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दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक पारित

नयी दिल्ली : केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज कहा कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता देश के कारोबार जगत के समक्ष उत्पन्न संकटों के समाधान के लिए है और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को कम करने के लिए अलग कानून एवं व्यवस्थाएं हैं। श्रीमती सीतारमण ने लोकसभा में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक 2019 पर करीब चार घंटे तक चली चर्चा का जवाब देते हुए यह स्पष्ट किया। सदन ने बाद में विपक्ष के संशोधनों को नामंजूर करने के बाद ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया। राज्यसभा में यह विधेयक 29 जुलाई को पारित हो चुका है। इस प्रकार से राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होने के बाद यह कानून बन जाएगा। माैजूदा कानून में समाधान प्रक्रिया 180 दिन में पूरी करने का प्रावधान था तथा इस समय सीमा को 90 दिन और बढ़ाने का विकल्प दिया गया था। अब समय विस्तार सहित अधिकतम समय सीमा 270 दिन की बजाय 330 दिन करने का प्रावधान किया गया है। वित्त मंत्री ने कहा कि इस संशोधन के माध्यम से इस कानून की मूल भावना को सशक्त बनाने की कोशिश की गयी है। इसका उद्देश्य कारोबारी जगत के संकट का समाधान निकालना और कंपनी को वित्तीय अक्षमता से उबार कर चलने योग्य बनाना है, ना कि सीधे उसकी संपत्तियों को बेच कर देनदारी चुकता करना। उन्होंने कहा कि ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब इस कानून के बनने के बाद कंपनियों के मसले हल हो गये और 2.84 लाख करोड़ रुपए का समाधान हुआ है। हेयरकट या बैंकों को होने लागत की क्षति को लेकर पूछे गये सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य कंपनी को उबरने का मौका देना है। उन्होंने कहा कि एनपीए के मामलों से निपटने के लिए रिजर्व बैंक, अन्य वाणिज्यिक बैंक और सरकार अलग कानूनों के तहत काम करती है। उन्होंने कहा कि सरकार ऐसा माहौल बनाना चाहती है जिसमें कारोबारी विफलता अभिशाप नहीं बने। कारोबारी के लिए सम्मानजनक ढंग से बाहर अाने और नये हिस्सेदार आने का रास्ता खुले ताकि कंपनी बंद ना हो और कर्मचारियों को नौकरी खोने का खतरा नहीं हो। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण की क्षमता संवर्द्धन की दिशा में कई कदम उठाये गये हैं। न्यायाधिकरण की शाखाएं एक साल के अंदर दस से बढ़ाकर 15 की गयी है। उसमें 26 नये सदस्य लाये गये हैं। कंपनी मामलों के वकीलों एवं न्यायाधिकरण के सदस्यों के वास्ते प्रशिक्षण के लिए राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की साझीदारी से प्रयास किये जा रहे हैं।
जेट एयरवेज के संदर्भ में एक से अधिक देशों में पंजीकृत कंपनियों के मामले के समाधान के बारे में पूछे गये सवालों पर वित्त मंत्री ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मामलों में यह कानून वैकल्पिक है। सीमा पार दिवाला के मामले में पुराने कानून की धारा 234 और 235 दूसरे देश से द्विपक्षीय समझौता करने का रास्ता बताती है, पर सरकार अब नये कानून में इसका प्रावधान करना चाहती है। उन्होंने कहा कि इस बारे में गठित एक समिति ने अपनी रिपोर्ट दे दी है जिस पर अध्ययन किया जा रहा है और उसके बाद शीघ्र ही समुचित निर्णय लिया जाएगा। वित्त मंत्री के जवाब के बाद विपक्ष के कुछ सदस्यों ने संशोधन पेश किये जिन्हें ध्वनिमत से नामंजूर कर दिया गया। बाद में सदन ने राज्यसभा से पारित स्वरूप में ही इस विधेयक को पारित कर दिया।

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