। लेकिन उनकी सरकार ने सत्ता में आते ही मालभाड़े में साढ़े 6 प्रतिशत की वृद्धि कर दी। पहले जो चीज गलत थी अब सत्ता परिवर्तन के बाद वही चीज सही हो गई। प्याज, सब्जी, फलों के दामों में वृद्धि पर भाजपा कांग्रेसी सरकारों से इस्तीफा मांगा करती थी लेकिन उसके सत्ता में आते ही जब मूल्यवृद्धि हुई तो इसका ठीकरा सरकार ने राज्य सरकारों के सिर फोड़ दिया। भारत-बांग्लादेश सीमा समझौते पर जिस तरह से भाजपा ने पलटा खाया, वह देखते ही बनता है। भाजपा हमेशा से असम को इस समझौते से बाहर रखने की हिमायती रही है लेकिन अब सत्ता में आकर उसने असम को डील में शामिल कर लिया। हां, इतना जरूर हुआ कि इसके लिए विदेश मंत्री ने पिछली सरकार की प्रशंसा कर दी। मल्टी-ब्रांड फुटकर व्यापार में विदेशी पूंजी निवेश पर भी सत्तारूढ़ ने जबर्दस्त पलटा खाया। किसी भी सरकार के अच्छे-बुरे काम की पहचान मूल रूप से इस बात से होती है कि वह आम लोगों के जीवन में क्या कोई मूलभूत परिवर्तन ला सकी है। क्या माहौल बदला है, क्या जनजीवन में सुकून आया है, क्या जिन्दगी बेहतर हुई है, क्या सत्तासीनों के चालचलन में अंतर आया है? स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक सुरक्षा, सड़क परिवहन, आधारभूत ढांचा, कानून व्यवस्था के हालात में कोई सुधार आया है या सुधार के लक्षण दिखे हैं? प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालयीन शिक्षा भगवान भरोसे चल रही है। देश के विश्वविद्यालय विश्व के 50 सर्वप्रमुख विश्वविद्यालयों में अपना नाम शामिल कराने की स्थिति में नहीं हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवाएं ध्वस्त पड़ी हुईं हैं। उनके लिए आधारभूत ढांचा नहीं है, डाक्टर नहीं हैं और बाकी बची कसर भ्रष्टाचार ने पूरी कर रखी है। सरकारी दफ्तरों की कार्य-संस्कृति में एक साल में कोई बदलाव नहीं आ सकता, यह सही है लेकिन उसकी शुरुआत तो हो सकती है, जो कहीं नहीं दिखती। जिस तरह से चर्चों पर हमले हुए, जिस तरह के बयान और भाषण हिन्दूवादी नेताओं ने इस एक साल में दिए, (आर0एस0एस0 प्रमुख भागवत ने तो यह तक कह दिया कि मदर टेरेसा के चैरिटी के काम के पीछे लोगों का धर्मपरिवर्तन कराना था)। जिस तरह की गैर-जिम्मेदाराना हरकतें हर मोर्चे पर दिखीं, वह सब तो कम से कम कोई अच्छा शगुन नहीं माना जा सकता। हां, मोदी जी ने इस साल सपने बहुत बड़े बड़े देखे और देशवासियों को भी दिखाए। बड़े काम करने के उनके वादों और इरादों का जोश अभी ठण्डा नहीं पड़ा है। उनके अंदर जज्बा है, हिम्मत है, इच्छाशक्ति भी है। उनकी सरकार के बहीखाते का पहला पन्ना बहुत सुनहरा भले ही न दिख रहा हो, उनको बड़ा लाभ यह तो मिला ही हुआ है कि अभी चार पन्ने खाली हैं। उनमें वे सुनहरे रंग भर सकते हैं। उम्मीद अभी कायम है। लेकिन उन्हें यह याद रखना चाहिए कि यह कहना कि ‘मैं श्रेष्ठ हूॅ’, आत्मविश्वास है लेकिन यह कहना कि सिर्फ ‘मैं ही श्रेष्ठ हूं’, अहंकार है’। ग्

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