अमित शाह ने कहा- कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश को बांटा, इसलिए नागरिकता बिल लाना पड़ा
लोकसभा में सोमवार को भारी शोर-शराबे के बीच नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 पारित हो गया। हालांकि, विधेयक पेश करने से पहले सदन में करीब एक घंटे तक तीखी नोकझोंक हुई। हंगामा नहीं थमा तो दोपहर करीब डेढ़ बजे विधेयक को पेश करने पर मतदान हुआ। विधेयक को पेश करने के पक्ष में 293 और विपक्ष में 82 मत पड़े। अब यह बिल राज्यसभा में जाएगा। भाजपा ने इसे लेकर अपने सांसदों के लिए व्हिप जारी कर दिया है। विधेयक पेश करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस के मुस्लिमों से भेदभाव के आरोपों पर उसके शासनकाल की याद दिलाई। शाह ने कहा, 1971 में इंदिरा गांधी ने निर्णय किया था कि बांग्लादेश से जितने लोग आए हैं, सारे लोगों को नागरिकता दी जाए, तो फिर पाकिस्तान से आए लोगों को क्यों नहीं दी गई? उन्होंने सवाल किया कि जब अनुच्छेद 14 ही था तो फिर बांग्लादेश ही क्यों?
उन्होंने कहा, वहां नरसंहार रुका नहीं है। वहां आज भी अल्पसंख्यकों को चुन-चुन कर मारा जा रहा है। उसके बाद युगांडा से आए लोगों को कांग्रेस के शासन में नागरिकता दी गई। तब इंग्लैंड से आए लोगों को क्यों नहीं दी गई? फिर दंडकारण्य कानून लाकर नागरिकता दी गई। उसके बाद राजीव गांधी ने असम अकॉर्ड किया। उसमें भी 1971 का ही कट ऑफ डेट रखा तो क्या समानता हो पाई। हर बार तार्किक वर्गीकरण के आधार पर ही नागरिकता दी जाती रही है।
शाह ने सवाल किया, अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकार कैसे होंगे, बताएं। समानता का कानून कहां चला जाता है? अल्पसंख्यकों को अपना शैक्षणिक संस्थान चलाने का अधिकार क्या समानता के कानून के खिलाफ है क्या? उन्होंने कहा कि 1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ।
शाह ने कहा, इसमें भारत-पाकिस्तान ने अपने यहां अल्पसंख्यकों के संरक्षण का संकल्प लिया। भारत में तो इसका गंभीरता से पालन हुआ, लेकिन पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हुए जोर-जुल्म से दुनिया अवगत है। तीनों राष्ट्रों में हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख और ईसाई इन सभी धर्मावलंबियों के खिलाफ धार्मिक प्रताड़ना हुई।
ये दल विरोध में
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रमुक, सपा, बसपा, राजद, माकपा, एआईएमआईएम, बीजद और असम में भाजपा की सहयोगी अगप विधेयक का विरोध कर रही हैं।
ये दल पक्ष में
अकाली दल, जदयू, अन्नाद्रमुक और शिवसेना इस विधेयक पर सरकार के साथ हैं।
‘विधेयक के पीछे कोई राजनीति एजेंडा नहीं’
शाह ने कहा, नागरिकता बिल के पीछे कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। हम नागरिकता बिल को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अल्पसंख्यकों को लेकर भेदभाव नहीं कर रहे हैं। मैं सदन को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि इससे लोगों को न्याय ही मिलेगा। लोग 70 साल से न्याय का इंतजार कर रहे हैं। ये सांविधानिक प्रक्रिया है।
अधीर ने कहा यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन, शाह बोले- अधीर मत होइए
सदन में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने संविधान की प्रस्तावना और नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों का हवाला देते हुए नागरिकता संशोधन विधेयक को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। उन्होंने कहा कि सरकार संविधान के अनुच्छेद 14 यानी समानता के अधिकार को नजरअंदाज कर रही है। यह हमारे लोकतंत्र का ढांचा है। अधीर के हंगामे पर शाह ने तंज कसा कि अधीर जी इतने अधीर मत होइए।
विधेयक भारत की परंपरा के खिलाफ है : मनीष तिवारी
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, कोई भी शरणार्थी हमसे शरण मांगता है तो ये हमारा कर्तव्य बनता है कि बिना उसका मजहब देखे, उसको शरण दें। इस बिल में विरोधाभास है। इस बिल को फिर से देखने की जरूरत है। ये विधेयक भारत की परंपरा के खिलाफ है। भारत का मूलभूत सिद्धांत रहा है कि हम बिना मजहब देखे मानवीय आधार पर शरण दें।
उन्होंने कहा कि यह विधेयक संविधान के खिलाफ है। ये विधेयक मूलभूत आधार का उल्लंघन करता है। ये विधेयक भारत के संविधान के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता है। अंतरराष्ट्रीय संधियां भी हैं जो ये कहती है कि कोई भी शरणार्थी अगर आपके यहां शरण मांगे तो आप इनकार नहीं कर सकते और न ही ये देखा जाएगा कि उनका धर्म क्या है।
अखिलेश से पूछा, क्या आप पीओके को भारत का हिस्सा नहीं मानते?
विधेयक पेश करते वक्त शाह और सपा सांसद अखिलेश यादव के बीच तीखी और दिलचस्प नोंकझोंक हुई। शाह ने कहा कि इसमें भारतीय सीमा से लगते तीन देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में प्रताड़ित होने वाले छह अल्पसंख्यकों हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी छह अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
इस दौरान शाह ने कहा कि अफगानिस्तान की 106 किलोमीटर की सीमा भारत से लगती है। इस पर अखिलेश ने बार-बार सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि किस इलाके में यह सीमा लगती है। बार-बार पूछने पर शाह ने कहा- अखिलेशजी रहने दीजिये, यह आपकी समझ में नहीं आएगा, क्या आप पीओके को भारत का हिस्सा नहीं मानते?
मुलायम की भरी पर्ची
बिल पेश किए जाने के दौरान हुए मतविभाजन पर बार-बार समझाने के बावजूद सपा सांसद मुलायम सिंह यादव इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग नहीं कर पाए। घंटी बजने के बावजूद वह दो बटन लगातार दबाए नहीं रख सके। इस दौरान अखिलेश के साथ डीएमके के टीआर बालू लगातार उनकी मदद करते दिखे। बाद में अखिलेश ने मुलायम का हस्ताक्षर करा कर पर्ची के माध्यम से उनका वोट कराया।
‘दादा अब चुप रहिए, आपका संदेश वहां तक पहुंच गया’
बिल पेश होने के दौरान टीएमसी के सांसद कल्याण बनर्जी बेहद आक्रामक दिखे। उन्होंने इस दौरान कई बार टोका-टोकी की। उन्होंने कहा कि वह लगातार इस बिल का विरोध करेंगे। गृहमंत्री का विरोध करेंगे। बार-बार शांत रहने का अनुरोध ठुकराए जाने के बाद स्पीकर ने बनर्जी से कहा दादा आप शांत हो जाईये, आप जहां संदेश देना चाहते हैं, वहां तक संदेश पहुंच गया है। इस पर पूरा सदन हंसते-हंसते लोटपोट हो गया।
ओवैसी ने की आपत्तिजनक टिप्पणी
चर्चा के दौरान एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने गृहमंत्री अमित शाह की तुलना एक कुख्यात तानाशाह से की। उन्होंने कहा कि अगर यह बिल पास हुआ तो गृह मंत्री की कुख्यात तानाशाह से तुलना होगी। सत्ता पक्ष के भारी विरोध के बाद स्पीकर ओम बिरला ने ओवैसी की टिप्पणी को कार्यवाही से हटाया।
शाह नए हैं इसलिए जानकारी कम है : सौगत राय
चर्चा के दौरान तृणमूल सांसद सौगत राय ने भी गृहमंत्री पर हमला बोला। राय ने कहा कि बिल विभाजनकारी और असांविधानिक है। यह नेहरू-आंबेडकर की सोच के भारत के खिलाफ है। विपक्ष के बिल को संविधान और समानता के अधिकार का उल्लंघन बताने का गृहमंत्री द्वारा खंडन करने के बाद राय ने कहा कि चूंकि शाह इस सदन में नए हैं। बमुश्किल छह महीने पहले इस सदन में आए हैं, इसलिए उन्हें कम जानकारी है। उनकी टिप्पणी पर भी सदन में हंगामा हुआ।
राष्ट्रीयता धर्म के आधार पर तय नहीं
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, संसद को इस तरह के विधेयक पर चर्चा का अधिकार नहीं है। यह भारतीय गणतंत्र के मूलभूत मूल्यों का उल्लंघन है। क्या हमारी राष्ट्रीयता का निर्णय धर्म के आधार पर होगा? ऐसा नहीं होना चाहिए। यह विधेयक संविधान की प्रस्तावना का भी उल्लंघन करता है।
यह है विधेयक
नए बिल के तहत अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी शरणार्थियों को नागरिकता मिलने में आसानी होगी। इसके अलावा अब भारत की नागरिकता पाने के लिए 11 साल नहीं बल्कि छह साल तक देश में रहना अनिवार्य होगा।
अल्पसंख्यकों नहीं घुसपैठियों के खिलाफ है विधेयक : शाह
विपक्षी दलों द्वारा विधेयक के अल्पसंख्यक विरोधी होने के आरोपों पर शाह ने कहा, यह विधेयक अल्पसंख्यकों नहीं घुसपैठियों के खिलाफ है। उन्होंने कहा, कांग्रेस ने धर्म के आधार पर देश का बंटवारा किया, इसलिए यह विधेयक लाना पड़ा। पड़ोसी देशों में मुस्लिमों के खिलाफ धार्मिक प्रताड़ना नहीं होती है, इसलिए इस बिल का लाभ उन्हें नहीं मिलेगा।
अगर ऐसा हुआ तो यह देश उन्हें भी इसका लाभ देने पर खुले दिल से विचार करेगा। शाम को शाह ने कहा, नागरिकता बिल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के घोषणापत्र का हिस्सा रहा है। अगर बिल से भेदभाव साबित होता है तो बिल को वापस ले लूंगा। कांग्रेस साबित करे कि यह बिल किसी के साथ भेदभाव करता है।
विपक्ष से बोले शाह, हर सवाल का जवाब देंगे, वॉकआउट मत करना
शाह ने कहा, हमें पांच साल के लिए बहुमत मिला है, आपको सुनना होगा। प्रस्तावित विधेयक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम शरणार्थियों को देने के संबंध में है, जो इन देशों में प्रताड़ित रहे हैं। उन्होंने कहा, यह विधेयक अल्पसंख्यकों के खिलाफ 0.001 फीसदी भी नहीं है। हम हर सवाल का जवाब देंगे, लेकिन वॉकआउट मत करना।
शाह के इस आश्वासन के बावजूद विपक्ष ने हंगामा जारी रखा। अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर, सौगत रॉय, गौरव गोगोई और असदुद्दीन ओवैसी समेत कई विपक्षी नेताओं का कहना था कि यह विधेयक संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और धर्म के आधार पर नागरिकता संविधान विरोधी है।
‘मनमोहन-आडवाणी शरणार्थियों में से ही हमें मिले’
शाह ने कहा, नागरिकता को लेकर इस तरह के कानून पहले भी बने हैं। 1947 में लाखों लोगों ने भारत की शरण ली थी और हमने उन्हें नागरिकता देते हुए तमाम अधिकार दिए। ऐसे में ही लोगों में से मनमोहन सिंह और लालकृष्ण आडवाणी जैसे लोग भी हुए, जो प्रधानमंत्री से लेकर उपप्रधानमंत्री तक बने। इसके बाद 1971 में भी ऐसे ही प्रावधान लागू किए थे, फिर अब इस तरह के ही बिल का विरोध क्यों किया जा रहा है।
‘मणिपुर में इनर लाइन परमिट लागू होगा’
गृह मंत्री ने कहा कि सीमाओं की सुरक्षा सरकार का कर्तव्य है। नगालैंड, मिजोरम और मणिपुर में इनर लाइन परमिट लागू रहेगा। अब तक मणिपुर में इनर लाइन परमिट नहीं था, लेकिन अब लागू किया जाएगा। किसी का अधिकार नहीं छीना जा रहा है। हम बदलाव को स्वीकार करते हैं, बदलाव को समाहित करते हैं। असम, अरुणाचल और त्रिपुरा जैसे राज्यों में बंगाल ईस्ट फ्रंटियर कानून लागू रहेगा। इस तरह से हम पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों की चिंताओं को दूर करना चाहते हैं।
शिवसेना ने दिया सरकार का साथ
महाराष्ट्र चुनाव के बाद एनडीए से अलग होने वाली शिवसेना ने इस बिल पर मोदी सरकार का साथ दिया है। शिवसेना पहले ही कह चुकी थी कि वह घुसपैठियों को बाहर निकालने के पक्ष में है, यही कारण रहा कि बिल पेश करने के लिए जब मतदान हुआ तो शिवसेना सरकार के साथ रही। हालांकि, शिवसेना की मांग है कि जिन लोगों को नागरिकता मिलेगी, उन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं मिले।