सेहत और हिफाज़त के देवदूत
स्तम्भ: यह समय शिकायतों के गर्भपात का समय है। सारी शिकायतें अरब सागर में डुबो देने का समय है, किसी नाले में फेंक देने का समय है।
दुनिया को बचाने हमेशा देवदूत ही आते हैं बस वे हमारे बीच से उठते हैं और देवदूत का लिबास ओढ़कर निकल जाते हैं दुनिया की बीमारी ठीक करने। वे शिकायत नहीं करते, वे अपनी शिकायत को किसी च्युइंगम की तरह चबाते जाते हैं और आगे बढ़ते जाते हैं। हम सभी में वह देवदूत छिपा होता है बशर्ते हमें शिकायत का च्युइंगम चबाना आता हो।
यह धरती बीमार है जैसे हम कभी बीमार होते हैं तो सबसे अच्छे इलाज की तलाश करते हैं मसलन सबसे बढ़िया डॉक्टर, सबसे बढ़िया हॉस्पिटल, सबसे बढ़िया दवा आदि—आदि, यदि हम यह भी मान लें कि मनुष्य इस धरती की सबसे बुद्धिमान सन्तान है तो यह मान लेना भी उतना ही उचित होगा कि इस वक्त इस धरती माँ को अपनी सबसे अच्छी सन्तान से ही उम्मीद है और उम्मीद वह पतवार है जिसके सहारे बड़े से बड़ा सैलाब वाला सागर भी छोटी सी नाव में बैठकर पार किया जा सकता है।
हम सभी को अपने अंदर के देवदूत को जगाने का समय है यह। लॉक डाउन की बजाय मैं इसे स्लो-डाउन कहना बेहतर समझता हूँ हमारी ज़िंदगी की रफ्तार एकाएक घटा दी गई है। सब कुछ स्लो हो गया है, हमें भी अपनी आदत में इस स्लो-मोशन को शामिल कर लेना चाहिए।
हम जानते हैं कि ज़िंदगी किसी गणित की तरह है बहुत कुछ मान लीजिए पर टिका है, बस यही मान लीजिए हम सबका मान बचा सकता है, हमें बस मान लेना है कि हम सभी को इक्कीस घण्टे मिले हैं अपने को दुरुस्त रखने के लिए, एक दिन एक घण्टे की तरह बिताना है बस आहिस्ता-आहिस्ता स्लो मोशन में और देखिये सब कुछ पहले जैसा लगने लगेगा। हां यह थोड़ा कठिन है पर असम्भव नहीं है।
या हम यूँ भी मान लें जैसे कभी कभी होता है कि हम कोई फ़िल्म देख रहे होते हैं और उसे रोककर कोई ज़रूरी काम करने चले जातें हैं, वह फ़िल्म वहीं रुकी रहती है हम पुनः लौटते हैं और वहीं से देखना शुरू कर देते हैं, यह रुकना या पॉज़ करना कभी एक मिनट का होता है या कभी महीनों का, बस यह वही समय है जब हमने इमरजेंसी में पॉज़ का बटन दबा दिया है। हम सभी पुनः लौटेंगे और अपनी अपनी फिल्म जहाँ हमने रोक दी है वहीं से शुरू करेंगे।
बस याद रखना है कि हमारी माँ को अपने सबसे अच्छी सन्तान से बहुत उम्मीद है,हमें याद रखना है कि फिलवक्त हर किसी मे एक देवदूत बैठा है उसे झगझोड़ कर जगा देना है, हमें याद रखना है कि यही वह समय है जब शिकायतों की लिस्ट डस्टबिन में डाल देनी है, हमें याद रखना है कि मनुष्य ही अपने कर्मों से देवता बन जाया करता है।