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अंदर जाना था मुश्किल, बाहर आना और भी मुश्किल

ज्ञानेन्द्र शर्मा

प्रसंगवश

करीब 34 लाख युवा पहले से बेरोजगार के रूप में अपने को दर्ज कराए हुए हैं। दो साल में बेरोजगारों की संख्या में 58 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अब ये जो 50-60 लाख नए बेरोजगार आएंगे, उन्हें रोटी कौन खिलाएगा? उत्तर प्रदेश की सरकार जीतोड़ प्रयास कर रही है, रोजगार के साधन पैदा करने की पर यह आसान काम नहीं है।

स्तम्भ: ये लॉकडाउन ऐसा चक्रव्यूह है, जिसके अंदर जाना तो फिर भी आसान था लेकिन अब उससे बाहर निकलना बहुत मुश्किल साबित होने वाला है। एक झटके में सब बंद कर दिया गया था पर अब सरकारी तंत्र इस बात को लेकर तरह तरह की दुविधाओं में घिरा है कि क्या खोलें, क्या बंद रखें। अपनी परेशनियों को उसने तीन चार खानों में बांट दिया है – रंगवार, कोई लाल, कोई नारंगी तो कोई हरा। अब लॉकडाउन के बाद जो आजादी बहाल होगी, वह इन्हीं खानों में बॉटकर तकसीम की जाएगी।

अब जबकि तमाम प्रदेश पूरे, आधे या अधूरे आजाद होंगे तो उन्हें इस बात को देखकर सेवाओं की बहाली मिलेगी कि लॉकडाउन में उनका और तमाम लोगों का व्यवहार कैसा रहा। जहॉ गिनेचुने कारौना मामले अब भी पैर पसारे मिलेंगे, वहॉ के लोगों को आजादी हरी हरी होगी जबकि मामलेवार नारंगी और लाल। जो इलाके अब भी हॉटस्पाट हैं, वे पूरे प्रतिबंधित रहेंगे- कम से कम 17 मई तक। लॉकडाउन हटनेे के बाद अब होगा क्या, जरा गौर करिए:-

राज्य और कस्बे से प्राण बचाकर भागे मजदूर, जिनकी संख्या लाखों में है, जैसे तैसे अपने गॉव-घर पहुॅच तो जाएंगे लेकिन अपने-अपनों से मिलने की खुशी के कुछ दिनों के आनंद जब खत्म होंगे और तमाम तरह की हकीकतें आगे आकर मुॅह बाकर खड़ी हो जाएंगी तब उन्हें और प्रदेश की सरकार को पता लगेगा कि वे वापस तो लौट आए लेकिन अब करेंगे क्या?

उन्हें वैकल्पिक रोजगार कहॉ से मिलेगा? असंगछित क्षेत्रों के मजदूर खास तौर पर मुसीबतों में फॅसने वाले हैं। शयद इसीलिए जब पिछली 11 अप्रैल को प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों की बैठक ली थी तो झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने मर्म छू लिया था। उन्होंने कहा थाः लॉकडाउन खुलेगा तो मुसीबत और नहीं खुलेगा तो मुसीबत।

बात सही भी थी। लाखों मजदूर या तो अपने गृह प्रदेश लौट आए हैं या फिर लौटने की प्रक्रिया में हैं। सरकारें तुरत फुरत बस एक ही काम इन्हें आसानी से दे सकती हैं और वह है मनरेगा में मजदूरी का लेकिन कई राज्यों में मनरेगा में मजदूरी की दरें बहुत कम हैं। मसलन झारखण्ड में मनरेगा में 200 रु मजदूरी मिलती है जबकि वे जहॉ कल कारखानों में लॉकडाउन के पहले काम कर रहे थे, कम से कम 500 रुपए कमाते थे। उत्तर प्रदेश की सरकार ने कोई 12-13 लाख इन मजदूरों के खातों में एक एक हजार रु भेजे हैं पर इनसे कितने दिन काम चलेगा?

कहॉ से आएंगी इतनी नौकरियॉ? और अगर ये मजदूर किसी तरह अपनी पुरानी नौकरियॉ पाने की स्थिति में आए भी तो वे कैसे अपने पुराने मुकाम पर पहुॅच पाएंगे? बहुत से खेतिहर मजदूर पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में खेती का काम करने भी नहीं जा पा रहे हैं। मकान, बिल्डिंग बनाने के काम ठप पड़े हैं, वहॉ भी काम नहीं मिल सकता।

उत्तर प्रदेश कोई रईस प्रदेश नहीं है। सरकारी तामझाम इसे गरीब राज्य कहता है। देश के कुल गरीबों में से करीब 19 फीसदी उत्तर प्रदेश में रहते हैं और देश में जहॉ 29 प्रतिशत लोग गरीबी की सीमा रेखा के नीचे हैं, उत्तर प्रदेश में यह प्रतिशत 22 है। प्रति व्यक्ति आय यहॉ 70,420 है जबकि देश का औसत 1 लाख 34 हजार से ज्यादा है। करीब 34 लाख युवा पहले से बेरोजगार के रूप में अपने को दर्ज कराए हुए हैं। दो साल में बेरोजगारों की संख्या में 58 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अब ये जो 50-60 लाख नए बेरोजगार आएंगे, उन्हें रोटी कौन खिलाएगा? उत्तर प्रदेश की सरकार जीतोड़ प्रयास कर रही है, रोजगार के साधन पैदा करने की पर यह आसान काम नहीं है।

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