सिस्टम का अन्यायी चेहरा उजागर करती दलित मंत्री
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मध्य प्रदेश की महिला बाल विकास मंत्री इमरती के बोल अभिजनों के लिये आईना है
डॉ. अजय खेमरिया
मप्र की महिला बाल विकास मंत्री है इमरती देवी सुमन। जाति से जाटव दलित हैं। तीसरी बार ग्वालियर जिले की डबरा विधानसभा से विधायक निर्वाचित हुए हुई हैं। हर बार उनकी जीत का अंतर बढ़ता गया है, इस बार लगभग 60 हजार पर पहुँचा है। पिछले 15 अगस्त को वह देश की मीडिया में इसलिये चर्चा में आ चुकी हैं क्योंकि वह मुख्यमंत्री कमलनाथ के सन्देश को पढ़ नही पाई थीं। सोशल मीडिया पर उनका जमकर मजाक उड़ाया गया था। लोगों ने उनकी शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाए, उनके समर्थन में कतिपय लोगों ने उनकी दलित पृष्ठभूमि को लेकर बचाव का प्रयास किया। आलोचकों को मनुवादी डण्डे से हड़काने की कोशिश की, लेकिन इस सबसे इतर इमरती देवी के एक मौलिक पक्ष को दरकिनार कर दिया गया जो पिछले दिनों भोपाल में आयोजित एक समारोह में एक बार फिर मुखरित हुआ-वह यह कि इमरती देवी कैबिनेट मंत्री होने के बाबजूद दिल से बोलती हैं, उनकी गैर शैक्षणिक और गरीबी की पृष्ठभूमि पर उन्हें कोई मलाल नहीं है, वह इसे छिपाने की कोशिशें भी नहीं करती हैं। एक राजनेता की जो बातें आम जनता को उसके नकलीपन,उसकी कथनी—करनी में अंतर को रेखांकित करती है उससे इमरती देवी कोसों दूर नजर आती हैं इसलिये अक्सर उनकी बातों को लोग मनोरंजन का माध्यम बनाकर उपयोग करते रहे हैं।
भोपाल की प्रशासनिक अकादमी में आयोजित बाल सरंक्षण और इसके प्रावधानों पर आयोजित एक कार्यशाला में वह मुख्य अतिथि थी मंच पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी के अलावा जस्टिस सुजॉय पाल, अंजली पालो, जस्टिस अहुलवालिया के अलावा मुख्य सचिव एस.आर. मोहंती जैसे बड़े लोग मौजूद रहे। प्रशासन अकादमी का वातानुकूलित सभागार जुबेनाइल जस्टिस एक्ट पर अंग्रेजी और मानक हिंदी में मुखर था। बारी आई इमरती देवी की, उन्होंने जो कुछ यहाँ बोला उसे सुनकर यही लगा मानो बाल कल्याण और जेजे एक्ट की जमीनी हकीकत उन लोगों के सामने पूरी प्रमाणिकता से प्रस्तुत कर रही हैं जिसे इस मुल्क का सिस्टम सब कुछ जानते हुए भी न सुनना चाहता है न मंत्री जैसे ओहदे पर बैठे लोगों से सुनने की अपेक्षा रखता है। इमरती देवी ने साहस और गर्व के साथ कहा कि आज जो फोटो इस सेमिनार के पार्श्व में बैनर पर छपे हैं कभी वह खुद भी इसी श्रेणी में थीं, उनके पास न पढ़ने की सुविधाएं थी न खाने—पीने और पहनने की लेकिन आज वह यहां मंत्री बनकर खड़ी हैं। मंत्री के रूप में उन्होंने साफ कहा कि हमारा विभाग आज भी अमीरी—गरीबी में विभाजन की रेखा को मजबूत करता है। आंगनबाड़ी में गरीबों के बच्चे आते हैं, उन्हें एकाध रोटी पकड़ाकर विदा कर दिया जाता है, उनकी पढ़ाई—लिखाई की तुलना बस से स्कूल आते—जाते बच्चों से की जा सकती है? इमरती देवी ने बताया कि उनके मन मे यह कसक काफी समय से थी इसलिए उन्होंने अपने अधिकारियों से कहा कि गरीब के बच्चे भी प्राइवेट स्कूल जैसी आंगनवाड़ी में जाएं ऐसा कुछ कीजिये। इमरती देवी की स्वयं भोगी गई यह पीड़ा उनकी प्राथमिकता थी इसलिए कुछ समय पहले मप्र के सभी 313 ब्लाकों में एक एक आंगनबाड़ी को प्ले स्कूल में तब्दील कर दिया गया है इमरती देवी ने इसे अपनी उपलब्धि के रूप में बताया। मप्र के न्यायमूर्तियों की ओर मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा कि कोई गरीब माँ, बाप अगर बच्चे से काम कराता है तो आप लोग उसे पकड़वाकर बन्द करा देते हैं, लेकिन उसके बाद वह खायेगा क्या? ऐसा कुछ कीजिये ताकि गरीब का पेट भर सके। आपका कानून बच्चों को काम करने से तो रोकता है पर पेट की आग बुझाने पर चुप हो जाता है।
कोट टाई धारण किये हुए न्यायपालिका और प्रशासन के बीसियों प्रतिनिधियों के पास मंत्री इमरती के लोक बोली में उठाये गए सवालों का कोई जबाब नहीं था। सिवाय जेजे एक्ट के उन सैंकड़ा से ज़्यादा प्रावधानों पर चर्चा के जिनके अनुपालन के लिए भारत की सामाजिकी,प्रशासनिक मशीनरी अनुकूल है ही नहीं। आप सवाल उठा सकते हैं कि इसमें नया क्या है जो मंत्री ने उठाया है? गहराई से सोचेंगे तो आपको समझ आएगा कि व्यवस्थाजनित जड़ता और अफसरी शिकंजे ने मप्र की इस दलित मंत्री को उसकी जड़ों से कटने नहीं दिया है, वह सियासत में सच बोल रही है। सच बोलने का साहस कौन कर पाता है आजकल? वह दलित महिला और बिना पढ़ी—लिखी अपने विभाग में उस गरीबी और दर्द को सुनाना चाह रही है जिसे पढ़े—लिखे दून रिटर्न काले अंग्रेज और उनके हम कदम नेताजी सुनने के लिये तैयार नहीं हैं। संभव है इमरती अपने प्रयास में आगे जाकर असफल साबित हो जाएं पर उनकी ईमानदार कोशिश को आप खारिज नहीं कर सकते है। सियासत में सार्वजनिक रूप से मन की बात बोलना हर किसी के वश की बात नहीं है।इसलिये इमरती बेशर्म और निर्मम तंत्र में भले मनोरंजन की पात्र बन जाती हो लेकिन उनके उठाये मुद्दे जमीन पर आम आदमी की पीड़ा को अभिव्यक्ति देते हुए लगते हैं। वह जब पटवारियों को रिश्वतखोर कहती हैं या फिर सबके सामने यह कहती हैं कि ट्रांसफर कराने में पैसे लगते हैं, तब वह इस व्यवस्था की हकीकत को बयान नहीं करती है क्या। आज मप्र में सबसे बदनाम बिरादरी है पटवारी, हर आम—ए—खास इनसे परेशान है इसलिये इमरती इन्हें मंत्री होने के बाबजूद रिश्वतखोर कहती हैं, तो क्या वह आम आदमी की भाषा नहीं बोलती हैं? सरकार में ट्रांसफर कैसे होते हैं? ये किसको नहीं पता है। इसके बाबजूद इन सभी मामलों में जिम्मेदार चुप रहने के साथ इस व्यवस्थागत अन्याय का बचाव कर आखिर कौन सी काबिलियत का मुजायरा करते हैं?
आरक्षण के सहारे सत्ता के शिखर तक पहुँचने वाले जनप्रतिनिधियों को हम हमेशा अफसरों की करतूतों को ढकते हुए ही देखते है। कुछ समय के लिये मंत्री बनने वाले लोग जब तक पद पर रहते है अपने अफसरों की लिखी इबारत पढ़ते है इस लिहाज से हमें इमारती देवी का अभिनंदन करना चाहिये क्योंकि वह अक्सर इस इबारत की जगह गरीब और वंचित की बात तो उठाती ही रहती है भले ही उनकी बातों का परिणाम न निकले। साथ ही वह काले अंग्रेजो को भी आईना दिखाती रहती है। वह अपने नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी सीमाओं का अहसास कराने से नही हिचकती है उन्होंने सिंधिया को मप्र कांग्रेस अध्यक्ष न बनाकर महाराष्ट्र का प्रभारी बनाये जाने पर यह भी सार्वजनिक रुप से ही कहा था न कि उन्हें(सिंधिया) वहां (महाराष्ट्र) कौन पूछता है? बनाना है तो राहुल गांधी मप्र का अध्यक्ष बनाएं। जाहिर है इमरती हकीकत बोल देती है शायद यही उनके जीत के मार्जिन को हर बार बढ़ाने वाला कारक है। वस्तुतः सच और आम आदमी की बात करने के लिये पढा—लिखा होना जरूरी नहीं। देश की समस्याओं को पढ़े—लिखे लोगों ने ही उलझाया है। पीली बस वाले स्कूल, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की सूरत नहीं देखने वालों ने नहीं।
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(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)