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स्थायी कमीशन पर रिटायर विंग कमांडर बोलीं- मुकाम तक पहुंची सम्मान की लड़ाई

महिलाओं को स्थायी कमीशन के लिए सबसे पहले आवाज उठाने वाली देहरादून निवासी रिटायर विंग कमांडर अनुपमा जोशी ने कहा आखिर जो जंग उन्होंने छेड़ी थी आज मुकाम तक पहुंच गई है। लेफ्टिनेंट कर्नल सीमा सिंह ने कहा, यह एक प्रगतिशील और ऐतिहासिक फैसला है। महिलाओं को बराबर का अधिकार दिया जाना चाहिए। एक अन्य महिला अफसर ने कहा, जो भी नौकरी के लिए योग्य है, उसे सैन्य कमान का अवसर दिया जाना चाहिए। महिला अफसरों की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ वकील और भाजपा नेता मीनाक्षी लेखी ने कहा, कोर्ट ने देखा कि किस तरह से सैन्य प्रशासन कोर्ट को गुमराह कर रहा था। यह महिलाओं की उड़ान पर रोक लगाने जैसा है।

सेना में आम राय नहीं
महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन और कमान की जिम्मेदारी देने पर सेना में अलग-अलग राय है। अधिकारियों के बड़े तबके का मानना है कि सेना में उसी समाज के लोग आते हैं, जहां महिलाओं को स्वतंत्र नहीं माना जाता। लिहाजा उन्हें कमान नहीं दी जा सकती।

वहीं, कुछ अफसरों का मानना है कि महिला नेतृत्व के पैमानों पर खरी उतरे तो पुरुषों को उनके तहत काम करने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। सेना मुख्यालय में तैनात एक अधिकारी ने कहा कि सेना में कई दिक्कतें हैं जो सेना के बाहर महिलाओं के साथ नहीं होती।

लेकिन, महिला की काबिलियत को परखे बिना उन्हें इस अधिकार से ही वंचित नहीं कर सकते। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि समाज महिलाओं को सहयोगी के तौर पर देखता है। सेना में भी यही मनोविज्ञान काम करता है।

राहुल ने सरकार को घेरा तो वकील ने कहा राजनीति न करें
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बहाने पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार पर हमला बोला। हालांकि इस बयान को लेकर सोशल मीडिया पर राहुल ही घिर गए। दरअसल, राहुल ने ट्वीट किया, सरकार ने कोर्ट में यह दलील दी कि महिला सैन्य अफसर कमान पोस्ट या स्थायी सर्विस के योग्य नहीं हैं क्योंकि वह पुरुषों से कमतर हैं।

ऐसा करके सरकार ने भारतीय महिलाओं का अपमान किया है। मैं भारत की महिलाओं को आवाज उठाने और सरकार को गलत साबित करने के लिए बधाई देता हूं। वहीं, हाईकोर्ट के वकील नवदीप सिंह ने पलटवार करते हुए राहुल को याद दिलाया कि हाईकोर्ट ने भी यही फैसला दिया था और 2010 में तत्कालीन यूपीए सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई थी। उन्होंने कहा, मेरा मत है कि ऐसे मामलों और कोर्ट के फैसलों पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।

अभी जंगी सेवाओं में नहीं है महिलाओं की भूमिका
महिलाएं शॉर्ट सर्विस कमीशन के दौरान आर्मी सर्विस कोर, आर्डनेंस, एजुकेशन कोर, जज एडवोकेट जनरल, इंजीनियर, सिग्नल, इंटेलिजेंस और इलेक्ट्रिक-मैकेनिकल व इंजीनियरिंग ब्रांच में ही प्रवेश पा सकती हैं। उन्हें इन्फैंट्री, उड्डयन और तोपखाने में काम करने का मौका नहीं दिया जाता।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- भेदभाव कलंक जैसा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, महिला अधिकारियों को सशस्त्र बलों में उनके योगदान के लिए देश में कई वीरता, सेना के पदक और संयुक्त राष्ट्र के शांति पुरस्कारों से नवाजा गया है। ऐसे में उनके साथ भेदभाव करना कलंक जैसा है। यह अहसास करने का समय आ गया है कि महिला अफसर पुरुष अफसरों की सहायक नहीं उनके समकक्ष हैं।

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