गरुड़ पुराण में कहा गया है कि शरीर की देखभाल करें और स्वस्थ रहें
ज्योतिष डेस्क : कुल 18 पुराणों में से एक महत्वपूर्ण पुराण है गरुड़ पुराण। गरुड़ पुराण में केवल मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में ही विस्तार ने नहीं बताया गया है बल्कि मनुष्य को अपना जीवन किस तरह जीना चाहिए, इस बारे में भी प्रकाश डाला गया है। अपने जीवनकाल में हम अपने शरीर की देखभाल इसलिए करते हैं ताकि हम बेहतर दिख सकें, सुंदर दिख सकें और अच्छा महसूस कर सकें। जबकि गुरुड़ पुराण में शरीर की देखभाल करने की बात किन्हीं और कारणों से कही गई है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि शरीर बीमार होने पर मन भी खुश नहीं रह पाता और दुखी और व्यथित मन कभी भी धर्म के कार्यों में लीन नहीं होने देता। इसलिए जरूरी है कि हम अपने शरीर के देखभाल करें और स्वस्थ रहें। गरुड़ पुराण में कहा गया है कि वृद्धावस्था बाघिन के समान है और आयु एक फूटे हुए घड़े की तरह। जिस प्रकार फूटे हुए घड़े से लगातार बहता हुआ पानी अंत में खत्म हो जाता है और खोखला घड़ा रह जाता है। ठीक इसी प्रकार वक्त बीतने के साथ आयु भी घटती रहती है और अंत में मात्र देह बचती है। अगर हम युवावस्था में अपने शरीर की देखभाल करते हैं तो वृद्धावस्था के शत्रुओं से आसानी से लड़ पाते हैं। जीवन की इस अंतिम अवस्था के सबसे बड़े शत्रु होते हैं रोग और बीमारियां। इस समय पर युवावस्था के दौरान शरीर को दी गई मजबूती बहुत काम आती है। इसलिए खान-पान और दिनचर्या संतुलित रखनी चाहिए। हमारे समाज में एक आम धारणा है कि पूजा-पाठ के काम तो बुढ़ापे में करने होते हैं। जबकि यह सही नहीं है। हम युवावस्था में इस सोच के कारण धर्म और पुण्य नहीं करेंगे तथा बुढ़ापे में बीमारियां हमें यह सब नहीं करने देंगी तो हमारे पास तो पुण्य संचित ही नहीं हो पाएगा। इसलिए जरूरी है कि धार्मिक कार्य करने और पुण्य कमाने के लिए वृद्धावस्था का इंतजार न करें।