अमेरिकी अखबार का दावा- पौने ग्यारह हजार से ज्यादा भ्रामक दावे कर चुके हैं राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प
नई दिल्ली : अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के बाद से ही लगभग हर रोज करीब औसतन करीब 12 संदिग्ध दावे किए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कश्मीर मुद्दे पर अमेरिका से मध्यस्थता की गुजारिश की थी।’ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के इस अप्रत्याशित दावे ने भारत की सियासत में हलचल मचा दी है। इस बयान से अमेरिका और भारत के संबंधों में अचानक से एक तनाव भी आ गया है। भारत सरकार ट्रम्प के दावे को सिरे से खारिज कर चुकी है। मंगलवार को विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने राज्यसभा में भी साफ किया कि प्रधानमंत्री की ओर से ऐसी कुछ पेशकश नहीं की गई थी। ट्रंप की तरफ से पहली बार इस तरह का अप्रत्याशित बयान नहीं आया है। उनके बयान जब-तब अमेरिकी और बाकी दुनिया की राजनीति में हलचल मचाते रहे हैं। अमेरिकी अखबार ने तो डोनाल्ड ट्रम्प के करीब 11 हजार ‘झूठ’ बता चुका है। अखबार ने ट्रम्प के ऐसे कई बयानों का फैक्ट चेक कर दावा किया है कि उनके कई बयान झूठे या फिर भ्रामक रहे हैं। 10 जून को प्रकाशित एक रिपोर्ट में समाचार पत्र ने लिखा है कि 7 जून 2019 को ट्रम्प ने बतौर राष्ट्रपति 869 दिन पूरे किए हैं और इस दौरान उन्होंने 10,796 झूठे या भ्रामक दावे किए हैं। अखबार की फैक्ट चेकर्स टीम ने राष्ट्रपति ट्रम्प के हर संदिग्ध बयानों का विश्लेषण किया जो उन्होंने दिए थे। अखबार ने दावा किया है कि ट्रम्प ने राष्ट्रपति का कार्यभार संभालने के बाद से ही लगभग हर रोज करीब औसतन करीब 12 संदिग्ध दावे किए।
राष्ट्रपति ट्रम्प का हर पांचवां दावा आव्रजन और अपने हस्ताक्षर को लेकर किया गया था। कुल झूठे या भ्रामक दावों में से करीब 10 फीसदी ट्रेड और रूस द्वारा 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप से संबंधित किए थे। ट्रंप के एक ही बयान पर कई दावे अलग-अलग थे। जर्मनी भी हो चुका है ट्रंप के बयान का शिकार! ट्रम्प ने नाटो के मुद्दे पर एक बार कहा था, ‘मैं कहना चाहूंगा कि जर्मनी ने ज्यादा कदम नहीं उठाए हैं। जर्मनी 1 प्रतिशत नाटो को देता है, उन्हें और ज्यादा हिस्सा देना चाहिए। हम इस 1 प्रतिशत पर सोचेंगे। हम जर्मनी की रक्षा करते हैं और तब जर्मनी हमसे ट्रेड पर फायदा उठाता है।’ ट्रम्प ने कभी इस बयान को नहीं सुधारा। नाटो की फंडिंग दो तरह से होती है। एक डायरेक्ट फंडिंग और दूसरा इनडायरेक्ट फंडिंग। डायरेक्ट फंडिंग, जिसमें सैन्य अभियान, रखरखाव और हेडक्वार्टर से सम्बन्धित खर्चे शामिल होते हैं। इस तरह की फंडिंग सदस्य देशों के ग्रॉस नेशनल इनकम के आधार पर होता है। नाटो की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के नाते अमेरिका सबसे ज्यादा 22 प्रतिशत हिस्सा देता है। जर्मनी दूसरे नम्बर पर है और यह करीब 15 प्रतिशत हिस्सा देता है। इनडायरेक्ट फंडिंग के तहत यह देखा जाता है कि किसी देश का रक्षा खर्चा उसका जीडीपी का कितना प्रतिशत है। नाटो सदस्यों ने 2022 तक 2 प्रतिशत जीडीपी का लक्ष्य तय कर रखा है। जर्मनी ने 2018 में अपनी जीडीपी का 1.23 प्रतिशत हिस्सा रक्षा पर खर्च किया। लेकिन यह पैसा नाटो को नहीं जाता है। अब कश्मीर के मुद्दे पर मध्यस्थता को लेकर दिए गए ट्रम्प के बयान पर भी सवाल उठने लगे हैं। बड़ा सवाल है कि क्या ट्रम्प ने पाकिस्तान को खुश करने के लिए यह बयान दिया। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने संसद में साफ किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर पर मध्यस्थता को लेकर ट्रम्प से ऐसा कुछ नहीं कहा।