ये 34 लक्षण बताते हैं कि आप हैं डिप्रेशन के शिकार!
प्रत्येक व्यक्ति समय-समय पर सीमित अवधि के लिए उदासी का अनुभव करता है। लेकिन जब लंबे समय तक लगातार नकारात्मक सोच, दुखी मनोदशा या पसंदीदा गतिविधियों में भी दिलचस्पी न लेने जैसे लक्षण सामने आने लगें तो यह डिप्रेशन हो सकता है। जानते हैं इसके बारे में-
डिप्रेशन के कारण
आनुवांशिक : परिवार में माता-पिता या कोई अन्य सदस्य डिप्रेशन (अवसाद) से पीडि़त होता है तो बच्चों में ऐसा होने का खतरा रहता है।
कमजोर व्यक्तित्व: बचपन में मां-बाप के प्यार का अभाव, कठोर अनुशासन, तिरस्कार, सामथ्र्य से अधिक अपेक्षा या ईष्र्या कई बार मस्तिष्क को ठेस पहुंचाती हैं। जो बड़े होने पर विपरीत परिस्थितियों में व्यक्ति के लिए डिप्रेशन का कारण हो सकती है।
मानसिक आघात : बार-बार असफलता, नुकसान या किसी प्रियजन की मृत्यु आदि से भी ऐसा हो सकता है।
शारीरिक रोग : एड्स, कैंसर, नि:शक्तता या कोई अन्य मर्ज जिसमें रोगी लंबे समय तक बिस्तर पर रहता है। वह इस परेशानी से ग्रसित हो सकता है।
अन्य कारण : पारिवारिक झगड़े, अशांति, संबंध-विच्छेद, व आर्थिक परेशानी आदि वजहों से भी ऐसा हो सकता है।
ये हैं लक्षण
मानसिक : दो सप्ताह से ज्यादा लगातार उदासी, असंगत महसूस करना, मिजाज में उतार-चढ़ाव, भूलना, एकाग्र न हो पाना, गतिविधियों में रुचि न लेना, चिंता, घबराहट, अकेलापन, शारीरिक देखभाल में अरुचि, नशे की इच्छा होना आदि।
विचार व अनुभूति : असफलता संबंधी विचार, स्वयं को कोसना, शीघ्र निराश होना, असहयोग, निकम्मेपन के विचार, दुर्भाग्यपूर्ण कार्य के लिए स्वयं को जिम्मेदार ठहराना, भविष्य के लिए नकारात्मक व निराशावादी दृष्टिकोण, आत्महत्या के विचार आदि।
शारीरिक : सामान्य नींद की प्रक्रिया में विघ्न, नींद न आना व सुबह जल्दी उठ जाना, किसी काम को धीरे-धीरे करना, भूख में कमी, लगातार वजन कम होना, थकान महसूस होना, अपच, मुंह सूखना, कब्ज, अतिसार, मासिक धर्म की अनियमितता, सिर, पेट, सीने, पैरों, जोड़ों में दर्द, भारीपन, पैरों में पसीना, सांस लेने में दिक्कत आदि।
कई तरह के अवसाद
इसके दो मुख्य प्रकार हैं पहला एंडोजीनस (यह आंतरिक कारणों से होता है)। दूसरा न्यूरोटिक (आमतौर पर यह बाहरी कारणों से होता है)। इनके अलावा डिसथीमिया, मौसम प्रभावित डिप्रेशन (सीजनल इफेक्टिव डिसऑर्डर), मनोविक्षप्ति (साइकोटिक), छिपा (मास्कड) व प्रसन्नमुख (स्माइलिंग) डिप्रेशन इसके अन्य प्रकार हैं।
इलाज व बचाव
इलाज : डॉक्टर मरीज की काउंसलिंग करके रोग की वजह समझने का प्रयास करते हैं। इसके बाद आवश्यकता के अनुरूप 6-8 माह तक एंटीडिप्रेसेंट दवाएं देते हैं। दवाओं के साथ-साथ मनोचिकित्सा व व्यवहारिक चिकित्सा द्वारा रोगी की निराशाजनक सोच को बदलने का प्रयास किया जाता है। इस दौरान मरीज को पारिवारिक सहयोग जरूरी होता है।
बचाव : प्रतिदिन व्यायाम करें। शराब और सिगरेट से दूरी बनाएं। सकारात्मक सोच को अपनाएं। रोजाना पूरी नींद लें। परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिताकर डिप्रेशन से लड़ा जा सकता है।