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विजय दिवस: बम-बंदूक छोड़ भारतीय सेना ने उठाई खुखरी, मार गिराए कई पाक सैनिक

कारगिल युद्ध के 20 साल पूरे होने पर आज देश अपने वीर सपूतों को याद कर रहा है। घुसपैठियों के वेश में छिपे पाक सेना के एलीट फोर्स को भारतीय सेना के रणबांकुरों ने धूल चटा दी। इस दौरान एक मौका ऐसा भी आया जब भारतीय सेना के वीर जवानों ने बम-बंदूक छोड़ खुखरी से पाक सैनिकों को मौत के घाट उतारा। कारगिल युद्ध के दौरान मनोज पांडेय को खालोबार चोटी पर कब्जा करने का लक्ष्य दिया गया। इस पूरे मिशन का नेतृत्व का जिम्मा कर्नल ललित राय के कंधों पर था। मनोज ने नेतृत्व में उनकी टीम ने इससे पहले के ऑपरेशन में कुकरथांग, जूबरटॉप जैसी कई चोटियों पर दोबारा कब्जा कर लिया था। इससे उनकी पूरी टीम उत्साह से भरी थी।

खालोबार टॉप सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण इलाका था। वो भारत और पाक दोनों सेनाओं के लिए एक तरह का कम्यूनिकेशन हब भी था। वहां भारतीय सेना का कब्जा होते ही पाकिस्तानियों के दूसरे ठिकानों पर भी खतरा मंडराने लगता। उनको रसद पहुंचाने और उनके वापस भागने के रास्ते बंद हो जाते।

इस हमले के लिए गोरखा राइफल्स की दो कंपनियों को चुना गया। लेकिन, उनके वहां पहुंचते ही पाक सैनिकों ने मशीनगनों से भारी फायरिंग शुरू कर दी। इससे भारतीय सैनिक इधर-उधर हो गए। इस दौरान पाकिस्तानी रॉकेट लॉन्चर और ग्रेनेड लॉन्चर का भी प्रयोग कर रहे थे। ऊंचाई पर बैठे होने के कारण उनकी पोजीशन मजबूत थी जबकि भारतीय सेना के जवान उनके लिए आसान निशाना थे।
बंदूक की नाल को मोजे से लपेटा जिससे वह जाम न हो

खालोबार टॉप से लगभग 600 गज नीचे जब भारी फायरिंग होने लगी तो कर्नल राय ने मनोज पांडेय को एक तरफ के चार बंकरों को खामोश करने की जिम्मेदारी सौंपी। मनोज ने बिना किसी झिझक के उत्साह में निकल पड़े। उस समय वहां का तापमान शून्य से नीचे था जिस कारण उन्होंने अपने मोजे से बंदूक की नाल को लपेट दिया जिससे बंदूक जाम न हो।

चढ़ाई के दौरान उनके पास खाने के नाम पर सूखी पूड़ी और पानी की कुछ घूंट ही बची थी। चारो तरफ फैली बर्फ बमबारी के कारण खाने लायक नहीं बची थी। लेकिन मनोज पांडेय के नेतृत्व में जवानों का दस्ता पहाड़ी पर चढ़ गया।

मनोज पांडेय ने उपर जाकर देखा कि वहां चार नहीं बल्कि छह बंकर थे और सभी बंकरों से पाक सैनिक मशीनगनों से फायरिंग कर रहे थे। थोड़ी दूरी पर बने दो बंकरों को उड़ाने की जिम्मेदारी मनोज ने हवलदार दीवान को दी। वीरगति को प्राप्त होने से पहले हवलदार दीवान ने दोनों बंकरों को उड़ा दिया।
वीरगति को प्राप्त हुआ देश का ‘परमवीर’

इसके बाद बचे चार बंकरों को उड़ाने की जिम्मेदारी संभाली मनोज पांडेय ने। वह रेंगते हुए पहुंचे और बंकरों में ग्रेनेड डालकर तीन को उड़ा दिया। इस दौरान उन्हें कई गोलियां लग चुकी थी लेकिन नेतृत्वकर्ता होने के कारण उन्होंने आखिरी बंकर को भी उड़ाने का फैसला लिया। लेकिन, आखिरी बंकर में ग्रेनेड डालते समय एक गोली उनके माथे पर आकर लगी और वह वीरगति को प्राप्त हुए।

जिसके बाद बचे पाक सैनिकों को भारतीय सेना के गोरखा रेजीमेंट के जवानों ने अपनी खुखरी के घातक वार से मार गिराया। जब मनोज पांडेय शहीद हुए तब उनकी उम्र 24 साल और सात दिन थी। उनकी अदम्य वीरता और साहस के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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