गंगा नदी की मिट्टी से ही मां की प्रतिमा का रूप निखरता है। हम हर जगह अपने साथ गंगा नदी की मिट्टी भी लेकर जाते हैं। जब तक प्रतिमाओं में वहां की मिट्टी नहीं मिलती, उनमें निखार नहीं आता। यह कहना है 40 वर्षीय मूर्तिकार अमित पाल का। कोलकाता की कुम्हार टोली का यह सदस्य बचपन से ही प्रतिमा बना रहा है।
पाल ने बताया कि उनका समूह दिल्ली, मुम्बई, हरियाणा व अन्य कई राज्यों में प्रतिमाएं बनाने जाता है। गंगा नदी की मिट्टी का आखिरी लेप करने पर मूर्तियां ऐसी लगती हैं मानो बोल पड़ेंगी। समूह के पिंटू पाल ने बताया कि कई पीढ़ियों से वे मिट्टी से मूर्तियां बनाने का काम कर रहे हैं।
प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां बाजार में बहुत कम हैं, क्योंकि वो पानी में गलती नहीं हैं। गणेश चतुर्थी पर नगर निगम की सख्ती से प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां नहीं बना रहे हैं। जेएलएन मार्ग पर मूर्तियां बेचने वाले परिवारों ने बताया कि पिछले साल काफी प्रतिमाएं बनाई गर्इ थीं, जो बिक गई थीं। इस बार ज्यादातर मिट्टी की प्रतिमाएं बनाई गई हैं।
प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां बाजार में बहुत कम हैं, क्योंकि वो पानी में गलती नहीं हैं। गणेश चतुर्थी पर नगर निगम की सख्ती से प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियां नहीं बना रहे हैं। जेएलएन मार्ग पर मूर्तियां बेचने वाले परिवारों ने बताया कि पिछले साल काफी प्रतिमाएं बनाई गर्इ थीं, जो बिक गई थीं। इस बार ज्यादातर मिट्टी की प्रतिमाएं बनाई गई हैं।
लकड़ी के सांचे पर मिट्टी व फूस का लेप किया जाता है, फिर उसी लेप की कई परतें चढ़ाई जाती हैं। हाथों से आकार देने के बाद चेहरा बनाया जाता है। कोलकाता की मिट्टी की आखिरी परत चढ़ाई जाती हैं। मिट्टी सूखने पर विभिन्न रंगों से सजाया जाता हैं। इसके बाद पोशाक पहनाकर, शृंगार कर शस्त्र धारण करवाए जाते हैं। बनीपार्क स्थित दुर्गाबाड़ी में यह समूह दुर्गा मां के परिवार की 20 फीट ऊंची प्रतिमा बना रहा हैं। यहां पर मूर्ति का सोने-चांदी के आभूषणों से शृंगार किया जाएगा। –