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कोरोना महामारी के काले बादलों के मध्य पहाड़ में रिवर्स माइग्रेशन का सूर्य उदित 

डॉ. आशीष रतूड़ी “प्रज्ञेय”

देहरादून: यह लॉकडाउन संकट एक अप्रत्याशित आपदा है, ऐसे में अगर बात अपने पहाड़ी राज्य की करें तो यह कोई आश्चर्य नही है कि यह कोरोना महामारी रूपी आपदा इस राज्य के पहाड़ी जनजीवन एवं व्यक्तिगत मूल्यों को भी काफी नुकसान पहुंचा रही है, क्योंकि इस राज्य के पहाड़ी इलाके तो पिछले कई दशकों से विभिन्न प्रकार की आपदाओं के मूक साक्षी बने हुए हैं। पूर्व में घटित कुछ प्रलयकारी आपदाएँ जैसे, केदारनाथ आपदा, उत्तरकाशी भूकम्प आपदा, सल्ट क्षेत्र आपदा एवं कई अन्य अनगिनित छोटी-बड़ी हर प्रकार की आपदाओं ने इस पहाड़ी राज्य को हर तरफ से कुछ न कुछ नुकसान पहुंचाया ही है। वैसे तो प्रत्येक आपदा सभ्यताओं एवम संस्कृतियों को काफी बुरी तरह हानि पहुंचती हैं पर इसी के साथ, वह हमें कुछ नये तरीके से जीवन जीने का अवसर भी प्रदान करती हैं।

प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मानसिक तौर पर सकारात्मक रहकर बड़ी सबलता से चुनोतियों में भी अवसर ढूंढना, व्यक्ति एवम समाज की सभ्य संस्कृति की एक अग्नि परीक्षा होती है। अगर इन सभी आपदाओं का बड़ी गहनता से तुलनात्मक अध्ययन किया जाय तो मालूम पड़ता है कि इस कोरोना महामारी आपदा ने हम सब राज्यवासियों को रिवर्स माइग्रेशन के बारे में सोचने एवमं उसे सफल बनाने के लिए एक अभूतपूर्व अवसर प्रदान किया है।

इस दिशा में सफल कदम उठा कर हम और हमारा पहाड़ी समाज अपनी हिमालयी दृढ़ संकल्पता का परिचय दे सकता है। अगर इस वातावरण में सापेक्षता के सिद्धांत की बात करें तो हम कह सकते है कि जहां इस महामारी ने व्यक्ति को व्यक्ति से दूर किया है, वहीं इस संकट ने उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों में प्रवासियों का घर वापस आना एवम व्यक्ति को परिवार के पास रहने का एक अच्छा अवसर दिया है।

उत्तराखंड लंबे समय से प्रवास की समस्या से जूझ रहा है

देश भर में शहरी क्षेत्रों में रोजगार की तलाश में लोगों ने राज्य के पहाड़ी एवम ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़ दिया है। उन्होंने शहरों या महानगरों की तरफ इसलिये रुख किया है, जिससे वे अपने और अपनों के लिए आजीविका के साधन जुटा सकें परंतु यह तो समय की ही विडंबना है कि जिस शहर में वे अपने सपनों का पता पूछने गये थे, उन्ही शहरों में कुछ दिनों के लॉक-डाउन से वे अपने नियमित जीवन जीने की लिये पल-पल के मोहताज हो गये। इस संकट की घड़ी में, उन्हें फिर अपने वही पुराने गाँव के खण्डहरों की मजबूत नींव दिखाई दे रही है, जिसमे आज भी उन्हें और उनके सपनों के गगनचुंबी महलों को संभालने की ताकत है।

एक सरकारी आंकड़े के अनुसार अगर हम राज्य के मैदानी भाग को छोड़ दें तो इस लॉक-डाउन के चलते तकरीबन साठ हजार से अधिक प्रवासी अपने-अपने पहाड़ी जिलों में वापस आये हैं। अधिकांश प्रवासी महानगरों में आतिथ्य (होटल) क्षेत्र, ड्राइवर, इलेक्ट्रीशियन, कपड़ा उद्योग, आदि में एक कुशल कारीगर के तौर पर कार्यरत थे।

इस महामारी ने अधिकतर प्रवासियों को वापस आने के लिए मजबूर किया है। प्रवासियों का इस समय में विभिन्न परिस्थितियों के चलते वापस आना अपने आप मे उनकी बड़ी मजबूरी है और इससे तो यह भी कह सकतें है कि स्वैच्छिक रिवर्स प्रवासन मजबूर प्रवासन से हमेसा से कम ही रहा है।

बरहाल, कुछ भी कारण हो परंतु इस आपदा के दौर में पहाड़ों के कई वर्षों से एकांत पड़े हुए मकान एवम जीवन के अंतिम पड़ाव पर गुमसुम बैठे बुजर्गों के आंगन में कुछ दिनों से एक चहल- पहल तो बनी हुईं है और ये चहल-पहल सदैव बनी रहे, जिससे पहाड़ का पानी और यहां की जवानी यहाँ की अर्थव्यवस्था को एक नया आयाम दे सके। प्राथिमिकी तौर पर देखा जाय तो अब हमारी सरकारों एवम पलायन को रोकने हेतु बने पलायन आयोग की एक महत्वपूर्ण ज़िमेदारी बन जाती है कि वह इस रिवर्स माइग्रेशन के सुनहरे अवसर को ध्यान में रखते हुए, कुछ नई नवाचार युक्त कार्ययोजनाओं का सृजन करे और यह भी सुनिश्चित करने की कोशिश करें कि यह योजना शीघ्र ही कार्यान्वित हो।

अगर देखा जाय तो पूर्व में भी सरकार ने कई योजनाओं की रूपरेखा तैयार कर रखी है जैसे बागवानी, डेयरी, पशुपालन, बकरी पालन, पर्यावरण-पर्यटन, होमस्टे और अन्य सूक्ष्म उधमों से युवाओं को जोड़े रखने की परंतु इन सभी कार्ययोजनाओं को सिर्फ कागजों एवम फाइलों की ही बस्ती पर उतारा गया है जिससे अभी भी राज्य बनने के उन्नीस बर्षो बाद भी यहां के पहाड़ी युवाओं को नगरों एवम महानगरों का रुख करना पड़ता है। पहाड़ की इस बिगड़ी परिस्थिति के लिए सिर्फ सरकार को जिमेदार कह देना ही काफी नही है, इसमें हम लोगों की भी काफी हिस्सेदारी है क्योंकि हमारे यहां की युवा पीढ़ी कृषि विज्ञान एवम अन्य कई कौशल सीखने हेतु देश एवम विदेशों के उच्च संस्थानों एवम विश्वविद्यालयों की तरफ रुख कर सकतें है मगर अपने प्रदेश एवम पहाड़ के विकास के लिए परिश्रम का कोई भी हल यहाँ की शस्यश्यामलाम् भूमि पर खींचने या चलाने हेतु अपनी बनावटी गरिमा के आडम्बर को ओढ़ कर हमेसा संकुचित रहते हैं।

ऐसी निरुत्साह एवम अकर्मण्य विचारधारा हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर बनाती हैं और इसे मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था तक ही सीमित रखती है। वर्तमान समय मे रिवर्स माइग्रेशन को देखते हुए यदि सरकार अपने प्रत्येक स्तर पर इन घर लौटे हुए प्रवासियों से संवाद कर उनकी और उनके परिवारों की व्यक्तिगत समस्याओं को समझने का प्रयास करे और शीघ्र ही इन सब के लिए राज्य में ही कुछ न कुछ रोजगार के अवसर तलासने में इनकी मदद करे तो निश्चित ही पलायन को रोकने की दिशा में मंगलकारी परिणाम मिल सकते हैं।

यही मौका है जब ग्रामीण अंचल में खोले गए कई पॉलिटेक्निक एवम प्राथमिक तकनीकी शालाओं को और सुदृढ़ कर एवम इन युवाओं के कौशल को मध्यनजर रखते हुए उनके कौशल में अधिक वृद्धि की जा सकती है और साथ ही साथ उनके लिए स्वरोजगार से जुड़ी कई योजनाओं को उनके मध्य में रहकर सृजित किया जा सकता है। अगर सरकारी तंत्र इन सब मे विफल होता है तब भी यहां के युवाओं को उम्मीद नही छोड़नी चाहिए और उन सभी प्रकार के कौशलपूर्ण कार्यों में अपने अवसर तलाश करने चाहिए जिन पर अब तक बाहरी राज्यों से आये हुए लोगों का ही एकाधिकार हो रखा है औऱ बड़े आश्चर्य की बात तो यह है, कि वे सभी लोग पहाड़ के प्रत्येक कस्बों एवम ग्रामीण इलाकों में अपने कार्य कौशल से एक सम्मानजनक आमदनी कमा रहे हैं और एक सम्पन जीवन शैली भी जी रहे हैं। कई ऐसे कार्य वे कर रहे हैं जो हमारे पहाड़ के युवा (खास तौर पर वे पहाड़ी युवा जो ज्यादा पढ़ लिख नही पाए हैं और जो महानगरों में भी सिर्फ दैनिक मजदूरी का कार्य करने हेतु पलायन कर रहे है) किसी भी तौर पर अपने ही घर के पास या राज्य में करने को तैयार नही होते हैं जबकि वे जानते है कि प्रत्येक ईमानदारी युक्त कार्य किसी को भी एक स्वाबलंबन एवम आदर्शपूर्ण जीवनशैली प्रदान कर सकता है।

इन कौशल पूर्ण कार्यों की चर्चा की जाय तो जैसे, मोटर मकैनिक, शैलून, कारपेंटर, फल-सब्जी विक्रेता, प्लम्बर, राज मिस्त्री, शादी विवाह का प्रबंधन, होमस्टे एवम अन्य कई कार्य हैं जिसे वे अपनी सामर्थ्य एवम कौशल के आधार पर चुन सकते हैं। ये वे सब कार्य हैं जिन पर देखा जाय तो पहाड़ में दूसरे राज्यों के व्यक्तियों की ही धाक रही है और वे सब इन से संम्पन होते दिखाई दे रहे हैं। तो आश्चर्य इस बात का है कि हमारे युवा ये सब क्यों नही करना चाहते और अगर कार्य या उद्यम शुरू करने में निवेश की समस्याएं हैं तो सरकारी तंत्र को जगाने की तो हमे ही जुगत करनी पड़ेगी।

अगर समस्या को दूसरे पहलू से देखा जाय तो नजारा कुछ और ही देखने को मिलता है, वह यह है कि पहाड़ के युवा भी अब जातीवाद एवम परिवार की पुरानी अंधविश्वास की प्रथा के जाल में फंसे हुए नजर आ रहे हैं। जिन कारणों से वे कुछ कार्यों को अपने घर के पास तो नही कर सकतें है परंतु उन्ही सब कार्यों एवम चंद रुपयों के लिए महानगरों में या सागर पार जाने को तैयार रहते है औऱ ये सोचते हैं कि वहां तो चाहे वे एक लाचार श्रमिक का जीवन यापन कर रहे हों मगर कभी-कभार अगर पहाड़ का रुख करें तो जेंटलमैन के अभिनय में नजर आयें। यह कोई व्यंग नही है औऱ ना ही किसी की इच्छाओं एवम सपनों पर लगाम लगाने का प्रयास है यह तो सच्चाई है जिससे हम मुँह नही मोड़ सकते हैं।

इस कोरोना महामारी के बाद का जो समय होगा वह हम सब के जीवन को एक नई दिशा एवम नई सभ्यता की तरफ ले जाएगा, अतः पहाड़ के युवाओं को भी सब रूढ़ि वाधिताओं को छोड़ कर अपने कौशल को एक नया आयाम देना होगा। अब अगर कुछ कथाकथित कुलीन एवम उच्च मद्यमवर्गीय प्रवासी पहाड़ी समाज की बात करें तो उनके लिए पहाड़ जिनमे उनकी जड़ों ने फैलाव पाया था सिर्फ एक पर्यटक स्थल के तौर पर रह गया है और वे यदा-कदा कभी आते भी हैं तो पहाड़ के इस भद्र प्रांगण को दूषित करके चले जाते हैं।

मूलतः इस राज्य के बहुत सारे व्यक्तित्व ऐसे हैं जो काफी अच्छे एवम सही निर्णय लेने के अधिकारों के कई उच्च गरिमामयी पदों पर आसीन हैं और उन्होंने सिर्फ अपने लिए ही नही देश एवम अपने इस पहाड़ी राज्य के लिए भी सदैव गौरव अर्जित किया है, इस दशा में वे भी अगर पहाड़ी जनसमस्याओं को नजर अंदाज करते हैं तो उन से तो विशेष आग्रह बनता है कि जब वे अपनी स्वार्थपूर्ण सफलता की मैदानी तलहटी में हों तो एक बार जरूर इस पहाड़ की ऊंचाइयों को भी देखने का प्रयास करें और वे पाएंगे कि वे अब कितने बौने हो गए हैं।

इसी के साथ-साथ यदि हम अपने प्रत्येक स्तर पर सामाजिक एवम राजनैतिक नेतृत्वकर्ताओं की बात करें तो वे भी सिर्फ अपने खोखले दरख्तों की जड़ों को भरने का कार्य कर रहे हैं।  इन सभी प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच भी कुछ जीवतं एवम उत्साही संस्थानों के प्रतिनिधि एवम पहाड़ी समाज के कर्मठ व्यक्तियों का समूह है जो निरंतर पहाड़ के वेदना भरे स्वरों को एक सुखद संगीत में परिवर्तित करने की कोशिश कर रहे हैं। हे! इस हिमालय के सच्चे हिमपुत्रों आप सब को हमारा कोटि-कोटि बंदन।

इन सभी कर्मवीरों एवम आशावादी जनसमूह का राज्य की सरकार से यही आग्रह है कि कोरोना महामारी के काले बादलों के मध्य पहाड़ों में रिवर्स माइग्रेशन का जो सूर्य उदित हुआ है कृपया इसे अभूतपूर्व सफलता दे कर एक नया आकाश देने कि कोशिश करें नही तो इसे फिर पलायन का ग्रहण लग जायेगा।

(प्राध्यापक, भौतिक विज्ञान, डॉलफिन महाविद्यालय, देहरादून)

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