बतौर कलाकार बहुत क्रिटिकल हूं, जो कहना है, वह फिल्मों के जरिए कहता हूं : आयुष्मान खुराना
मुम्बई : पिछला साल आयुष्मान खुराना के नाम रहा। उन्होंने बेस्ट एक्टर (फिल्म ‘अंधाधुन’ के लिए) का नेशनल अवॉर्ड अपने नाम किया और कई हिट फिल्में भी अपने खाते में दर्ज करवाईं। दैनिक भास्कर के लिए अमित कर्ण से हुई इस बातचीत में आयुष्मान ने अपनी फिल्मों से आगे के मकसद को लेकर बात की। बतौर कलाकार मैं बहुत क्रिटिकल हूं। जो मैं कहना चाहता हूं, वह मैं अपनी फिल्मों से जाहिर करता रहता हूं। ‘आर्टिकल 15’ मैंने की और उससे अपना स्टैंड जाहिर किया। कोई और एक्टर होता तो शायद वह फिल्म नहीं करता। कोई कमर्शियल एक्टर तो वह फिल्म नहीं करता क्योंकि वह बहुत डार्क थ्रिलर थी। जो बदलाव मैं सोसाइटी में लाना चाहता हूं वह मैं अपनी फिल्मों के जरिए करता हूं। आगे भी जो मैं कहना चाहूंगा वह मेरी फिल्में ही बोलेंगी। मुझे लगता है इसमें रिलेटेबल फैक्टर है। मैं दर्शकों दुनिया के करीब के कैरेक्टर प्ले कर रहा हूं मैं। इनमें ऐसी कहानियां होती हैं या विषय होते हैं जिनको पहले छेड़ा नहीं गया। जिस सेटअप में वह फिल्में बनती हैं वह मेरे कैरेक्टर के लिए एंबैरेसिंग होती हैं, लेकिन वह ऑडियंस को पसंद आता हैं। वह बहुत यूनिक सिचुएशन होती है। सरल शब्दों में कहूं तो फिल्में ही यूनिक होती है तो ऑडियंस अपने आप मेरी फिल्मों से जुड़ जाती हैं। नहीं। मैं चाहता हूं कि वह भी सबजेक्ट बेस्ड फिल्म ही हो। ऐसा कुछ जो पहले कभी उस सब्जेक्ट पर बना न हो। अलग दुनिया होनी चाहिए। समथिंग आउट ऑफ बॉक्स।
अभी तो ‘गुलाबो सिताबो’ में बच्चन साहब के साथ बहुत यादगार मामला रहा। क्योंकि बचपन से मेरा एक ही उद्देश्य था। मेरी बकेटलिस्ट थी कि बच्चन साहब के साथ काम करना शामिल था। इस फिल्म में वह पूरा हुआ। इसके अलावा ‘विकी डोनर’ के बाद शूजित दा और जूही चतुर्वेदी के कॉन्बिनेशन में फिर से आना भी बड़ा इंटरेस्टिंग रहा। इसके अलावा अनु कपूर साहब के साथ भी ‘विकी डोनर’ के बाद ‘ड्रीम गर्ल’ में काम करना कमाल का अनुभव था। अनु जी के साथ तो मेरे काफी यादगार अनुभव हैं। हां, सच है कि मैं किताबें तो खूब पढ़ता रहता हूं। कई कहानियां भी मुझे खासी पसंद है पर मैं किस कहानी पर कभी फिल्म बनाना चाहूंगा, वह तो जाहिर नहीं करूंगा। क्योंकि एक बार मैंने जाहिर किया था और उस पर फिल्म बन गई थी। किसी और ने उस पर फिल्म बना ली थी।