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भविष्य का भारत : व्यक्ति प्रकृति और संस्कृति के अनुकूल बने शासन की नीतियां

बृजनन्दन राजू : भविष्य के भारत की कल्पना करने से पहले हमें अपनी गौरवशाली परंपरा का स्मरण करना होगा। हम क्या थे कहां थे आज कहां हैं। वैदिक काल से ही हमने विश्व को देने का ही काम किया। आज हम जिस स्थिति में हैं हम विश्व को क्या दे सकते हैं इस पर विचार करना चाहिए जैसे प्रधानमंत्री मोदी ने अपने प्रथम कार्यकाल में पूरे विश्व को योग की महत्ता से परिचित कराया। आयुर्वेद पर हम फोकस कर सकते हैं। अंग्रेजों के आने के समय हम किसी देश के कर्जदार नहीं थे बल्कि कुछ देश हमारे ही कर्जदार थे। भारत इस धरती का सर्वाधिक समृद्ध देश था। पूरे विश्व में स्थल और जल मार्ग से भारत का व्यापार होता था। भारतीय कपड़ों की विदेशों में बड़ी माँग थी। ढाका की मलमल संसार में-प्रसिद्ध थी। आभूषण उद्योग विश्वव्यापी था। दक्षिण भारत की खदानों से निकले हीरे के आभूषण विश्वप्रसिद्ध थे। चिकित्सा,विज्ञान संगीत साहित्य ललित कला में भारत संसार का गुरु रहा है। आज हम इन शिक्षा चिकित्सा व्यापार के क्षेत्र में कहां है इसका अवलोकन करते हुए आगे बढ़ना होगा।

बच्चे ही देश का भविष्य होते हैं। इसलिए भारत का भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए बच्चों का भविष्य उज्जवल बनाना होगा। भारत का भविष्य गढ़ने की जिम्मेदारी देश के प्राथमिक स्तर पर काम कर रहे शिक्षकों पर है। प्राथमिक पाठशाला के शिक्षकों में इस भाव की कमी दिखाई पड़ रही है कि हम ही हैं देश के भाग्य विधाता। यह भाव उनमें जगाना होगा। शिक्षा को संस्कारक्षम बनाना होगा। प्राथमिक शिक्षा की स्थिति विशेषकर पूर्वोत्तर और उत्तर भारत के राज्यों में बेहद चिंताजनक है। शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य चारित्रिक विकास ही था आज शिक्षा व्यवसाय बन गयी है। पहले पात्रता और अभिरुचि के आधार पर ही छात्र को विषय की शिक्षा दी जाती थी। प्राचीन भारत में गुरूकुल प्रणाली थी। वह अपने समय की अन्य शिक्षा व्यवस्थाओं की तुलना में सर्वश्रेष्ठ थी। आजादी के इतने वर्षों बाद तक दिशाहीन शिक्षा क्यों है इस पर भी विचार करना होगा। 1945 में तबाह हो चुका जापान हम से कई गुना आगे निकल गया। जापान ने अपनी मातृभाषा में शिक्षा देने का प्रबंध किया जबकि भारत अंग्रेजों की बनाई शिक्षा नीति के आधार पर चलने का प्रयत्न किया। आज भी हम उसी ढ़र्रे पर चल रहे हैं। तमाम प्रयास के बावजूद आज तक न्यायालयों की भाषा हिन्दी नहीं हो पायी। सरकारी विभागों की वेबसाइट अंग्रेजी में तो हैं लेकिन हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में नहीं है। इस मानसिकता को त्यागना होगा। अंग्रेजी में ही हम प्रगति कर सकते हैं इस भाव को मन से निकालना होगा। साथ ही सरकार को मातृभाषा को बढ़ावा देना होगा। संघ के पूर्व सरसंघचालक कुप.सी.सुदर्शन देश में हिन्दी विश्वविद्यालय खोलने की वकालत की थी। इस संबंध में उन्होंने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से मुलाकात भी की थी।
हमारे यहां व्यक्ति की नहीं समिष्ट की कल्पना है। हम सम्पूर्ण ब्राह्राण्ड की चिंता करते हैं। उपभोग नहीं उपयोग वाली हमारी संस्कृति है। हम प्रकृति का दोहन नहीं संरक्षण करने वाले लोग हैं। इसलिए शासन की नीतियां भी व्यक्ति प्रकृति और संस्कृति के अनुकूल होनी चाहिए। स्वदेशी और स्वावलंबन के आधार पर हमें बढ़ना होगा। स्वावलंबन के लिए स्वदेशी की भावनाओं को जगाना जरूरी है। जिन वस्तुओं का उत्पादन हम अपने देश में नहीं कर सकते हैं उन्हें ही हम विदेशों से मंगाएं। विश्व कल्याण के लिए भारत को आर्थिक और सामरिक दृष्टि से समर्थ होना जरूरी है। इसलिए भारत को अगर दुनिया का नेतृत्व करना है तो अपने यहां का जीवन सर्वांग और सुंदर होना चाहिए। इसलिए क्षमता युक्त शोषण मुक्त अपराध और आतंक मुक्त भारत बनाना होगा। सर्वे भवन्तु सुखिन: की हमारी संस्कृति है। माता भूमि पुत्रोह्मं पृथ्विया। माता भूमि है और हम उसके पुत्र हैं। हमने पूरी भूमि को माता माना है इसलिए सम्पूर्ण विश्व के कल्याण का भाव लेकर चलना होगा। भारतीय संस्कृति सम्पूर्ण सृष्टि का विचार करती है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय कहते थे भारत ही नहीं बल्कि विश्व हमारी साधना का क्षेत्र है। आज पूरा विश्व आशा भरी निगाहों से भारत की ओर देख रहा है। आगे चलकर भारत ही दुनिया को शांति और सद्भभाव का संदेश देगा। आज योग गुरू स्वामी रामदेव, श्रीश्री रविशंकर, स्वामी सत्यमित्रानंद, माता अमृतानंदमई और मुरारी बापू जैसे अध्यात्मिक संत दुनिया में सांस्कृतिक पताका फहरा रहे हैं।
हमें समाज कि सामान्य व्यक्तियों के पास पहुंचकर उनकी गुणवत्ता में उनकी सोच में परिवर्तन लाना पड़ेगा। अधिकार के साथ कर्तव्य भाव का जागरण नागरिकों में करना होगा। पश्चिम का अर्थ चिंतन भारत के लिए अनुकूल नहीं है इसलिए हम उसका अनुसरण नहीं कर सकते आर्थिक कार्यक्रम हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनुकूल होना चाहिए जो सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करने में सहायक हो। भारत ऋषि और कृषि का देश है। कृषि विकास के लिए तकनीकी और संस्थागत सुधारों पर बल देना होगा। सिंचाई की समुचित व्यवस्था के साथ साथ मृदा संरक्षण फसल चक्र अपनाना होगा। किसानों के लिए सबसे बड़ा संकट सही बीज व खाद नहीं उपलब्ध हो पाता है। उन्नतशील बीजों को उपलब्ध कराना होगा। कृषि में हाईब्रिड बीज का प्रचलन बढ़ा है इसको रोकना होगा। कृषि में रासायनिक खाद के स्थान पर जैविक खाद का उपयोग करना होगा। परंपरागत खेती अपनाना होगा। कृषि वैज्ञानिकों को भारत की भूमि और जलवायु को देखते हुए शोध एवं अनुसंधान करना होगा। कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। अयोध्या,मथुरा और काशी मसले का हल बहुत पहले हो जाना चाहिए था। हिंदुओं का पवित्र कैलाश पर्वत और मानसरोवर हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है सिंधु में स्नान करने का अधिकार नहीं। तक्षशिला अब हमारा नहीं है यह सब स्मृतियां बनी रहनी चाहिए। वहीं जनसंख्या नियंत्रण पर ‘एक समुचित और सुविचारित जनसंख्या नीति बनाई जानी चाहिए। भारत की न्याय प्रणाली बहुत ही जटिल है। आम आदमी को न्याय मिलना कठिन हो रहा है। इसमें सुधार करना होगा।

आज पूर्वोत्तर क्षेत्र में बदलाव आया है। समाज आगे बढ़ रहा है जम्मू-कश्मीर केरल व पश्चिमी बंगाल में राष्ट्र विरोधी शक्तियां सक्रिय हो रही हैं। अपने पड़ोसियों की भी चिंता हमें करनी होगी। नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार और श्रीलंका हमारे ही अंग हैं। अंग्रेजों के कालखण्ड में यह हमसे अलग हुए। आजादी के बाद अगर हम तिब्बत की चिंता की होती तो चीन हम को छू नहीं सकता था। पड़ोंसियों से संबंध मुधर करने होंगे। 1947 में हमारे नेताओं की गलती के कारण देश का विभाजन हुआ। आज भी देश में अलगाववाद की मानसिकता समाप्त नहीं हुई है। आज भी देश की एकता और अखंडता को चुनौती दी जा रही क्या गारंटी है कि देश आगे फिर नहीं बंटेगा। अल्पसंख्यकों को खुश करने की नीति से बचना होगा सबका साथ सबका विकास की मूल मंत्र पर आगे बढ़ना होगा। रक्षा क्षेत्र में भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना होगा। सरकार का लक्ष्य गांव गरीब किसानों का कल्याण होना चाहिए। भारत के कई राज्यों में जल संकट है जबकि देश की नदियों का पानी पाकिस्तान जाता है इस दिशा में भी इस पहल कर सकते हैं। अटल जी नदियों को जोड़ने की बात करते थे इस दिशा पर भी काम करना होगा। हिमालय की कंदराओं से निकलने वाली कई नदियों के कारण हर साल देश के कई हिस्सों में बाढ़ आती है। इसलिए नदियों का पानी समुद्र में जाने से रोक कर अन्य हिस्सों की प्यास बुझायी जा सकती हैं। आज विश्व के समक्ष पर्यावरण का संकट है। इस दिशा में मोदी का प्लास्टिक मुक्त भारत अभियान की शुरूआत काबिलेतारीफ है। रक्षा, अनुसंधान की दृष्टि से भी विश्व पटल पर भी भारत की साख बढ़ी है। दुनिया का कोई देश भारत पर नजर उठाने की हिम्मत न कर सके ऐसी हनक हमारी होनी चाहिए। हाल के वर्षों में हमने अपनी सामरिक क्षमता का परिचय विश्व को दे दिया है। नरेन्द्र मोदी ने देश को एक नई दिशा दी है। भारत आंतरिक और वाह्य सुरक्षा के मामलों में मजबूत हुआ है। विगत पांच वर्ष की उपलब्धियों पर नजर डालें तो विस्मयकारी बदलाव हुआ है। मोदी और विकास पर्यायवाची बन गए हैं। इसलिए मोदी पर जनता को भरोसा है।
(लेखक प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से जुड़े हैं।)
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