सुब्रमण्यम स्वामी का मोदी पर हमला- नहीं सुन रहे मेरे विचार, जा सकता हूं चीन
भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी को मलाल है कि मोदी सरकार में उनके विचारों को तवज्जो नहीं मिल रही है. उन्होंने अपने एक ट्वीट में इसको लेकर नाराजगी जताते हुए कहा है कि ऐसी हालत में वह चीन जा सकते हैं. उनके इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर काफी प्रतिक्रियाएं भी आईं. स्वामी के प्रशंसकों ने जहां नाराजगी छोड़कर चीन न जाने की अपील की, वहीं कुछ लोगों ने पूछा- आखिर मामला क्या है? मंगेश नामक यूजर ने लिखा- आप राम मंदिर और हिंदू हितों पर बोलना छोड़ दीजिए तो सब खुश रहेंगे, इस पर सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा- मैं राम मंदिर के मुद्दे पर बोलना कभी नहीं छोड़ सकता.
दरअसल, 29 जून को अपने एक ट्वीट में सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा,”चीन की प्रसिद्ध सिंघुआ यूनिवर्सिटी ने सितंबर में मुझे स्कॉलर्स की सभा में बोलने के लिए बुलाया है. विषय है- चीन का आर्थिक विकास-सात वर्षों की समीक्षा. चूंकि नमो मेरे विचारों को जानना नहीं चाहते, तो मैं चीन जा सकता हूं.” वह पिछली सरकार में अरुण जेटली के वित्त मंत्री रहते हुए देश की अर्थव्यवस्था को लेकर सवाल खड़े करते रहे हैं. एक राजनीतिक ही नहीं, बल्कि सुब्रमण्यम स्वामी की आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ के तौर पर भी पहचान है. संबोधन के लिए देश-दुनिया के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान उन्हें बुलाते रहते हैं.
क्या बीजेपी से नाराज चल रहे स्वामी
अमूमन पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ सार्वजनिक बयानों से बचने वाले सुब्रमण्यम स्वामी ने पहली बार अपने ट्वीट में नमो का जिक्र किया है. इससे पहले हाल में स्वामी ने ईवीएम को लेकर भी जो कुछ बोला, वह विपक्ष की लाइन वाला बयान रहा. स्वामी ने हाल में कहा कि मैंने तो बहुत पहले ईवीएम को लेकर सुप्रीम कोर्ट को सबूत दिए थे. कोर्ट ने माना भी था कि आज ईवीएम में धांधली की जा सकती है. उन्होंने कहा कि जो मैं पहले बोल चुका हूं, ये लोग (विपक्ष) अब सवाल उठा रहे हैं. स्वामी के इस रुख की सियासी गलियारे में खासी चर्चा है. माना जा रहा है कि स्वामी आजकल बीजेपी से नाराज चल रहे हैं.
हार्वर्ड में पढ़ाते रहे हैं स्वामी
सुब्रमण्यम स्वामी के नाम 24 साल में ही हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल करने का तमगा है. वह 27 साल की उम्र में हार्वर्ड में पढ़ाने लगे थे. बाद में उन्हें 1968 में दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनामिक्स में पढ़ाने का आमंत्रण मिला. तब स्वामी दिल्ली आए और 1969 में आईआईटी दिल्ली से जुड़ गए. हालांकि, पंचवर्षीय योजनाओं पर सवाल उठाने और विदेशी सहायता पर निर्भरता खत्म करने से जुड़े बयानों के चलते तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की उन्हें नाराजगी झेलनी पड़ी थी. जिसके चलते उन्हें 1972 में आईआईटी दिल्ली की नौकरी गंवानी पड़ी.
बाद में स्वामी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 1991 में मुकदमा जीतने पर वह सिर्फ एक दिन के लिए आईआईटी दिल्ली गए भी तो अपना इस्तीफा देने के लिए. सुब्रमण्यम स्वामी 1977 में जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहे. बाद में वे जनता पार्टी के अध्यक्ष बने. 2013 को उन्होंने जनता पार्टी विलय भाजपा में कर दिया. 2016 में बीजेपी ने सुब्रमण्यम स्वामी को राज्यसभा के लिए नामित किया.