वाराणसी : अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को तीस से अधिक योजनाओं की सौगात देने के लिए पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बाबतपुर पहुंचे। इसके बाद जंगमबाड़ी मठ में आयोजित समारोह में शामिल होने के बाद चंदौली के पड़ाव में पं. दीनदयाल उपाध्याय की प्रतिमा का लोकार्पण करने पहुंचे। प्रतिमा का लोकार्पण करने के बाद उन्होंने स्मारक परिसर का भी अवलोकन किया। इसके बाद उन्होंने 36 परियोजनाओं का लोकार्पण और 14 परियोजनाओं का शिलान्यास किया। प्रधानमंत्री ट्रेड फैसिलिटेशन सेंटर में आयोजित कार्यक्रम ‘काशी एक रूप अनेक’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि योगी आदित्यनाथ और टीम की प्रशंसा करता हूं। यूपी के उत्पाद देश विदेश और दुनिया के आॅनलाइन बाजार पहुंचाने से देश को लाभ मिलेगा। बुनकर हस्तशिल्पियों को जो मशीनें मिल रही हैं, जो लोन मिल रहा है उनके जीवन को आसान करने के लिए सुविधा दी जा रही है वह सराहनीय है, जिनको सुविधा मिली है ऐसे साथियों को बधाई और शुभकामनाएं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत की शक्ति रही है कि हर क्षेत्र और जिले में कोई विशेष कला और उत्पाद जुड़ा रहा है। सदियों से परम्परा रही है और कारोबारियों ने इसका प्रचार दुनिया में किया है। मसाले शिल्प से भंडार भरा है। हर प्रोडक्ट की अपनी विशेषता और कहानी है। आदिवासी अंचलों में आर्टिस्टिक प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं। उद्योग हैं जो पीढी दर पीढी बढ रहे हैं और यह ओडीओपी की प्रेरणा हैं। भारत को पांच ट्रिलियन अर्थ व्यवस्था में यही सामथ्र्य है। संसाधन और कौशल की कमी नहीं रही है। व्यापक सोच से काम करने की जरूरत है। इसके दुनिया तक पहुंचने की जरूरत है। बताया गया कि यूपी आइडी द्वारा दो वर्षों में तीस जिलों में 3500 से अधिक को डिजाइन में सहायता दी गई। सुधार के लिए 1000 कलाकारों को सुविधा दी गई। टूल किट देकर वर्कशॉप करके यूपीआइडी ने हजारों कलाकारों को कारोबार में नयापन और बढाने में मदद की है। दुनिया में क्राफ्ट शिल्प में जो चल रहा है उसमें यूपी आइडी प्लेटफार्म बन रहा है। ओडीओपी से बनी एक प्रदर्शनी को देखकर आया हूं। इसको आप भी बारीकी से देखिए। शानदार कलेक्शन है। दोना पत्तल वालों को मशीन दी गई है। उनका आत्मविश्वास देखते बन रहा है। सिंगल यूज प्लास्टिक का विकल्प खोजा जा रहा है। पूरी दुनिया के साथ इसे साझा किया जा सकता है। पुरातन परंपरा को 21 वीं सदी की आवश्यकताओं के हिसाब से ढालने और परिष्कृत करने की जरूरत है।