कोरोना की वैक्सीन बनी तो देश अपने नागरिकों को पहले सुरक्षित करेंगे, भू-राजनीतिक परिस्थितयों का फायदा भी उठाएंगे
चीन, यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में इन दिनों सबसे पहले कोरोना की वैक्सीन बनाने की होड़ जारी है। लेकिन जानकारों ने खोजी जाने वाली दवा के इस्तेमाल में ‘राष्ट्रवादी रवैये’ को लेकर चेताया है। उनका कहना है, पहले दवा बनाने वाला देश अपने नागरिकों को पहले सुरक्षित बनाने पर ध्यान देगा। साथ ही वह मौजूदा आर्थिक और भू-राजनीतिक परिस्थितयों का फायदा भी उठाना चाहेगा। विशेषज्ञों ने दवा की अधिक मांग के कारण आपूर्ति में कमी का अंदेशा भी जताया है। चीन में एक हजार से ज्यादा वैज्ञानिक कोरोना वैक्सीन पर काम कर रहे हैं। जानकारों के मुताबिक, ड्रैगन पहले दवा बनाकर विकासशील और कमजोर देशों को प्रभाव में लेने की कोशिश में है। उधर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने औषधि अधिकारियों को दवा के विकास में अमेरिका को बढ़त दिलाने को कहा है। इसके लिए एक जर्मन कंपनी को अमेरिका में वैक्सीन के विकास का प्रस्ताव दिया गया है।
राष्ट्रवादी रुख खड़ा करेगा समस्याएं
एक स्विस कंपनी के सीईओ सेवरिन श्वान का कहना है कि दवा के इस्तेमाल पर राष्ट्रवादी रवैये से बचना चाहिए। इससे दुनिया में आपूर्ति में बाधा आएगी, जिसका खामियाजा लोगों को ही भुगतना पड़ेगा। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप जैसे नेताओं के दावों के बावजूद असरदार वैक्सीन सामने आने में 12 से 18 महीने तक का समय लग जाएगा।
पहले खुद को सुरक्षित करने में लग जाते हैं देश
विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना से साफ हो गया है कि बायोटेक्नोलॉजी उद्योग भविष्य में रणनीतिक जरिया बन सकता है। ड्रोन, साइबर हथियार समेत सभी रक्षा उपकरणों की तरह देश अब दवाओं के मामले में भी आत्मनिर्भर बनने की कोशिश करेंगे। हालांकि जानकारों का कहना है कि स्वस्थ होड़ से दुनिया में सभी को फायदा ही होगा। लेकिन कई इससे सहमत नहीं हैं।
उनके मुताबिक, 11 साल पहले, 2009 में सब स्वाइन फ्लू के प्रकोप के दौरान ऑस्ट्रेलिया ने इसकी वैक्सीन खोजी लेकिन अमेरिका औप अन्य देशों को निर्यात करने से पहले अपनी मांग पूरी की। दिग्गज दवा निर्माता कंपनियों ने कहा है कि वे सरकारों के साथ मिलकर जल्द से जल्द वैक्सीन बनाने की ओर बढ़ रही हैं। कंपनियों ने अन्य देशों को भी नई दवा और संबद्ध सामान की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए।
भू-राजनीतिक फायदा लेने की फिराक में चीन
विश्लेषकों के अनुसार, जिस तरह सेचीनी दूरसंचार कंपनी हुवावे ने 5जी नेटवर्क लगाने को लेकर जो रवैया अपनाया, वैसा चीन में कोरोना वैक्सीन को लेकर भी दिख सकता है. वह कमजोर देशों में प्रभाव बढ़ाने के लिए कोरोना वैक्सीन का इस्तेमाल कर सकता है। ऐसे संकेत हैं कि चीन मौजूदा हालात को अपने भू-राजनीतिक फायदे में बदलने की जुगत में लगा है। अमेरिका औप यूरोप के साथ रहने वाले देशों की कोरोना में मदद कर वह उन्हें अपने पाले में ला सकता है।