राम मंदिर निर्माण की निर्णायक घड़ी सन्निकट
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सुप्रीम श्रद्धा के प्रश्न का उत्तर अब बहुत पास स्पष्ट सुनाई दे रही भव्य राम मन्दिर निर्माण के घड़ी की पदचाप
बृजनन्दन राजू
देश-दुनिया में चर्चित अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद की सुनवाई अब जल्द पूरी होने की उम्मीद है। 7 अक्टूबर, 1984 को अयोध्या के सरयू तट पर लाखों रामभक्तों की उपस्थित में पूज्य संतों ने जो संकल्प लिया था, वह पूरा होने को है। सर्वविदित है कि रामलला के भव्य मंदिर को तोड़कर आक्रांता बाबर के सेनापति मीरबाकी ने मस्जिद बनाई, जिसे मुक्त करने के लिए हिंदू समाज ने 76 लड़ाइयां लड़ीं। चार लाख की संख्या में हिन्दू वीरों ने बलिदान दिए। 1984 से विश्व हिन्दू परिषद ने संतों की अगुवाई में रामजन्म भूमि आंदोलन शुरू किया। इस आंदोलन ने हिन्दू समाज में व्यापक जनजागरण कर पूरे देश को एक सूत्र से जोड़ने का काम किया। विहिप ने पहले ताला खोलने के लिए आंदोलन किया। परिणाम स्वरूप 1986 में तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट ने हिन्दुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया। इसके बाद विहिप ने नवम्बर 1989 को शिलान्यास की घोषणा की। लाखों कारसेवक 9 नवम्बर 1989 को अयोध्या पहुंच गये। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने राजकीय विमान भेजकर महंत अवैद्यनाथ को वार्ता के लिए लखनऊ बुलाया। मुख्यमंत्री ने निवेदन किया कि महंत जी जिस स्थान पर आप शिलान्यास करने जा रहे हैं वहां से हटकर आप किसी और स्थान पर अपना कार्यक्रम कर लें। महंत जी ने कहा कि हमें यह निर्णय स्वीकार नहीं है। हम नियत स्थान पर ही शिलान्यास करेंगे। मुख्यमंत्री ने दिल्ली से संपर्क साधा और तत्कालीन गृहमंंत्री बूटा सिंह को बताया कि आप तुरन्त आएं क्योंकि महंत जी मान नहीं रहे हैं। बूटा सिंह तत्काल विमान से लखनऊ पहुंचे। गृहमंत्री ने भी महंत जी को मनाने का प्रयास किया कि स्थिति बिगड़ जायेगी लेकिन वह नहीं माने।
महंत अवैद्यनाथ ने कहा कि यदि आप न्यायालय की अवमानना का प्रश्न उठाकर हमें डराना चाहते हैं तो हम डरने वाले नहीं हैं। आप यहीं पर हमें गिरफ्तार कर लें या फिर अयोध्या जाकर गिरफ्तारी देने दें। 10 नवम्बर 1989 को रामभक्तों की संकल्प शक्ति के सामने तत्कालीन केन्द्र व प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर का शिलान्यास करने की अनुमति दी थी वह भी उस स्थान पर जिसे संतों ने तय किया था। एक हरिजन बंधु कामेश्वर चौपाल के हाथों राम मंदिर का शिलान्यास कराया गया। विहिप ने 1990 में कारसेवा की घोषणा की। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने दंभ भरी वाणी में कहा था कि अयोध्या में परिंदा भी ‘पर’ नहीं मार सकता। सरकार की तमाम बंदिशों के बावजूद लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंच गए। लाखों भक्तों के अयोध्या पहुंचने से मुलायम सिंह के बयान की हवा निकल गई, जिससे वह तिलमिला उठे। मुलायम सिंह ने कारसेवकों पर गोली चलवा दी। इस घटना के बाद अयोध्या से लेकर देश का माहौल पूरी तरह से गर्मा गया। इस गोलीकांड के दो दिन बाद ही 02 नवंबर को सुबह का वक्त था। अयोध्या में हनुमान गढ़ी के सामने कारसेवक बढ़े चले आ रहे थे। पुलिस ने सामने से आ रहे कारसेवकों पर फायरिंग कर दी, जिसमें सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब डेढ़ दर्जन कारसेवकों की मौत हो गई। इस दौरान ही कोलकाता से आए कोठारी बंधुओं की भी मौत हुई थी। इस बार ढांचा तो नहीं टूटा, लेकिन क्षतिग्रस्त जरूर हुआ था। इसके बाद 06 दिसंबर, 1992 को देश भर से एकत्रित कारसेवकों ने हिंदू समाज के कलंक के प्रतीक “ढांचे” को ढहा दिया। विहिप ने राममंदिर के लिए जागरण के महाभियान के साथ साथ कानूनी लड़ाई भी जारी रखी। जिसके परिणाम स्वरूप इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर, 2010 को इस मामले में फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को तीन भागों में बांटने का आदेश दिया था। एक हिस्सा रामलला विराजमान, दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और तीसरा हिस्सा मुस्लिम पक्ष को दिया था। रामलला विराजमान को वही हिस्सा दिया गया था, जहां रामलला विराजमान हैं। इस फैसले के खिलाफ सभी पक्षों ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी। कुल 14 अपीलें हुईं। सर्वोच्च न्यायालय ने अपील स्वीकार करते हुए मामले में यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था। 2010 से लंबित मामले में सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने गत छ: अगस्त से रोजाना नियमित सुनवाई शुरू की थी जो इस सप्ताह पूरी हो जाएगी। अब तक 39 दिन की सुनवाई पूरी हो चुकी है। शुक्रवार तक सर्वोच्च न्यायालय फैसला सुरक्षित रख लेगा और फैसला भी नवंबर के मध्य तक आ जाएगा। क्योंकि 17 नवंबर को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने श्रीराम जन्मभूमि पर अपना फैसला सुनाया था। इसी फैसले के विरूद्ध अपील सर्वोच्च न्यायालय में की गई थी। इन्हीं अपीलों पर 06 अगस्त, 2019 को सुनवाई प्रारंभ हुई। प्रारंभ में रामलला के वाद को विहिप की तरफ से प्रस्तुत किया गया। भगवान का वाद आठ दिन में प्रस्तुत हो गया। चार दिन तक निर्मोही अखाड़े ने भगवान के वाद का विरोध करते हुए अपना वाद प्रस्तुत किया। द्वारिकापीठ जगद्गगुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाराज के वकील ने चार दिन तक अपनी बात रखी और इस्लाम के सिद्धांतों के अनुसार बाबरी मस्जिद को अवैध सिद्ध करने की कोशिश की। इस प्रकार 16 दिन व्यतीत हुए। 2 सितंबर, 2019 से मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने भगवान के मुकदमे के विरुद्ध अपने तर्क रखने शुरू किए। 02 सितंबर के बाद 17 दिन तक मुस्लिम पक्ष के 5 अधिवक्ताओं ने केवल भगवान के मुकदमे के विरोध में ही बिता दिए। प्रारंभ के 14 दिन वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन अपने तर्क प्रस्तुत करते रहे। उसके पश्चचात लखनऊ के जफरयाब जिलानी ने डेढ़ दिन तक दस्तावेज प्रस्तुत किए। उसके पश्चचात सर्वोच्च न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता मीनाक्षी अरोड़ा ने डेढ़ दिन तक पुरातत्व विभाग द्वारा की गई उत्खनन रिपोर्ट को गलत सिद्ध करने की कोशिश की। इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नाफडे ने अपनी बात रखी। इसके बाद मुहम्मद निजामुद्दीन पाशा एडवोकेट ने इस्लाम के सिद्धांतों के आधार पर सिद्ध करने की कोशिश की कि मस्जिद में मीनार, वजू करने का स्थान और गुंबद होना अनिवार्य शर्त नहीं है। इन प्रतीकों के बिना भी मस्जिद होती है। मस्जिद में चित्र होना तथा अथवा घंटा होना भी हमारे लिए हराम नहीं है। इसके अलावा कब्रिस्तान के बीच में भी मस्जिद होती है। इस प्रकार अयोध्या की मस्जिद को वैधानिक सिद्ध करने की कोशिश उन्होंने की। मुस्लिम पक्ष के तर्क का उत्तर कोर्ट में पाराशरण जी, वैद्यनाथन जी और रंजीत कुमार ने अपनी बात रखी। पिछली सुनवाई में सुन्नी वक्फ बोर्ड की अपील पर दलीलें रखी गई थीं। इससे पहले हिंदू पक्ष ने स्कंद पुराण का हवाला देकर कहा था कि राम जन्मस्थान के दर्शन से मोक्ष मिलता है। रामलला के वकील पीएस नरसिम्हा ने कहा था कि स्कंद पुराण बाबर के भारत आने और वहां मस्जिद बनने से बहुत पहले का है, जो उस स्थान की महत्ता साबित करता है।
पिछली सुनवाई पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि वे 14 अक्टूबर को अपनी दलीलें पूरी कर लेंगे। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने तय किया है कि मुस्लिम पक्ष की दलील खत्म होने के बाद 15 और 16 अक्टूबर को हिंदू पक्षों को जवाबी बहस का मौका दिया जाएगा। मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नई डेडलाइन तय करते हुए कहा था कि 17 अक्टूबर तक तीनों पक्षों को अपनी दलीलें पूरी कर लेनी होंगी। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की ओर से 18 अक्टूबर की डेडलाइन निश्चित की गई थी। अभी तक मामले में हिंदू पक्ष की अपीलों पर रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा, गोपाल सिंह विशारद व अन्य पक्ष जैसे हिंदू महासभा, श्रीरामजन्मभूमि पुनरोद्धार समिति आदि सभी छह अपीलकर्ताओं की ओर से बहस पूरी हो चुकी है। उनकी अपीलों पर मुस्लिम पक्ष का जवाब व हिंदू पक्ष का प्रतिउत्तर भी हो चुका है। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से विवादित स्थान पर मालिकाना हक का दावा करते हुए राजीव धवन ने कहा कि वहां 1528 से जबसे मस्जिद बनी है और सिर्फ मुसलमानों का ही अधिकार रहा। सोमवार को राजीव धवन ने कहा कि उनका मुकदमा समयबाधित नहीं है। धवन ने कहा कि कोर्ट को मुगल शासन और उसकी वैधानिकता पर नहीं विचार करना चाहिए। धवन ने वहां मस्जिद का दावा करते हुए कहा कि मस्जिद हमेशा मस्जिद ही रहती है। 6 दिसंबर, 1992 को ढहाए जाने के बावजूद मस्जिद की प्रकृति समाप्त नहीं होगी। खुदाई में मिले साक्ष्यों पर उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चार सौ साल पहले बनी मस्जिद के नीचे खुदाई करना ठीक नहीं । राजीव धवन ने कहा क मस्जिद बनने के 450 साल बाद उसके नीचे खुदाई करके यह पता लगाना ठीक नहीं है कि पहले वहां कुछ था कि नहीं था। उन्होंने हाइकोर्ट के एएसआई से खुदाई कराने के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि अगर इस तरह होगा तो फिर इन लोगों का कहना है कि 500 मस्जिदें मंदिर तोड़ कर बनाई गईं।
धवन ने कहा कि कोर्ट अगर वैकल्पिक मांग पूछ रहा है तो उनकी यही मांग है कि वहां 5 दिसंबर, 1992 की स्थिति बहाल की जाए। दोबारा मस्जिद बनाई जाए। राजीव धवन का यह भी कहना था कि मुसलमानों का वहां कभी भी मालिकाना हक समाप्त नहीं हुआ। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बाहरी अहाते में हिंदुओं का कब्जा था। इस केस में यह स्वीकार्य बात है 1855 के आसपास वहां राम चबूतरा बना। पूजा की इजाजत दी गई। इस पर राजीव धवन ने कहा कि मुसलमान लगातार मुख्य द्वारा का उपयोग करते थे। इस पर जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि अगर उनके पास पूजा का अधिकार था, तो क्या इससे आपका एकाधिकार का दावा कमजोर नहीं होता। इस पर राजीव धवन ने कहा कि इस केस में कोर्ट मुझसे ही सवाल पूछता है। हिंदू पक्ष से क्यों नहीं। जबकि इस तरह के सवाल कोर्ट से नहीं किए जा सकते। अगले क्षण राजीव धवन ने कहा कि मुझसे सवाल पूछे जाते हैं और मैं उनका जवाब देने के लिए प्रतिबद्ध हूं। अब सुन्नी वक्फ बोर्ड की बहस पूरी हो चुकी है। मंगलवार (15 अक्टूबर) को हिंदू पक्ष ने भी मुस्लिम पक्ष की दलीलों का जवाब कोर्ट में दे दिया है। अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद के मामले में सुनवाई पूरी होने से पहले ही शासन ने प्रकरण की संवेदनशीलता को देखते हुए अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं। अयोध्या में धारा-144 लगा दी गई है। अयोध्या में अतिरिक्त पुलिस व पीएसी बल भी तैनात कर दिया गया है। सभी पक्ष अपने-अपने हक में निर्णय आने के बयान दे रहे हैं, लेकिन फैसला तो सुप्रीम कोर्ट के जजों को ही करना है और वह क्या होगा, अभी से कुछ कहना ठीक नहीं है।
(लेखक प्रेरणा शोध संस्थान नोएडा से जुड़े हैं।)