Delhi : 40 सिगरेट पीने के बराबर है इस शहर में सांस लेना, मास्क भी बेअसर
दिल्ली के एनसीआर के शहरों गुरुग्राम, फरीदाबाद, गुरुग्राम, नोएडा और गाजियाबाद में वायु प्रदूषण के हालात कमोबेश एक से हैं। दिल्ली के साथ नोएडा और गाजियाबाद में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) भी पिछले 5 दिनों से 400 से 500 बना हुआ है। ऐसे में प्रदूषण से सांस व दिल के पुराने मरीज ही नहीं, बल्कि स्वस्थ लोग भी परेशान हैं। दिल्ली की आबोहवा इतनी खराब हो चुकी है कि खुली हवा में सांस लेना हमेशा तकरीबन 40 सिगरेट पीने के बराबर है। यह बातें दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute of Medical Sciences, New Delhi) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ( AIIMS director Doctor Randeep Guleria) ने कहीं। उन्होंने कहा कि दिल्ली की आबोहवा अभी रहने लायक नहीं है।
स्थिति यह है कि दूसरे राज्यों से मेडिकल व नर्सिंग की पढ़ाई करने के लिए एम्स में आए छात्रों को भी खांसी व सांस की बीमारी हो गई है। कुछ समय पहले एक संस्था ने दिल्ली में अध्ययन किया था। तब यह पाया गया था कि लोदी गार्डन में 45 मिनट से एक घंटा तक व्यायाम करने वाले तीन से चार सिगरेट के बराबर प्रदूषित हवा सांस लेते हैं। बहरहाल, यदि पुराने अध्ययन को आधार माने तो अभी दिल्ली में खुली हवा में 10 -12 घंटे रहते हैं तो यह 36 से 40 सिगरेट पीने के बराबर है।
एन 95 मास्क भी ज्यादा प्रभावी नहीं
डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि एन 95 मास्क ज्यादा प्रदूषित हवा रोक पाने में प्रभावी नहीं है, क्योंकि नाक के पास का हिस्सा उठा होता है। जहां से धूलकण सांस के जरिये प्रवेश कर सकता है। यह बच्चों के चेहरे में टाइट नहीं बैठता।
प्रदूषण के दुष्प्रभाव से लोग सांस की बीमारी पीड़ित हो रहे हैं। लेकिन, इसके दुष्प्रभाव से 10 से 15 सालों बाद लोग गंभीर बीमारी के भी शिकार हो सकते हैं। क्योंकि प्रदूषण के दुष्प्रभाव से फेफड़े का कैंसर होने की बात सामने आ चुकी है। बच्चों के फेफड़े का विकास प्रभावित होता है। डॉ. गुलेरिया ने कहा कि प्रदूषण के कारण होने वाली क्रोनिक बीमारियों और दीर्घकालिक असर रोकने को भी कदम उठाया जाना चाहिए।
वर्ष 2017 में प्रदूषण से 12.4 लाख लोगों की हुई थी मौत
अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लांसेट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 में प्रदूषण देश में करीब 12.4 लाख लोगों की मौत का कारण बना। इसमें से 6.7 लाख लोगों की मौत हवा में पार्टिकुलेट मैटर बढ़ने के कारण हुई।
10 साल तक कम हो रही दिल्ली वालों की जिंदगी
गौरतलब है कि पेड़ों के कटने, लगातार धरती का तापमान बढ़ने और कुल मिलाकर ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव से भारत, चीन समते दुनियाभर के करोड़ों लोग प्रभावित हो रही है। दो साल पहले एक अध्ययन में सामने आया था कि दिल्ली ही नहीं, एनसीआर के शहरों में रहने वाले लोगों की भी जिंदगी के औसतन 10 साल कम हो रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (world Health Organization) के मुताबिक, पीएम 2.5 का सुरक्षित स्तर 10 माइकोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सालाना होनी चाहिए। वहीं, भारतीय मानकों के आधार पर इस सीमा को 40 माइक्रोग्राम तक बढ़ाया गया है, बावजूद इसके दिल्ली समेत देशभर के तमाम शहरों में हालात चिंताजनक हैं।