दक्षिण एशिया में बिग ब्रदर सिंड्रोम की धारणा में बदलाव लाता ‘कोरोना वायरस’
[highlight] वर्ल्ड बैंक और एशियाई विकास बैंक से भी अपेक्षित सहयोग की आशा दक्षिण एशियाई देशों को करनी चाहिए। भारत चूंकि ब्रिक्स का सदस्य है, इसलिए उसे कुछ विशेष योगदान करना चाहिए। यह एक नया उदाहरण स्थापित करेगा। [/highlight]
नई दिल्ली (स्तम्भ): भूतपूर्व श्रीलंकाई प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने 24 अप्रैल को भारत के संबंध में एक बड़ी सकारात्मक बात कह कही। उन्होंने कहा कि विषाणु जनित महामारी के इस मुश्किल समय में भारत को एक सार्क नेतृत्व वाले क्षेत्रीय समाधान की रूपरेखा निर्धारित करने में एक नेतृत्वकारी भूमिका का निर्वाह करना होगा। सार्क सचिवालय को इस क्षेत्र में आपदा से निपटने के लिए सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने कहा कि मैं नहीं जानता कि अकेले काठमांडू (सार्क सचिवालय) से इस समस्या से कैसे निपटा जा सकता है। इसके लिए किसी दूसरे शहर की जरूरत पड़ सकती है। यह बेंगलुरु, कोलंबो या कोई और शहर भी हो सकता है। यह क्षेत्रीय सहयोग कार्यक्रम के लिए अच्छा समय है। यह एक वैश्विक नेतृत्व के अभाव के साथ वैश्विक महामारी का दौर है। उन्होंने कहा कि यह संभव है कि यह क्षेत्र दक्षिण एशिया) सभी को नेतृत्व प्रदान ना कर पाए, लेकिन सार्क के पहले वर्चुअल बैठक का अनुभव काफी अच्छा रहा। इस समस्या को एक मानवतावादी मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिए। भारत जैसा देश क्षेत्रीय सहयोग के बेहतर प्रस्तावों को लेकर आगे आ सकता है। रानिल विक्रमसिंहे ने यह भी कहा कि हमें मिलकर कार्य करना चाहिए। श्रीलंका के पास एक अच्छी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली है और ऐसा ही केरल के पास भी है। इसलिए हम दोनों साथ साथ इस समस्या से निपटने का कार्य कर सकते हैं।
श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव के अलावा सभी अन्य दक्षिण एशियाई देश पर्वतीय क्षेत्र वाले हैं। चाहे वह भारत पाकिस्तान, नेपाल हो अथवा भूटान और अफगानिस्तान। इसलिए यह एक बेहतर समय है कि सभी दक्षिण एशियाई देश मिलकर एक मानवतावादी प्रोजेक्ट पर काम करें और इसे सार्क केंद्रित इसलिए बनाया जाना चाहिए क्योंकि जहां तक बिम्सटेक का सवाल है आसियान देश पहले से ही ऐसे प्रोग्राम पर कार्य कर रहे हैं। बिम्सटेक में पाकिस्तान भी शामिल नही है और बिम्सटेक के बजाय सार्क दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की मूल इकाई है। इसलिए सार्क सहयोग को पुनर्जीवित करने का समय आ गया है। श्रीलंका ने भी अपनी भूमिका की पहचान की है।
श्रीलंका ने हाल ही में गठित सार्क कोविड-19 इमरजेंसी फंड में 5 मिलियन डॉलर देने की वचनबद्धता व्यक्त की है। श्रीलंका के भूतपूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंहे ने यह भी कहा कि हम दक्षिण एशियाई देश जापान जैसे देशों से भी सहयोग करने के लिए कह सकते हैं और इस बात की पूरी संभावना है कि जापान मदद करने के लिए आगे आएगा। अन्य देश जैसे अमेरिका या चीन भी यदि इच्छुक हो तो वे भी इस स्थिति में दक्षिण एशिया को सहयोग कर सकते हैं। वर्ल्ड बैंक और एशियाई विकास बैंक से भी अपेक्षित सहयोग की आशा दक्षिण एशियाई देशों को करनी चाहिए। भारत चूंकि ब्रिक्स का सदस्य है, इसलिए उसे कुछ विशेष योगदान करना चाहिए। यह एक नया उदाहरण स्थापित करेगा।
कोरोना वायरस की इस महामारी ने वस्तुतः दक्षिण एशियाई देशों को बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। भूटान, मालदीव और श्रीलंका जिनकी अर्थव्यवस्थाएं पर्यटन पर निर्भर हैं, बुरी तरह प्रभावित हो चुकी हैं। भूटान ने तो इस आपदा के आने से कुछ समय पहले ही अपनी नई पर्यटन नीति की रूपरेखा का प्रस्ताव करते हुए भारत, बांग्लादेश और मालदीव से अपने यहां आने वाले पर्यटकों पर टूरिज्म टैक्स लगाने की बात कर आलोचना भी झेली थी। पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली किसी से छुपी नहीं है। किस वैश्विक वित्तीय संस्था और सक्षम देश से आर्थिक सहयोग की गुहार नहीं लगाई है। पाकिस्तानी केंद्रीय बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक 10 अप्रैल, 2020 को पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार चार महीने के निचले स्तर 10.97 अरब डॉलर पर आ गया था। कोरोना वायरस की वजह से पाकिस्तानी शेयर बाजार पर गिरावट हावी है। पिछले करीब 6 हफ्ते में विदेशों निवेशकों ने पाकिस्तान के बाजार से लगभग 2.69 अरब डॉलर की पूंजी निकाल ली, जिससे अचानक पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार में काफी कमी आ गई।
पाकिस्तान की इस दयनीय स्थिति को देखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को 1.39 अरब डॉलर नया कर्ज दिया है जिससे पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 12 अरब डॉलर हो गया है। पाकिस्तान की इमरान सरकार ने आईएमएफ से मिली मदद को लेकर ट्विटर पर पुष्टि की है। यहां यह विचारणीय है कि भारत के साथ सहयोग और मित्रता की राह पर चलकर पाकिस्तान अपनी कई समस्याओं का समाधान कर सकता था, विशेषकर आज के विषाणु जनित महामारी के दौर में, लेकिन क्षेत्रीय सहयोग तो दूर पाकिस्तान ने कश्मीर में युद्ध विराम उल्लंघन की अपनी पारंपरिक प्रवृत्ति का त्याग तक नहीं किया है।
हाल में दक्षिण एशिया और विश्व समुदाय को इस आपदा में फंसा देखकर पाकिस्तान ने आतंकवादियों की वॉच लिस्ट से अपने यहां हज़ारों आतंकियों के नाम हटा दिए हैं। न्यूयॉर्क स्थित नियामक प्रौद्योगिकी कम्पनी ‘कास्टेलम डॉट एआई’ के अनुसार 2018 में पाकिस्तान में आतंकवादियों की सूची में 7,600 नाम थे और पिछले 18 महीने में यह घटकर 3,800 रह गए हैं। ‘कास्टेलम’ द्वारा एकत्रित आंकड़ों के अनुसार मार्च की शुरुआत से करीब 1800 नाम इस सूची से हटाए गए हैं। प्रतिबंधित व्यक्तियों की यह तथाकथित सूची पाकिस्तान के राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी प्राधिकरण या एनएसीटीए द्वारा बनाई जाती है। इसका उद्देश्य वित्तीय संस्थानों को संदिग्ध आतंकवादियों से लेनदेन करने से रोकना है।
कुल मिलाकर यह महामारी का समय दक्षिण एशिया में भारत के खिलाफ पारंपरिक रूप से चली आ रही बिग ब्रदर सिंड्रोम की नीति के पुनर्परीक्षण का समय भी है। पारंपरिक रूप से क्षेत्रफल और अर्थव्यवस्था के आकार की दृष्टि से छोटे दक्षिण एशियाई देशों ने भारत को एक बिग ब्रदर के रूप में अपने ऊपर प्रभुत्व और नियंत्रण स्थापित करने के नजरिए से ही देखा था लेकिन अब भारत के मानवीय दृष्टिकोण से पड़ोसियों के सोच में भी कुछ हद तक बदलाव आने की संभावना को नजरंदाज नही किया जा सकता।
वुहान से लोगों को निकालने में भारत ने अपने पड़ोसी देश मालदीव की भी मदद की है। फ़रवरी माह में एयर इंडिया का दूसरा विमान भारत पहुंचा था जिसमें मालदीव के भी सात नागरिक मौजूद थे। भारत ने पड़ोसी देश श्रीलंका को कोरोना वायरस से लड़ने के लिए 10 टन चिकित्सकीय सामग्री पहुंचाने का काम भी किया। पड़ोसी देश मालदीव को भी भारत तीन महीने की चिकित्सकीय सामग्री पहुंचा चुका है। भारत ने डॉक्टरों का एक विशेष दल भी वहां भेजा है जो स्थानीय चिकित्सा कर्मियों को आवश्यक प्रशिक्षण दे रहे हैं। कुवैत को भी इस तरह की मदद देने का निर्णय भारत सरकार ने किया था। भारत ने सेना के 15 सदस्यीय एक दल को द्विपक्षीय सहयोग के तहत कुवैत भेजा था।संकट के समय मित्र देशों की सहायता करने की नीति के तहत भारत ने अमेरिका, मॉरीशस और सेशेल्स समेत 55 देशों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की आपूर्ति भी की है।
15 मार्च को भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक वीडियो कांफ्रेंस में दक्षेस देशों में कोरोना वायरस संकट से निपटने के लिए एक साझा रणनीति बनाने की वकालत की थी। इसके साथ ही उन्होंने भारत की ओर से एक करोड़ डॉलर की शुरूआती राशि की पेशकश करते हुए एक आपात कोष बनाने का भी प्रस्ताव दिया था। इस प्रकार अनेक मानक स्थापित करते हुए भारत ने सिद्ध कर दिया कि मानवतावादी हस्तक्षेप और सहायता दोनों ही भारतीय विदेश नीति के महत्वपूर्ण निर्धारक कारक हैं।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं)