लोन राइट ऑफ का मिथक
नई दिल्ली: देश की आर्थिक प्रगति का तानाबान देश के बैंकिंग तंत्र के इर्द-गिर्द बुना जाता है । बैकिंग तंत्र की दक्षता और अर्थव्यवस्था की आर्थिक संवृद्धि के बीच सीधा संबंध होता है। अर्थात बैंको का वित्तीय स्वास्थ्य जितना मजबूत होगा अर्थव्यवस्था उतनी ही मजबूत होगी ।ऐसे में सवाल यह उठता स्वाभाविक है कि हमें या देश के किसी भी सामान्य नागरिक या देश की संसद या फिर बैकिंग विनियामक संस्था जैसे आरबीआई को बैंको वित्तीय स्वास्थ्य की जानकारी कैसे होती है….?
जाहिर सी बात है कि कुछ ऐसे संकेतक अवश्य होते होंगे जिनसे बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य को मापा जाता होगा। पिछले तीन दिनों से मीडिया की सुर्खियों और सोशल मीडिया पर छाया हुआ “एनपीए “(Non performing assets/ गैर निष्पादित परिसंपत्ति) और राइट आफ ( लास असेट्स को बट्टे खाते में मे डालने की प्रक्रिया) का मुद्दा और कुछ नहीं बल्कि बैंको के वित्तीय स्वास्थ्य को मापने के संकेतक ही है। इस लेख में आगे हम इसी को समझने का प्रयास करेंगे ।
दरअसल विनियमन,पर्यवेक्षण व परिचालन के दृष्टिकोण से बैंको द्वारा अपनी परिसंपत्तियों को निष्पादित गैर निष्पादित परिसंपत्तियों( एनपीए) नामक दो वर्गों में वर्गीकृत किया जाता। एनपीए का अर्थ उन उधारो से हैं जिसे उधार लेने वाले ने निर्धारित देय तिथि से एक तिमाही अर्थात 90 दिनों तक ( मूलधन का किश्त और ब्याज ) लौटाया ना हो।
[highlight] नोट:- कृषि ऋण को फसलो की संख्या व उनकी समयावधि के आधार पर एनपीए घोषित किया जाता है। [/highlight]
वर्ष-2005 में आरबीआई द्वारा जारी मास्टर सर्कुलर के अनुसार बैंको द्वारा अपने एनपीए को तीन वर्गो पहला, सब स्टैण्डर्ड असेट्स ( ऐसे एनपीए जिनको एनपीए घोषित हुए 12 माह से अधिक ना हुआ हो), दूसरा, डाऊटफुल असेट्स (जिसे एनपीए घोषित हुए 12 माह से अधिक का समय हो गया हो) और तीसरा लाॅस असेट्स ( वह एनपीए जिसे बैंकों द्वारा आन्तरिक व बाह्य लेखा परीक्षण में loss assets मान लिया गया है , किन्तु अभी उसे बैंक के Balance sheet से हटाया नहीं गया है।) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
Write off / राइट आफ — एक ऐसी प्रकिया जिसके अंतर्गत बैंको द्वारा (आरबीआई द्वारा नहीं) अपने loss assets को Balance sheet ( बही खाता/ तुलनपत्र) से निकाल कर बट्टे खाते में डाल दिया जाता है। loss assets को राइट-ऑफ बैंकों द्वारा अपनी बैलेंस शीट को साफ करने (clean)और कराधान दक्षता हासिल करने के लिए की जाने वाली एक नियमित प्रक्रिया है। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि बैंक अब राइट आफ वाले ॠण का वसूली नहीं करेगा। राइट ऑफ किए गए ऋणों के ऋणी आगे भी पुर्नभुगतान के लिए जिम्मेदार बने रहते हैं। अर्थात write off ऋण Balance sheet से हटाया गया है लेकिन बैंक के मेमोरी में वह अभी भी बना हुआ है।
NPA का वर्तमान स्तर |
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2017-18 |
18-19 |
GNPA |
11.2 |
9.1 |
NET NPA |
6.0 |
3.7 |
अगस्त-2003 में आरबीआई ने एक सर्कुलर जारी करते हुए बैंको को यह निर्देश दिया था कि यदि आरबीआई द्वारा किए गये मूल्यांकन में ॠण के बदले दी गयी सुरक्षा गारंटी ( बंधक ) का वास्तविक मूल्य, उधार खातों में बकाये के 10 प्रतिशत से कम है तो, उस ॠण को तत्काल write off कर दिया जाय।
अब यहाँ पर सवाल उठता है कि आखिर जब बैंकों को अपने राईट आफ ॠण को वसूलना ही था तो , फिर इसे Balance sheet से बाहर ही क्यों किया, इससे बैंको का कौन सा लाभ मिला .?
- आयकर से बचाव- दरअसल ॠण को बैंको की परिसंपत्ति माना जाता है और उस ॠण पर अर्जित व्याज बैंकों की आय होती है। आयकर अधिनियम-1961 की धारा- 43(D)के अंतर्गत बैंको को अपने अर्जित व्याज पर आयकर देना पङता है। NPA या Loss Assets पर ॠणी से कोई व्याज ना मिलने के बावजूद भी बैंको को व्याज भुगतान करना पङता है। जब बैंक ॠण का राइट आफ कर देते हैं तो उन्हे व्याज भुगतान के अतिरिक्त बोझ से मुक्ति मिल जाती है।
- प्राॅविजन राशि का लाक आऊट- बैंक द्वारा दिये जाने किसी भी प्रकार के ऋण में निहित भावी जोखिमों से बचने के लिए बैंको द्वारा प्रदत्त ॠण का एक निर्धारित प्रतिशत( 5-20 %) अपने पास प्राॅविजन राशि के तौर पर आरक्षित रखते हुए लाक कर दिया जाता है। ॠण के राइट आफ होने पर प्राॅविजन वाली राशि बैंकों के लिए अतिरिक्त तरलता का स्रोत बन जाती है।
- राइट आफ से बैंकों को अपनी वास्तविक निष्पादित संपत्ति का अनुमान लगाने में सहायता मिलती है। जिसके आधार पर वे आगे की नीति बनाते हैं।
- इससे बैंकों का बैलेंश शीट क्लीन और लचीला होता है ।जिसमें बैंकिंग गतिविधियों की दक्षता बढती है।
- राइट आफ ॠण की वसूली के लिए बैंक इसे तीसरे पक्ष (Third Party) को बेचने , SARFAESI Act-2002 के प्रावधानों को लागू करने या Insolvency bankruptcy code के उपायों को लागू करने के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं।
राइट आफ उपर्युक्त लाभों के पाने के लिए बैंको द्वारा नियमित रूप से राइट आफ प्रक्रिया को लागू किया जाता है। यहां पर यह जानना महत्वपूर्ण है कि बैंको व सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद भी यदि राइट आफ ॠण की वसूली नहीं हो पायी तो उसका अधिकांश वित्तीय बोझ सरकार को ही उठाना पङता है। यही कारण है कि हाल के वर्षों में सरकार द्वारा बार – बार बैंको का पूजीकरण और पुर्नपूजीकरण करना पङ रहा है ।यहाँ पर सवाल यह उठता है कि अगर सरकार को ही वित्तीय बोझ उठाना पङ रहा है , तो फिर यह केंद्रीय बैंक के साथ मिलकर राइट-ऑफ को क्यों प्रोत्साहित करती है?
अधिकांश सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक अपने परिसंपत्ति आधार को बढाने के लिए, ॠणों के सदाबहारीकरण (Ever greening of Loan) डिफ़ॉल्ट खातों को भी जानबूझकर अपने Balance Sheet में सामान्य दिखा रहे थे। इसके चलते बैंक उन दूसरों को पैसे उधार नहीं दे रहे थे जिन्हें इसकी आवश्यकता थी और अंदर ही अंदर पूरा वित्तीय तंत्र एक वित्तीय बुलबुले पर फल – फुल रहा था। जो बाहर से देखने में काफी सशक्त और मजबूत नज़र आता था परन्तु अंदर ही अंदर पूरा वित्तीय तंत्र खोखला होता जा रहा था ।
यह वित्तीय बुलबुला वर्ष 2015 में तब सामने आया जब तत्कालीन आरबीआई गवर्नर रघुराम जी राजन आरबीआई के Review tools में एक्युआर (Assets Quality Review) नामक एक नया और प्रभावी Tools जोङ दिया। जिसने आरबीआई को किसी भी बैंक के Balance sheet का रैण्डमली व इफेक्टिव आडिट करने में समर्थ बना दिया। इससे बैकों की चोरी पकङी गयी , Loan Ever greening पर सख्त रोक लगा दिया गया । इसका परिणाम यह हुआ बैंको का एनपीए स्तर जो अब तक छुपा हुआ था , वह उभरकर सामने आ गया और वित्तीय बुलबुला फ़ुट ।
अब बैंक पूजीकरण से प्राप्त राशि से अर्थव्यवस्था में क्रेडिट विस्तार करने की बजाय उसका प्रयोग अपने नुकसान को छिपाने के लिए करने लगे। इससे अर्थव्यवस्था में तरलता की कमी होने लगी , ऋण के मांग और ॠण की आपूर्ति में असंतुलन उत्पन्न होने लगा, जो अंततोगत्वा आर्थिक संवृद्धि की रफ्तार का एक अवरोध बन गया । इसी समस्या के समाधान के सरकार द्वारा केन्द्रीय बैंक के साथ मिलकर ॠण को राइट आफ करने और Balance sheet को clean करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
पिछले तीन दिनों से राइट आफ को लेकर चल रहे विवाद में एक प्रश्न बार – बार उठ रहा है कि लोन राइट आफ के कितने हिस्से की वसूली सरकार द्वारा की गयी है। नीचे संलग्न टेबल-1 में वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2017-18 तक राईट आफ ॠण की कुल मात्र और टेबल-2 इसी समयावधि के दौरान राइट आफ ॠण की कुल वसूली का वर्णन किया गया है।
Report on Banking trends and progress in India -2018-19 के अनुसार वर्ष 2018-19 के दौरान कुल 236948 करोङ रूपये के ॠण का राइट आफ किया गया, जिसमें से 49098 करोङ निजी क्षेत्र के बैंका का है। रिपोर्ट में यह बताया गया है कि वर्ष 2018-19 के दौरान कुल राइट आफ ॠण वसूली का स्तर 11 प्रतिशत से बढ़कर 16 प्रतिशत के आस-पास पहुंच गया। इसमें यह भी बताया गया है विगत दस वर्षों के इतिहास में पहली बार NPA के स्तर में कमी आयी है। जिसका मुख्य कारण Insolvency bankruptcy code को लागू करना है।
(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)