पाठ-पूजा करते समय महिलाओ का सिर ढकना क्यों माना जाता है आवश्यक ? जानिए
भारत में हम अकसर मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में दर्शन करने आई महिलाओं को अपने सिर ढंके हुए देखते हैं। वे ऐसे किसी भी धार्मिक स्थल में दाखिल होने से पहले अपना सिर अपनी चुन्नी या फिर किसी भी कपड़े की सहायता से ढंक कर अंदर जाती हैं। देखने में यह काफी सम्मानजनक लगता है।
ईश्वर को आदर देते हुए वे सिर ढंक कर उनके सामने माथा टेकती हैं। लेकिन भारतीय महिलाएं ही नहीं, विश्व भर में ऐसे कितने ही देश हैं जहां महिलाएं किसी धार्मिक स्थान के दर्शन करने जब जाती हैं तो अपना सिर ढंकती जरूर हैं फिर वे चाहे पश्चिमी देशों में बैठी ईसाई धर्म की कोई महिला हो या फिर अरब देश की इस्लामी महिलाएं। सभी दर्शन करने से पहले अपना सिर जरूर ढंकती हैं। लेकिन वे ऐसा क्यों करती हैं? क्या ऐसा व्यवहार करने के पीछे केवल एक सामाजिक पहलू है या फिर धर्म भी इस बात का समर्थन करता है।
जहां तक विश्व भर में मौजूद ईसाई धर्म की महिलाओं की बात करें तो बाइबिल में महिलाओ के स्पष्ट रीती से इसका उल्लेख मिलता है जो यह कहता है की यदि महिलाये अपना हेड कवर करे या फिर अपने बहाल को मुंडवा दे बाइबिल के अनुसार हेड कवर करना एक अधीनता का सूचक है और यह आवशयक है की जब हम ईश्वर की नज़दीकी में जाये तो यह अधीनता को प्रदर्शित करे। आप कभी भी किसी नन को बिना सिर ढंके हुए नहीं देखेंगे। सिख धर्म एक ऐसा धर्म है जो गुरुओं के सिद्धांतों पर चलता है। सिख गुरुओं के अनुसार व्यक्ति के पूरे शरीर में से सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा उसके सिर के हिस्से से उत्पन्न होती है। यह बात सभी जानते हैं कि गुरुद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब के सामने उन्हें सम्मान देने के लिए सिर ढंका जाता है। केवल महिलाएं ही नहीं, सिख धार्मिक स्थलों पर तो स्त्री और पुरुष दोनों के लिए सिर ढंकना जरूरी है। साथ ही बच्चों को भी सिर ढंकने के लिए कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि गुरुद्वारे में उपस्थित होने पर उस वातावरण के माध्यम से व्यक्ति का सिर विभिन्न प्रकार की सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करता है।
सिख धर्म की तरह ही इस्लाम में भी स्त्री और पुरुष दोनों द्वारा सिर ढंक कर मस्जिद में दाखिल होने को कहा गया है। इस्लाम में महिलाओं द्वारा केवल सिर ही नहीं, बल्कि शरीर को पूरी तरह से ढंका जाता है। शरीर का कोई भी हिस्सा ढंका ना हो, यह इस्लाम के लिए उसके उसूलों के खिलाफ है। इसके अलावा मर्दों द्वारा भी अपने शरीर को ढंक कर रखने के लिए कहा जाता है। मस्जिद में नमाज पढ़ने के दौरान पुरुषों को लंबी पतलून और सादी कमीज़ पहनना अनिवार्य है। इसके साथ ही सिर ढंका होना बेहद महत्वपूर्ण है। दक्षिण भारत के कुछ मंदिरों में तो दर्शन करने के लिए खासतौर पर एक जैसे कपड़े पहनने होते हैं। सभी भक्तों के कपड़ों का रंग एक जैसा हो, यह नियम बनाया जाता है। जहां मर्दों को मुण्डु नाम का एक कपड़ा अपनी कमर पर बांधना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर महिलाएं पारम्परिक साड़ी या फिर लड़कियां लंबी स्कर्ट पहन सकती हैं।