क्या है भादौं पूर्णिमा का महत्व
ज्योतिष : भादौं पूर्णिमा 14 सितम्बर 2019 को है, भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व इतना अधिक है कि भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत स्वयं भगवान विष्णु ने भी किया, एक बार दुर्वासा ऋषि के श्राप से भगवान विष्णु की सभी सपन्नता छिन गई थी, भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत करने के बाद ही उन्हें फिर से अपनी सम्पन्नता और वैभव प्राप्त हुआ था। इस पूर्णिमा पर भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने मात्र से ही सभी पापों से मुक्ति मिल जाता है। यह पूर्णिमा इसलिए भी खास है क्योंकि इसी पूर्णिमा के साथ पितृ पक्ष की भी शुरुआत होती है। इस दिन को गृह प्रवेश के लिए भी सबसे शुभ माना जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद किसी योग्य पंडित को घर में बुलाना चाहिए। उससे भगवान सत्यनारायण की विधिवत पूजा करानी चाहिए। एक बार दुर्वासा ऋषि कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से मिलने गए। भगवान शिव ने दुर्वासा ऋषि को एक विल्व पत्र की माला भेंट में दी। दुर्वासा ऋषि भगवान शिव के दर्शनों के बाद वह भगवान विष्णु से मिले। भगवान शिव के द्वारा दी गई माला को दुर्वासा ऋषि ने भगवान विष्णु को दे दी।
भगवान विष्णु ने वह माला अपने प्रिय वाहन गरुड़ के गले में डाल दी। जब दुर्वासा ऋषि ने यह देखा कि भगवान विष्णु ने उनके द्वारा दी गई माला को अपने वाहन गरुड़ के गले में डाल दिया है तो उन्हें अत्याधिक क्रोध आया और उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि तुमने शिवजी का अपमान किया है। तुम्हें अपने वैभव और सम्पन्न पर अत्याधिक घमंड है इसलिए हे विष्णु! मैं तुम्हे श्राप देता हूं कि तुमसे तुम्हारी यह सम्पन्नता, वैभव और लक्ष्माी सब छिन जाएगी। तुम्हारी सहायता संसार में कोई भी नहीं कर पाएगा। तुम्हें इस क्षीर सागर और शेषनाग की शैय्या से भी हाथ धोना पड़ेगा। यह सुनकर भगवान विष्णु ने दुर्वासा ऋषि से क्षमा याचना की और उनसे कहा कि मेरी आपकी और भगवान शंकर का अपमान करने की जरा सी भी मंशा नहीं थी। मैंने तो सिर्फ गरुड़ के गले में यह माला अपना प्रिय होने के कारण डाली थी। हे ऋषिवर अगर आपको ऐसा लगता है कि मैंने आपका अपमान किया है तो मुझे क्षमा कर दें और इस समस्या का कोई मार्ग बताएं। इसके बाद दुर्वासा ऋषि ने अपना क्रोध त्याग कर भगवान विष्णु को उमा-महेश्वर करने के लिए कहा और कहा कि अगर तुम पूरे नियम से यह व्रत करोगे तब ही तुम्हें तुम्हारी सम्पन्नता प्राप्त होगी। इसके बाद भगवान विष्णु ने यह व्रत किया।